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सोमवार, 7 मई 2012

मोदी नितीश विवाद ?

        नई दिल्ली में एनसीटीसी पर हुई बैठक के समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के गर्मजोशी से हाथ मिलाने को ऐसा प्रचारित किया जा रहा है जैसे नितीश ने कोई बहुत बड़ी भूल कर दी हो जबकि वास्तविकता यह है कि यदि देश के किन्हीं दो राज्यों के मुख्यमंत्री आपस में मिलते हैं तो उसमें किसी को कोई आपत्ति कैसे होनी चाहिए ? देश में राजनैतिक प्रतिद्वंदिता किस हद तक गिर सकती है इसका यह ताज़ा उदाहरण है और इससे यही पता चलता है कि आज भी देश के कुछ नेताओं में इतना शिष्टाचार नहीं आया है कि वे इस तरह की मुलाकातों को सामान्य ढंग से स्वीकार कर सकें ? नई दिल्ली में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की उपस्थिति में जब राज्यों के मुख्यमंत्री मिल रहे हों तो क्या सामान्य शिष्टाचार को भी किनारे किया जा सकता है ? पर शायद कुछ नेताओं को यह लगता है कि वे चाहे कुछ भी कहते रहेंगें और जनता उनकी बातों पर ध्यान देती रहेगी और आने वाले समय में उनको वोट भी देगी ? मोदी आज देश में तेज़ी से औद्योगिक विकास करते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री हैं और यह भी उतना ही सच है कि उनकी विवादित छवि के बाद भी उन्होंने गुजरात को विकास के राजमार्ग पर दौड़ाने में सफलता पायी है तो ऐसी स्थिति में अगर बिहार को विकास के मार्ग पर लाने की कोशिश में लगे हुए नितीश मोदी से कुछ सहायता भी चाहते हैं तो इससे नितीश की छवि पर क्या असर पड़ने वाला है ? 
             इस मसले पर जिस तरह से कुछ दल सामान्य शिष्टाचार को भी भूल रहे हैं वह उनकी मानसिकता को ही दर्शाता है क्योंकि कोई कितना भी विरोधी क्यों न हो उसके प्रति भी सामान्य शिष्टाचार को कभी भूलने की अनुमति कोई नहीं देता है फिर जब देश में इतने महत्वपूर्ण मसले पर कोई बात की जा रही हो तो मोदी को अलग कैसे कहा जा सकता है ? मोदी भी उसी लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से चुन कर आये है और उन्हें भी  उसी जनता ने राज्य की बागडोर सौंपी है जैसी अन्य राज्यों में अन्य लोगों को सौंप रखी है तो गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर आये हुए मोदी पर इस तरह से आरोप लगाना क्या देश के लोकतान्त्रिक मूल्यों का उपहास नहीं है ? क्या देश में आज राजनीति में इतनी शुचिता बची है कि कोई भी मोदी पर उंगली उठा सके ? दूसरे पर आरोप लगाने से पहले अपने दामन में झांक लेना अच्छा होता है और इस मसले को जिस तरह से नितीश के ख़िलाफ़ उछाला जा रहा है वह केवल हताशा को ही दिखाता है. नितीश ने बिहार को दलदल से बाहर निकलने के प्रयास जारी रखे हुए हैं और कुछ हद तक वे अपनी इस कोशिश में कामयाब भी हुए हैं फिर भी उनकी बढ़ती हुई लोकप्रियता के कारण वे हमेशा ही विरोधियों के निशाने पर रहा करते हैं.
            जिस तरह से इस मसले को कुछ नेता केवल इस बात के लिए ही इस्तेमाल करना चाहते हैं कि मोदी के साथ खड़े होने से मुसलमान भड़क सकता है तो नितीश को इससे कोई ख़तरा नहीं होने वाला है. क्या इन नेताओं को यह हक़ भी है कि लोकतान्त्रिक ढंग से चुनी गयी किसी भी सरकार के मुखिया के बारे में इस तरह से बातें कर सकें ? क्या यह गुजरात की जनता का अपमान नहीं है अगर इस तरह के किसी मसले पर इतनी छुद्र राजनीति की जाने लगेगी तो फिर विकास हो चुका. नितीश पर आरोप लगाने वाले नेता यह भूल जाते हैं कि वे एक लोकतान्त्रिक देश में रहते हैं और यहाँ पर किसी को कुछ नहीं पता है की कल क्या स्थिति होने वाली है ? अगर कल को मोदी प्रधानमंत्री हों और लालू बिहार के मुख्यमंत्री तो क्या वे मोदी से हाथ नहीं मिलायेंगें या फिर बिहार के विकास के लिए मोदी से कोई बात नहीं करेंगे ? अब समय है कि नेताओं को अच्छी तरह से पेश आना सीखना ही होगा आज मोदी को लेकर ऐसे बातें की जा रही हैं कल को अन्य मसलों पर इस तरह की फ़ालतू बातें भी की जा सकती हैं तो उस स्थिति में दुनिया को हमारा देश बँटा हुआ दिखाई देगा ? जनता आज इतनी जागरूक हो चुकी है कि वह यह देख सके कि क्या अच्छा है और क्या नहीं इसलिए इस तरह की बातों को मसला बनाने वाले लोगों को सामान्य शिष्टाचार की बातें नहीं भूलनी चाहिए.
 

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