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शनिवार, 16 जून 2012

प्रणब की उम्मीदवारी

        राष्ट्रपति पद पर जिस तरह से संप्रग ने आख़िर में अपने पत्ते सही ढंग से खेलते हुए ममता को उनकी ही शैली में जवाब दिया उसके बाद यह लग रहा है कि इस बार कांग्रेस ने ममता को सबक सिखाने के साथ ही अपना होमवर्क भी ठीक ढंग से किया है. वैसे भी कुछ दलों ने जिस तरह से इस महत्वपूर्ण चुनाव में हड़बड़ी दिखाई उसकी कोई आवश्यकता नहीं थी और इस हड़बड़ी के कारण ही चुनाव और प्रत्याशियों के बारे में बहुत बड़ा असमंजस भी बना रहा जिसके बाद संप्रग ने प्रणब मुखर्जी को इस पद के लिए अपना उम्मेदवार घोषित किया उससे यही लगता है कि अब देश को एक मंझे हुए और सामाजिक तथा संसदीय मूल्यों का मान रखने वाले व्यक्ति को राष्ट्रपति भवन में देखने का अवसर मिलने वाला है. हालाँकि जिस तरह से स्थितियां पल पल बदल रही थीं उस स्थिति में कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल भी खड़ी हो सकती थी और राजग भी संप्रग में होने वाली किसी भी गड़बड़ी से लाभ उठाने की सोचे बैठा था अब उस पर विराम लग गया है और यह भी हो सकता है कि डॉ कलाम के चुनाव न लड़ने की स्थिति में ममता संगमा का समर्थन करने लगें क्योंकि अब प्रणब दा का समर्थन करना उनके लिए आसान नहीं रह गया है फिर भी अपने रुख़ में अचानक ही परिवर्तन करने में माहिर ममता हो सकता है कि कुछ सोचकर प्रणब दा का पूरा समर्थन कर ही दें ?
            प्रणब दा हमेशा से ही अपने राजनैतिक जीवन में सभी दलों के लिए सम्माननीय व्यक्ति रहे हैं और उन्होंने यह सब अपने उच्च आदर्शों पर चलने की नीति पर डटे रहकर ही पाया है आज के समय में जिस तरह से संप्रग में सहयोगियों के साथ सम्बन्ध मधुर रखने में प्रणब काम कर रहे थे उसमें कांग्रेस के लिए आने वाला समय मुश्किल भी हो सकता है क्योंकि हर परिस्थति में दादा के पास कुछ न कुछ हल अवश्य ही होते थे. ऐसे में उनके स्थान की भरपाई कांग्रेस और सरकार में कर पाना किसी के बस की बात नहीं होगी. जिस तरह से राजनीति ने करवटें बदली उस स्थिति में कांग्रेस के पास मजबूरी में ही सही पर प्रणब मुखर्जी से अच्छे उम्मीदवार को खोज पाना बहुत ही मुश्किल काम था इसलिए जो काम लेफ्ट २००७ में ही करवाना चाहता था अब वह २०१२ में होने जा रहा है. इस पूरे प्रकरण में मुलायम सिंह ने जिस तरह से एक बार फिर से कांग्रेस की सरकार को संजीवनी दी है वह उनके स्वाभाव से पूरी तरह से मेल खाता है क्योंकि वे अपनी बात को रखने वाले नेता हैं और किसी भी परिस्थिति में वे उससे पीछे नहीं हटते हैं. मुलायम अगर संप्रग के साथ मज़बूती से खड़े होते हैं तो इससे यूपी का भी भला हो सकता है और २०१४ के चुनावों के बाद मुलायम को उनके हिस्से की सत्ता भी मिल सकती है.
       इस पूरे प्रकरण में ममता बनर्जी ने जिस तरह से खुले आम बगावती स्वर अपनाये रखे वह भी उनके स्वाभाव के अनुसार ही था पर अब जब आज़ादी के बाद पहली बार एक बंगाली देश के सर्वोच्च पद पर बैठने जा रहे हैं तो क्या बंगाल की सरकार और ममता इतनी आसानी से उनका विरोध कर पाएंगीं ? बंगाल में बंगाल की बातें सबसे महत्वपूर्ण हैं और जब इतने बड़े पद पर प्रणब जैसे व्यक्ति के पहुँचने का रास्ता साफ़ हो चुका हो तो ममता किस हद तक अपने विरोध को जिंदा रख पाएगीं यह अभी भविष्य के गर्भ में है क्योंकि बंगाल कांग्रेस और वाम दल इस बात को एक मुद्दा बनाने की कोशिश करने वाले हैं और इससे ममता के लिए नयी तरह की मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. अभी तक जो कुछ भी हो चुका है उसको किनारे करते हुए ममता को भी प्रणब दा का समर्थन कर ही देना चाहिए जिससे वे संप्रग में रह भी जाएँ और कांग्रेस के लिए उनसे किनारा करना उतना आसान भी न रह जाये ? पर ममता अपनी ज़िद के आगे किसी की भी नहीं सुनती हैं तो इस बार भी उनसे किसी वापसी की आशा नहीं की जा सकती है, फिर भी देश के लिए प्रणब जैसे नेता का राष्ट्रपति होना अच्छा ही है क्योंकि अगर २०१४ के आम चुनाव में किसी भी दल या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला तो उस स्थिति में राष्ट्रपति की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाने वाली है और प्रणब दा ऐसी किसी भी चुनती का मुकाबला करना बहुत अच्छे से जानते हैं.  
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