मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 15 मई 2012

क्रिकेट में सट्टेबाजी

 जिस तरह से एक बार फिर से क्रिकेट में सट्टेबाजी का खुलासा हुआ है उसके बाद इस खेल के बारे में देश के क्रिकेट प्रेमियों को फिर से विचार करने की ज़रुरत है क्योंकि जनता इसे खेल और मनोरंजन की दृष्टि से देखती है पर आज जिस स्तर पर इसमें सौदेबाजी होने लगी है उससे अब यह भद्र जनों का खेल रह ही नहीं गया है. जिस तरह से एक चैनल ने इस बात का खुलासा किया है कि एक बड़े खिलाड़ी ने पैसे लेकर मैच में फिक्सिंग की उससे इस खेल के गिरते हुए स्तर के बारे में पता चलता है. अभी तक जिस तरह से आम लोग इस खेल के दीवाने रहा करते हैं और भारत में क्रिकेट को एक धर्म के रूप में देखा और पूजा जाता है इस तरह की सट्टेबाजी के बाद इसमें कितनी दीवानगी बचेगी यह तो समय ही बताएगा पर तब तक शायद क्रिकेट उस स्थिति में पहुँच जायेगा जहाँ से इसके लिए वापसी करना असंभव हो जायेगा. क्या बोर्ड और पुलिस की जानकारी में यह बात नहीं है कि पूरे देश में आई पी एल के महत्वपूर्ण मचों में एक एक गेंद तक पर छोटी छोटी जगहों में भी सट्टे लग रहे हैं और इसे रोकने के लिए कोई भी कुछ करने की कोशिश करता नहीं दिखा रहा है ?
             यह एक अच्छा भला खेल ही होता था पर जब १९८३ में भारत ने पहली बार विश्व कप जीता तो उसके बाद से भारत में इसके बारे में दीवानगी बढ़ गयी और हर वर्ष हर विश्व कप के साथ ही इसका महत्त्व बढ़ता ही चला गया. आज जब भारत पूरे विश्व में क्रिकेट को पैसों की आपूर्ति का मुख्य केंद्र बना हुआ है तो ऐसी स्थिति में अगर खिलाडियों में इस तरह से जल्दी में पैसे बनाने की होड़ भी सामने आ रही है तो इसके पीछे दबाव की मानसिकता ही अधिक है. जिस स्तर पर इसे खेला जाने लगा है उसमें अब किसी के लिए कुछ सुधार करना बहुत मुश्किल है क्योंकि टीम में होने पर अपनी जगह बचाए रखने का जो दबाव होता है और भविष्य के प्रति जो अनिश्चितता होती है वह भी कई बार खिलाड़ियों को इस तरह के छोटे रास्तों से पैसा कमाने के बारे में उकसाती है. जब तक खिलाड़ी का खेल चमकता रहता है उस पर पैसों की बरसात होती रहती है पर एक बार इसमें असफल रहने पर उसका भविष्य ही दांव पर लग जाता है. देश के लिए केवल ११ लोग ही खेल सकते हैं और बाकी क्रिकेट के दीवानों के लिए केवल मायूसी ही बचती है.
             इस स्थिति से निपटने के लिए जब तक खेल को पैसे के इतने नज़दीक रखने का क्रम बंद नहीं किया जायेगा इस खेल में किसी भी प्रयास से शुचिता को नहीं लाया जा सकता है. सबसे बड़ी बात यह भी है कि देश के लिए खेलने वाले इन खिलाड़ियों के भविष्य के बारे में बोर्ड की तरफ से कुछ भी नहीं किया जाता है उस स्थिति में कुछ खिलाड़ी इस तरह के काम करने में भी नहीं चूकते हैं ? यहाँ पर सवाल इस बात का भी है कि इस खेल को कब तक नेता और धनवान लोग अपने कब्ज़े में रखेंगें क्योंकि जब तक खेल की ज़िम्मेदारी खिलाड़ियों पर नहीं होगी तब तक सही प्रतिभा सामने नहीं आने पायेगी पर आज बोर्ड के लिए केवल पैसा कमाना ही एक मात्र उद्देश्य रह गया है ? फिलहाल जिस तरह से इस पूरे प्रकरण में अनिश्चितता का बोलबाला होता जा रहा है वह भारत में क्रिकेट के लिए अच्छा नहीं है. बोर्ड केवल जांच करने और कड़ी कार्यवाही करने की धमकी से आगे नहीं जा पाता है और खिलाड़ी इस तरह से लालच में फँस कर खेल के प्रति अन्याय करने से भी नहीं चूक रहे हैं. बोर्ड को खिलाड़ियों के खेल के बाद के जीवन के बारे में भी सोचना चाहिए और विभिन्न आयोजनों से केवल अपने खज़ाने के लालच को त्यागना चाहिए तभी उसे खिलाड़ियों से भी इस बात की आशा करनी चाहिए कि वे भी उसकी मंशा के अनुसार काम करेंगें.  

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