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गुरुवार, 5 जुलाई 2012

मेट्रो और शहरी यातायात

            देश में तेज़ी से बढ़ती आबादी के साथ ही बड़े शहरों में यातायात के संसाधनों का लगातार कम होने से जहाँ इन शहरों में समस्याएं बढ़ती जा रही हैं वहीं राज्य सरकारें इस परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए  लगातार केंद्र सरकार की तरफ़ आशा भरी नज़रों से देख रही हैं. इसी क्रम में अब केंद्र सरकार ने इस बात के लिए राज्य सरकारों आग्रह किया है कि अगर उन्हें अपने यहाँ के बड़े शहरों में मेट्रो सेवा चाहिए तो उन्हें राज्य स्तर पर मेट्रो कम्पनी की स्थापना करनी चाहिए जिससे वे अपनी ज़रुरत के अनुसार उसका विकास कर सकें. हर राज्य द्वारा मेट्रो परियोजनाओं के लिए दिल्ली मेट्रो की तरफ देखने से उसका काम भी प्रभावित हो जायेगा और बहुत अधिक बोझ के कारण दिल्ली मेट्रो की कार्य क्षमता पर भी असर पड़ने लगेगा. हरियाणा का उदाहरण इसी संदर्भ में प्रस्तुत किया गया है जिसने अपने यहाँ मेट्रो कम्पनी बनकर इस क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया है और वहां पर मेट्रो का निर्माण भी शुरू हो चुका है. यह सही है कि जिस तरह से राज्यों को इस क्षेत्र के लिए संसाधनों की आवश्यकता है वह उनके पास उपलब्ध नहीं है ऐसे में केंद्र सरकार अपने शहरी विकास कार्यक्रम के तहत बड़े शहरों में यातायात की सुविधा बढ़ाने के लिए अपनी तरफ से मदद भी कर सकती है.
         राज्यों को अब इस मामले में अपने यहाँ स्थिति या फिर देश के बड़े उद्योगपतियों से भी संसाधनों को जुटाने के बारे में विचार करना चाहिए जिससे उसके पास इस तरह की परियोजनाओं के लिए धन की कमी भी न रहे या फिर इस तरह की परियोजनाओं को निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ चलाने पर भी विचार किया जाना चाहिए. अभी तक जो कुछ भी होता है उसमें राजनीति ही हावी रहा करती है और इस तरह की बड़ी परियोजनाओं को चलाने में जिस तरह की दृढ़ इच्छा शक्ति राज्यों के नेतृत्व में होनी चाहिए वह कहीं से भी दिखाई नहीं देती है. राज्यों में चाहे किसी भी दल की सरकार क्यों न हो पर आज तक देश में भविष्य की वास्तविक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर कहीं भी योजनाओं को नहीं बनाया जाता है जिस कारण से भी हर नयी सरकार अपने अनुसार कुछ भी करना शुरू कर देती है जबकि किसी भी राज्य या शहर की मूल भूत समस्याएं हमेशा ही एक जैसी रहा करती हैं और उन पर किसी भी दल की सरकार के आने या जाने से कोई अंतर नहीं पड़ता है फिर भी आज हमारे पास उस सोच और दृष्टि की कमी बनी हुई है जो हमारे शहरों को विकास के मार्ग पर आगे बढ़ा सकती है.
          सबसे पहले केंद्र सरकार को बड़े शहरों के विकास के बारे में एक योजना तैयार करनी चाहिए और उसमें राज्यों की पूरी भागीदारी भी होने चाहिए क्योंकि जो योजना गाज़ियाबाद में काम कर सकती है हो सकता है कि हैदराबाद में उसकी ज़रुरत ही नहीं हो फिर केंद्र द्वारा शहरों को सुधारने के लिए एक ही तर्ज़ पर कैसे काम कर सकती है ? राज्यों से उनकी ज़रूरतों के हिसाब से अगले ३० वर्षों के लिए योजनों पर विचार करने के लिए प्रस्ताव आमंत्रित किये जाने चाहिए और फिर उन अपर विशेषज्ञ समिति अपनी राय बताये और साथ ही उस पर अमल करने में कितना खर्च होने वाला है और से कहाँ से जुटाया जायेगा इस बारे में भी पहले से ही तय कर लिया जाये. इस तरह के कामों को दिल्ली मेट्रो की तर्ज़ पर एक समय सीमा में करने को एक आवश्यकता के रूप में लिए जाये जिससे विभिन्न राज्यों की एजेंसियों द्वारा कभी किसी परिस्थिति में सहयोग न किये जाने पर भी इसे पूरा करने की तरफ आसानी से बढ़ा जा सके ? केंद्र अगर कोई योजना अपनी तरफ से भेजती है तो कम जवाबदेही होने के कारण अब राज्यों के अधिकारी उनमें कम दिलचस्पी लेते हैं जिससे इस तरह की योजनाओं का पूरी तरह से सफल हो पाना ही संदिग्ध हो जाता है. जब आज भारत एक वैश्विक ताक़त बन रहा है तो क्या हम इस तरह से अनियंत्रित तरीके से आगे बढ़ पाने में सफल हो सकेंगें ? नहीं क्योंकि जब तक हम अपनी पूरी क्षमता से पूरे देश में उपलब्ध संसाधनों का सही दिशा में उपयोग करना नहीं सीख पायेंगें तब तक हमारे कुछ बड़े शहर ही इस तरह से विकास की दौड़ में इंडिया बनकर आगे चले जाएंगे और बाकी के पिछड़े भारत के रूप में कहीं बहुत पीछे ही छूट जायेंगें.    
      
  
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