मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 6 मई 2012

आतंकी हमले की तैयारी में ?


     केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक बार फिर से देश के तेल प्रतिष्ठानों पर आतंकी हमले के बारे में पक्की सूचनाओं के बारे में राज्यों को सूचित किया है और इसके बाद एक बार फिर से यह सिद्ध हो गया कि आतंकी चाहे कितने भी कमज़ोर न दिखाई दें पर वे अपनी इस तरह की विध्वंसक गतिविधियों पर विराम लगाने के लिए किसी भी स्थिति में तैयार नहीं दिख रहे हैं. देश में जिस तरह रोज़ ही नए नए ख़तरे सामने आ रहे हैं और इस स्थिति में केंद्र और राज्य सरकारें अपने अधिकारों के बारे में ही फ़ैसले नहीं ले पा रहीं है वह देश के  लिए बहुत घातक साबित हो सकता है. क्या देश के राजनैतिक तंत्र में इतनी समझ नहीं बची है कि वह देश हित में कोई भी फ़ैसले जल्दी से लेने की आदत बना सके या फिर किसी निर्णय को लागू करने के लिए कुछ समय तक प्रायोगिक तौर पर ही सही लेकिन कुछ करने की कोशिशें करते हुए दिखाई तो दें ? पर आज हर बात का केवल एक ही पहलू नेताओं की समझ में आता है कि किसी भी कानून से उनके अधिकारों में कटौती हो जाने वाली है जिसका सीधा असर देश की सुरक्षा और विकास से जुडी बातों पर पड़ता है जबकि आज कड़े कानून और केंद्रीयकृत व्यवस्था के तहत सभी राज्यों के साथ केंद्र को मिलकर काम करने की ज़रुरत है.
      आतंकियों ने जिस तरह से तेल प्रतिष्ठानों को अपने नए टार्गेट के रूप में चिन्हित किया है और इस बार में दोबारा इस तरह की सूचनाएँ सामने आई हैं तो अब सभी राज्य सरकारों के लिए यह बहुत बड़ी ख़तरे की घंटी है क्योंकि देश के तेल शोधक कारखानों में जितनी मात्रा में पेट्रोलियम पदार्थ रहते हैं उस स्थिति में वहां पर किसी भी तरह के आतंकी हमले की स्थिति में बहुत समस्या खड़ी हो सकती है. इसलिए सभी राज्यों को अपने यहाँ पर स्थिति तेल शोधक कारखानों से लेकर छोटे भंडारों तक पर कड़ी नज़रें रखनी ही होंगीं जिससे इनके आस पास होने वाली किसी भी संदिग्ध गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जा सके. देश में कानून तो बनते ही रहेंगें पर इस तरह की समस्या से निपटने के लिए जिस तरह की इच्छा शक्ति की आवश्यकता होती है उसे पाने में हमारे नेता हमेशा से ही कमज़ोर साबित हुए हैं. देश की सुरक्षा के लिए अगर किसी भी राज्य या नागरिक के कुछ अधिकारों में कटौती हो रही है तो उससे आख़िर में किसका भला ही होने वाला है ? अगर देश में कुछ ज़िम्मेदारी के साथ कुछ कड़े कानूनों को लागू किया जाने लगे तो केवल नेताओं को छोड़कर किसी भी भी आपत्ति नहीं होने वाली है.
      जिस तरह से आज भी हम आम नागरिक अपनी जिम्मेदारियों से पीछे भागते रहते हैं उसके कारण भी आतंकियों को हमारे आस पास अपने स्लीपिंग सेल विकसित करने में मदद मिलती है क्योंकि जब हर नागरिक अपनी तेज़ निगाहों से अपने आस पास की गतिविधियों पर नज़र रखना अपनी आदत में शामिल कर लेगा तो किसी स्थानीय आतंकियों के मददगार के लिए भी आतंकियों की मदद करना उतना आसान नहीं रह पायेगा ? आज देश में सिविल डिफेंस को मज़बूत करने की ज़रुरत है और आने वाले ख़तरों को देखते हुए हर नागरिक को आपदा से जुड़ी किसी भी स्थिति में काम करने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. अब वह समय नहीं रह गया है कि इसे विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जाये क्योकि जब सिविल डिफेंस अपनी मजबूती को पुलिस और सुरक्षा बलों के साथ जोड़ने में सफल हो जाएगी तब देश के किसी भी हिस्से में आतंकियों के लिए ऐसा कुछ भी कर पाना उतना आसान नहीं रह पायेगा. अब यह देश को तय करना है कि कानून कैसे हों और उन पर किस तरह से अमल किया जाये पर अभी जो कानून हैं कम से कम उन को तो सुरक्षा के क्षेत्र में कडाई से लागू किया जाना ही चहिये.     


 

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