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शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

पेट्रोलियम सब्सिडी और राजनीति

                  डीज़ल के दामों में बाज़ार के हिसाब से सुधार करने की कोशिश के चलते एक बार फिर से केंद्र सरकार ने इसके दामों में ५ रूपये की बढ़ोत्तरी की है और साथ ही साल में केवल ६ सिलेंडर ही सब्सिडी के अनुसार देने और बाक़ी बाज़ार के मूल्य के हिसाब से देने की जो कोशिश की है उसका राजनीतिक तौर पर निश्चित ही पूरे देश में विरोध होगा पर आर्थिक दृष्टिकोण से यह एकदम उचित और भविष्य के लिए सही कदम है. विभिन्न राजनैतिक दलों के द्वारा इस कदम का कड़ा विरोध किया जाना है पर सरकार के पास क्या कोई अन्य विकल्प भी हैं जिन पर चलकर वह मंहगें खरीदे हुए तेल और गैस को सस्ते दामों पर बेच सके इस बात पर कोई भी नेता या दल अपनी राय नहीं देना चाहता है ? देश की सबसे बड़ी समस्या यही है कि आम जनता आज भी नेताओं के द्वारा दिखाए जाने वाले झूठे आंकड़ों पर विश्वास कर लेती है और उसे वास्तविक स्थिति का सही अंदाज़ा ही नहीं होने पाता है ? यह सही है कि सरकार के पास गरीबों की सुविधा के लिए कदम उठाने की पूरी छूट होती है फिर कुछ राजनैतिक महत्वकांक्षाएं देश हितों पर हमेशा से ही भारी पड़ती रहती हैं और जिससे सही दिशा में नीति बनाकर काम करने की सरकारी मंशा पर पानी फिर जाता है.
        यह सभी को पता है कि देश की ज़रुरत के अनुसार हमारे पर प्राकृतिक पेट्रोलियम संसाधन नहीं है फिर भी हम यह कैसे मान सकते हैं कि हमें बाज़ार के मूल्य से कम मूल्य पर कोई दैनिक उपभोग की सामग्री मिल सकती है ? क्या हम आज चीनी, सीमेंट, अनाज और अन्य आवश्यक उपभोग की वस्तुओं पर सब्सिडी चाहते हैं जिन लोगों ने चीनी और सीमेंट पर नियंत्रण का युग देखा है उनसे पूछना चाहिए कि उन्हें वह सरकारी नियंत्रण वाला दौर पसंद था या आज के समय का जब यह वस्तुएं बाज़ार के नियंत्रण में हैं ? निश्चित तौर पर आज का ही अच्छा है क्योंकि जब भी हमें आवश्यकता होती है हम बाज़ार से इन चीज़ों को खरीद सकते हैं ठीक उसी तरह से यदि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को भी बाज़ार के आधीन कर दिया जाये तो आने वाले समय में इस तरह की समस्याएं ही नहीं खड़ी होंगीं. आज राजग के लोग यह कहते हैं कि उनके समय में तेल और गैस सस्ती थी पर आज मंहगी है तो तथ्य वे भी जानते हैं कि तब जो कच्चा तेल ३५ डॉलर प्रति बैरेल के हिसाब से आता था आज वह ११० डॉलर से ऊपर ही चल रहा है तो ऐसे में कोई भी सरकार आ जाये अगर उसे सार्वजनिक क्षेत्र की इन कम्पनियों को बचाना है तो बाज़ार के अनुसार इन पदार्थों के मूल्यों का निर्धारण तो करना ही होगा.
        हो सकता है कि इस पूरे मसले में भी कोई ख़ामी हो पर आज तक इसे सुधारने के लिए या इसकी कमियों को दूर करने के लिए किसी भी राजनैतिक दल या सांसद ने कोई आवाज़ नहीं उठाई है इससे यही लगता है कि पुराने समय से जो नीतियां चली आ रही हैं वे आज भी कारगर हैं और आने वाले समय में इनका विकल्प ढूँढने में हमारे आज के नेता पूरी तरह से असफल साबित हुए हैं. पेट्रोलियम क्षेत्र में दी जा रही सब्सिडी का जितने बड़े पैमाने पर दुरूपयोग किया जा रहा है उसका कोई जवाब किसी के पास नहीं है. घरेलू गैस से हम आप ही अपनी कारें चलाने के लिए हमेशा ही लालायित रहते हैं और जिस तरह से सरकार अभी तक रिफिल देने में कोई कोताही नहीं करती थी उस नीति का भी जमकर दुरूपयोग किया जाने लगा है जिससे अब यह स्थिति भी आ गयी है कि केवल ६ सिलेंडर ही सब्सिडी के साथ मिलेगें और बाक़ी बाज़ार के मूल्य के अनुसार खरीदने पड़ेंगें. इस मामले में जब नीति परिवर्तन किया जा रहा था तो सरकार को प्रारंभ में केवल ८ सिलेंडर देने चाहिए थे और उसके बाद ही इस सब्सिडी के बिना आपूर्ति करनी चाहिए थी पर सरकार भी जानती है कि इस मसले पर अभी बहुत हो हल्ला होना है तब वह कुछ परिवर्तन करने की स्थिति में रहे और सिलेंडर ६ से बढ़ाकर ८ कर दे. जनता को भी अब यह समझना ही चाहिए कि किसी भी तरह के लोकलुभावन तरीकों से दीर्घकालीन नुकसान आम जनता का ही होता हो सरकार चाहे राजग चलाये या संप्रग ग़लत नीतियों का खामियाज़ा हमेशा जनता जो ही भुगतना पड़ता है.          
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