दुनिया भर में मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था एमनेस्टी ने अपनी एक ताज़ा रिपोर्ट में यह कहा है कि यूरोपीय देशों में मुसलमानों के साथ भेदभाव की घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है जिससे पूरी दुनिया में चिंता का माहौल बन सकता है. संस्था का यह आंकलन बिलकुल सही है पर इसके पीछे के कारणों के बारे में किसी ने भी विचार नहीं किया है क्योंकि इस तरह की संस्थाएं केवल उन आकंड़ों को ही इकठ्ठा करती रहती हैं जिनसे किसी भी देश की सरकार को घेरा जा सकता है और उस पर यह आरोप लगाये जा सकते है कि वह मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रही है ? किसी देश में धार्मिक या अन्य आज़ादी के नाम पर किस तरह से आतंकी आम लोगों का जीना हरम किये रहते हैं उस परकोई सही रिपोर्ट क्यों नहीं आती है? सुरक्षा बलों के अत्याचारों की ख़बरें तो खूब छपती हैं पर जब आतंकियों की बात होती है तो सब चुप्पी लगा जाते हैं ? क्या कारण है कि आज सभी को यह लगने लगा है कि वास्तव में यूरोपीय देश मुसलमानों के साथ भेदभाव कर रहे हैं आख़िर वे कौन से कारण हैं जिनके कारण भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम और फ़िल्म अभिनेता शाहरुख़ खान तक को केवल मुसलमान होने के कारण अमेरिका में हवाई अड्डों पर रोका जाता है ? क्या आज से २० वर्ष पहले ऐसे हालत थे कि किसी की भी यूरोपीय देशों में किसी की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर इस तरह से रोक लगायी गयी हो या किसी धर्म विशेष के लिबास या उसके प्रतीक चिन्हों के बारे में संदेह व्यक्त किया जाता रहा हो ?
अब अगर इस तरह के भेदभाव को यूरोप के आधुनिक समाज में जगह मिल रही है तो इसका मतलब यही है कि कहीं का कहीं से कट्टरपंथी अपनी चाल में कामयाब हो रहे हैं क्योंकि वे भी तो यही चाहते हैं कि मुसलमान पूरी दुनिया में अलग थलग पड़ जाये जिससे वे अपने एजेंडे को आगे बढ़ा सकें और यह कह सकें कि पूरी दुनिया मुसलमानों के ख़िलाफ़ हो गयी है ? आज जो लोग यूरोप में सरकारों पर वोट बैंक की राजनीति करने के आरोप लगा रहे हैं वे यह भूल जाते हैं कि भारत जैसे देश में मुसलमानों के लेकर हमेशा से ही वोट बैंक की राजनीति होती रही है ? अगर वोट बैंक की राजनीति कम संख्या में रहने वाले यूरोपीय मुसलमानों के लिए ग़लत है तो भारत जैसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश में यह मुसलमानों का किस तरह से हित कर सकेगी ? जो बात किसी एक स्थान पर मुसलमानों के लिए ग़लत है वही बात किसी दूसरे स्थान पर किसी और के लिए भी ग़लत ही होगी पर इस बात को दो अलग अलग नज़रियों से देखने के कारण ही आज मुसलमानों की स्थिति पूरी दुनिया में संदेहास्पद हो गयी है. जिस तरह से उच्च शिक्षित मुसलमानों ने भी आतंकियों के कामों को अंजाम देने में उनका साथ दिया उसके बाद ऐसी स्थिति तो बननी ही थी क्योंकि अभी तक यही धारणा थी कि आतंकी अशिक्षित मुसलमानों को धर्म के नाम पर बरगला रहे हैं ? इस संदेह के वातावरण को दूर करने के लिए पूरी दुनिया में रहने वाले मुसलमानों को सही दिशा में सोचकर उचित कदम उठाने के लोए आगे आना ही होगा क्योंकि जब तक वे आतंकियों के भरोसे धर्म को छोड़ते रहेंगे तब तक संदेह के बादल पूरी कौम पर घिरते ही रहेंगे.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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