मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

अब मुफ्त जेनरिक दवाएं भी

      केंद्र सरकार ने १२वीं योजना में २७ हज़ार करोड़ रुपयों की धनराशि खर्च करके देश के ज़रुरत मंदों तक अच्छी गुणवत्ता की जेनरिक दवाइयों की उपलब्धता करने का एक महत्वकांक्षी प्रस्ताव तैयार किया है. इस प्रस्ताव के अंतर्गत देश के बीमार लोगों के लिए मुफ्त में जेनरिक दवाओं को सरकार राज्य सरकारों के सहयोग से उपलब्ध करने की योजना चलाएगी और इसमें २० हज़ार करोड़ रूपये केंद्र तथा ७ हज़ार करोड़ रूपये राज्यों द्वारा वहन किये जायेंगें. यह भी पता चला है की सरकार ने मुफ्त दवाओं के इस प्रस्ताव को पिछले वर्ष ही मंज़ूरी दे दी थी पर इस वर्ष इसके लिए धनराशि के आवंटन के साथ ही इसकी घोषणा की गयी है जबकि पिछले वर्ष इसके अनुमोदन के समय इसका प्रचार प्रसार नहीं किया गया था. देश के सभी सरकारी अस्पतालों से किसी भी रोगी को डाक्टर का परचा दिखाकर यह दवाएं मिल सकेंगीं और साथ ही सरकारी डाक्टरों पर इस बात का दबाव भी बनाया जायेगा कि वे इन्हीं दवाओं को लिखें और उन पर बाज़ार की ब्रांडेड दवाइयों के लिखने पर भी पाबन्दी लगायी जाएगी.
         सरकार के इस कदम से जहाँ ब्रांडेड दवाइयों के व्यापार करने वाली उन कंपनियों में निराशा है जो भारत को एक बड़े बाज़ार के रूप में देखती हैं पर साथ ही भारतीय फार्म उद्योग ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है. इस तरह की बड़े बजट वाली किसी भी योजना में सबसे बड़ी आवश्यकता इस बात की होती है कि इसे पूरी पारदर्शिता के साथ चलाया जाये क्योंकि जब इतने बड़े पैमाने पर दवाओं की खरीद की जाएगी तो उसमें बड़े घोटाले होने की भी संभावनाएं बढ़ जायेंगीं. इस मामले में सरकारी खरीद को पूरी तरह से ऐसा बनाया जाना चाहिए कि कोई आसानी से इस धन का दुरूपयोग न कर सके. इसके लिए सबसे अच्छी बात यह रहेगी कि सरकारी क्षेत्र की दवा कम्पनियाँ जो आज के समय में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रही हैं अगर सरकार उनको भी कुछ पैकेज देकर पुनर्जीवित करने की कोशिश करे तो जहाँ एक तरफ़ लाखों कर्मचारियों के भविष्य को संवारा जा सकेगा वहीं दूसरी तरफ़ सरकारी नियंत्रण में बनने वाली इन दवाओं में गुणवत्ता पर भी आसानी से नियंत्रण रखा जा सकेगा.
          देश में जिस तरह से अच्छी योजनायें बनती है अगर उनके अनुपालन में भी उसी तरह की ईमानदारी दिखाई जाये तो आने वाले समय में देश में विकास की गति और भी तेज़ी पकड़ सकती है. अभी तक जिस तरह से कुछ सरकारी अधिकारियों के हाथों में ही चिकित्सा विभाग की पूरी खरीद रहती है उस स्थति को बदला जाना चाहिए. ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि किसी सरकारी कंपनी को पुनर्जीवित करने में दवाओं की गुणवत्ता के साथ कोई समझौता किया जाये ? इन दवा कम्पनियों के प्रबंधन को साफ़ तौर पर यह बता दिया जाना चाहिए कि अब इस बड़े व्यवसाय को पाने के लिए उनके पास भी देश भर की केंद्र और राज्य सरकारों की कम्पनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता आनी चाहिए क्योंकि सरकार एक बार ही इस तरह से मदद देकर दवाओं को खरीदेगी उसके बाद किसी के लिए भी खुले बाज़ार की तरह संभावनाएं खोल दी जायेंगीं. जिससे देश के सरकारी क्षेत्र की दवा वाली कंपनियों के लिए आगे बढ़ने का अवसर भी खुला रहे और गुणवत्ता के साथ भी किसी तरह का समझौता न करना पड़े.
                              
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