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शनिवार, 19 मई 2012

सरकारी खर्चे और बचत

              केंद्र सरकार ने बढ़ती हुई मंहगाई के बीच यह घोषणा की है कि वह अपने खर्चों में कटौती करने के बारे में विचार कर रही है और जल्दी ही ऐसे सारे उपाय किये जायेंगें जिससे सरकारी खर्चों पर लगाम लगायी जा सके. यह सही है कि सरकार द्वारा सभी संभव कदम उठाने के बाद भी वैश्विक कारणों से मंहगाई घट ही नहीं रही है और इस स्थिति में सरकार के पास बहुत सीमित विकल्प ही बचे रह जाते हैं. सबसे पहले सरकार अपने काम काज से जुड़े खर्चों में कटौती करके कुछ थोडा अंश ही बचा सकती है फिर विभिन्न मंत्रालयों को दी गयी धनराशि में फिर से सुधार करके अपने लिए कुछ धन की व्यवस्था कर सकती है. इस तरह की स्थिति में सरकार के हाथ बहुत ही बंधे हुए हैं क्योंकि आज के समय में सभी देश वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़े हुए हैं और किसी भी एक देश में होने वाली आर्थिक उथल पुथल पूरी दुनिया में असर अवश्य ही डालती है. भारत जिस तरह से तेज़ी से उभरती हुई अर्थव्यस्था है तो उस पर इसका असर पड़े बिना भी नहीं रह सकता है. वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ कदमताल करने में इस तरह के ख़तरे हमेशा ही बने रहने वाले हैं.
      सरकार को अब इस तरह के कुछ टोटके करने के स्थान पर अपने विभागों में कार्यकुशलता बढ़ाने पर ज़ोर देना चाहिए क्योंकि जब तक सभी विभागों में इस तरह से समन्वित प्रयास नहीं शुरू किये जाएंगे तब तक वह बड़ा लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता है. वित्तीय अनुशासन की देश में बहुत कमी है अब इस पर ध्यान देने की आवश्यक है और साथ ही बढ़ते हुए भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगाने के लिए ठोस कदम उठाने की ज़रुरत है. सरकार आज विनिर्माण और आधारभूत संरचनाओं के विकास पर बहुत कुछ खर्च कर रही है जबकि इस क्षेत्र में बहुत भ्रष्टाचार चलता रहता है इस लिए उन क्षेत्रों को प्राथमिकता के आधार पर चिन्हित करके सबसे पहले सरकार को अपने बजट को ही सुधारने की तरफ़ सोचना शुरू करना चाहिए जब तक इस क्षेत्र में सुधार नहीं किये जायेंगें तब तक पूरी तरह से सब कुछ ठीक नहीं हो सकता है. सरकार को इन क्षेत्रों में बजट का आवंटन करते समय ही इन बातों का ध्यान रखना चाहिए जिससे बाद में कटौती करने की ज़रुरत ही नहीं पड़े.
      केवल बड़े और मंहगे होटल में बैठकें न करने से सरकार इतनी बचत नहीं कर पायेगी जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर कुछ प्रभाव दिखाई देने लगे पर पूरी तरह से खर्चों में मितव्य्यता लाने के लिए जिन उपायों की ज़रुरत है वे जब तक सरकार की कार्यप्रणाली में शामिल नहीं होते हैं तब तक हर विभाग में इसी तरह से अनावश्यक खर्चों की भरमार बनी रहेगी. सरकार चलाने के सामान्य खर्चों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए जिससे पूरी तरह से हर तरह के खर्चों में सही तरह से कटौती की जा सके. किसी भी विभाग में आवंटित धनराशि में कुछ संशोधन करने से भी कुछ हासिल किया जा सकता है पर किसी भी विभाग में किसी भी तरह की कटौती संभव नहीं है जिससे सरकार के लिए विभागों के बजट को कम करने में काफी कठिनाई आने वाली है. बजट घटने से किसी भी से सरकारी उद्देश्यों को पूरा करने में भी सफलता नहीं मिलने वाली है इसलिए यह काम भी इतना आसान नहीं रहने वाला है. कड़े क़दमों की घोषणा करने के स्थान पर सरकार को विभागों से खुद ही कटौती करने को कहना चाहिए जिससे वास्तव में कुछ किया जा सके.
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