मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 21 मई 2012

लम्बा सत्र और सार्थक बहस

        यू पी में नए विधायकों विधयाकों के प्रबोधन कार्यक्रम में सीएम अखिलेश ने जिस तरह से यह कहा कि इस बार से विधान सभा का माहौल पूरी तरह से बदला बदला नज़र आएगा और नए विधायकों को भी अपनी बात कहने के पूरे अवसर दिए जायेंगें उससे लगता है कि इस बार समाजवाद की पूरी तरह से बात सदन में दिखाई देने वाली है. पिछली सरकार ने जिस तरह से सदन के सत्रों को बहुत छोटा करके ज़रूरी विधायी कार्य निपटाने को एक संस्कृति के रूप में अपना लिया था वह देश के लोकतंत्र के लिए उचित नहीं था. यह सही है कि जिस तरह से नए विधायक विधान सभा के बारे में सोचकर पहली बैठक में आते हैं उसके बाद जिस तरह से वहां पर पुराने और वरिष्ठ लोग ही हावी रहा करते हैं उससे उनको अपनी बात कहने का अवसर भी नहीं मिल पाता है पर जिस तरह से विधान सभाध्यक्ष माता प्रसाद ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि सत्र २८ मई से प्रारंभ होकर जुलाई के दुसरे सप्ताह तक चलेगा उससे यह आशा बलवती हो रही है कि सदन में वास्तव में बहुत दिनों के बाद बहस होती हुई नज़र आएगी. सरकार के इस फैसले का हर क्षेत्र में स्वागत ही होना चाहिए पर साथ ही सत्ता पक्ष के लिए इस बात की चुनौती भी रहने वाली है कि वह इस समय को विपक्ष के साथ तालमेल बिठाकर सही तरह से उपयोग में लाने का काम भी ठीक से कर सके.
     पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से देश की संसद और राज्यों के विधान मंडलों में सत्र छोटे होते जा रहे हैं उनके बीच यह खबर लोकतंत्र के लिए वास्तव में शुभ संकेत ही लेकर आई है क्योंकि जब इस तरह से पुरानी बहस की परंपरा को यदि फिर से जीवित कर लिया जाता है तो इससे नए विधायकों को पूरी तरह से संसदीय परम्पराओं के बारे में जानकारी हो जाएगी. आज जिस तरह से बात बात में हंगामा होता रहता है उस स्थिति में कोई भी यह नहीं कह सकता है कि इस सत्र का कितना वास्तविक लाभ उठाया जा सकेगा. लम्बे सत्र के चलने से भाजपा और कांग्रेस के विधायक अपनी बातों को खुलकर उठा सकेंगे क्योंकि इन दोनों दलों में जनहित की बातें उठाने के लिए किसी से किसी तरह की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है पर मुख्य विपक्षी दल बसपा के विधायकों के लिए यह लम्बा सत्र किसी काम का नहीं होने वाला है क्योंकि उनको सदन में अपनी तरफ से कुछ भी करने की छूट नहीं होती है और वहां पर जो कुछ मायावती पहले से ही तय कर देती हैं केवल वही हो सकता है और उस स्थिति में कुछ चुने हुए चेहरे ही पहले से तय मसलों पर बहस कर सकते हैं. इस पार्टी लाइन के बारे में माया ने अपनी पिछली दिल्ली में की गयी प्रेस वार्ता में स्पष्ट कर दिया था कि पार्टी के सभी निर्णय उनके ही होते हैं.
    अच्छा होता कि बसपा अपने मुख्य विपक्षी दल होने की ज़िम्मेदारी को पूरी तरह से निभाने का काम कर पाती जिससे लोकतंत्र को मजबूती भी मिल पाती और इन विधायकों के लिए संसदीय परम्पराओं के बारे में और अधिक जानकारी भी मिलती. अखिलेश सरकार ने यह स्पष्ट करके सदन की सर्वोच्चता के बारे में अपनी राय ज़ाहिर कर दी है अब सदन चलते समय सभी की नज़रें इस बात पर होंगीं कि सरकार के मुखिया की इस बात को पार्टी और सरकार किस हद तक सदन में पूरा कर पाती हैं. यह सही है कि सभी विधायकों के लिए अपनी बातें रखना उतना आसान नहीं होता है फिर भी पहले सत्र से ही उचित सामान और समय मिलने से जहाँ इन विधायकों के आत्म विश्वास में बढ़ोत्तरी होगी वहीं प्रदेश के लिए सार्थक बहस करने का मार्ग एक बार फिर से खुल जायेगा. अच्छा हो कि यह सत्र हंगामे और बहिर्गमन से बचा ही रहे क्योंकि जब इसकी शुरुवात अच्छी होगी तो आने वाले समय में इस परंपरा और सफलता को देखते हुए सरकार भी लम्बे सत्र चलाने की हिम्मत जुटाती रहेगी. अब यह पूरी तरह से विपक्ष पर है कि वह सरकार के इस कदम का किस तरह से जवाब देता है.
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4 टिप्‍पणियां:

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  2. बढ़िया लेख..नयी सरकार से लोगो को काफी उम्मीदें जुडी हैं परन्तु वो सिर्फ लैपटॉप और भत्ते तक ही सीमित हैं. शायद ही किसी को लोकतंत्र से मतलब होगा. और कितनो को इसका मतलब भी पता होगा. अखिलेश भी अपने पिता के नक़्शे कदम पे चल रहे हैं.. ना तो अपराध पर नियंत्रण है और न भ्रटाचार पे... लूटने वालों के बस चेहरे और मोहरे बदल गए हैं बस... सिर्फ मायावती को कोसने से और उनकी भर्तसना करने से ही हर चीज़ ठीक हो जाती तो आज उत्तर प्रदेश अपने विकास के चरम पर होता...

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  3. बदले की राजनीति से ऊपर उठ कर कुछ करने की अगर सुरुआत होती है तब ही कुछ भला होगा इस दयनीय प्रदेश का..

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  4. ummed kerta hu akhlesh kuch gift batne ke alawa bhi khuch thosgh karege

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