मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 22 सितंबर 2012

कारगिल युद्ध और ख़ामियां ?

               अमेरिका के एक तथाकथित थिंक टैंक ने कारगिल युद्ध के समय भारतीय सेना में सामंजस्य की जिस कमी के बारे में खुलासा किया है उसके बारे में हम सभी भारतीय उस युद्ध के समय सच्चाई देख ही चुके हैं. भारतीय सेनाओं की तैयारियां कभी भी कमज़ोर नहीं होती हैं क्योंकि जिन परिस्थितियों में हमारे जवान अपने काम को मुस्तैदी से अंजाम देते हैं उनमें दुनिया की किसी भी सेना से इससे अच्छे की उम्मीद नहीं की जा सकती है. कारगिल युद्ध के बारे में देश में बहुत सारा कीचड़ पहले ही उछाला जा चुका है क्योंकि किसी भी परिस्थिति के अचानक सामने आ जाने पर हमारा राजनैतिक तंत्र किस हद तक नाकारा साबित हो जाता है यह हम कई बार देख चुके हैं. भले ही वह देश के किसी हिस्से में होने वाले आतंकी हमले की बात हो या कंधार विमान अपहरण कांड या फिर कारगिल घुसपैठ की हमारे नेता दिल्ली की सत्ता हाथ में आने पर दिल्ली को ही पूरा देश समझ लेते हैं जिससे कई बार देश में क्या हो रहा है इसका अंदाज़ा भी किसी को नहीं हो पाता है. वैसे देखा जाये तो इस अमेरिकी खुलासे में कुछ भी नया नहीं है उस समय पाक से दोस्ती मज़बूत करने के लिए अटल सरकार प्रयासरत थी और अतिउत्साह में उसने पाक की फ़ितरत के बारे में अपनी आँखें मूँद रखी थीं जो कि देश और सरकार के लिए कई बार आलोचना और शर्म का कारण बनी.
            भारतीय सेना ने १९७१ में जो कर दिखाया था वैसा आज तक दुनिया की कोई भी सेना नहीं कर सकी है पर उस समय और आज के समय में केवल एक ही अंतर हैं कि तब इंदिरा गाँधी जैसी नेता थीं जिन्होंने सेना को पूरी तरह से विश्वास में लेकर अमेरिकी धौंस की परवाह न करते हुए भी सेना को अपना काम करने की पूरी छूट दी थी जिसके बाद सेना ने वह गौरवशाली इतिहास लिख दिया था. आज भी सेना में कोई का कमी नहीं है पर सेना के लिए दिशा निर्देश तो सरकार ही देती है और राजनैतिक रूप से अक्षम सरकारें कैसे काम करती हैं यह पिछले दो दशकों से हम सभी देख ही रहे हैं. पाक और चीन का गठजोड़ भारत के लिए बहुत ही ख़तरनाक है और चीन भारतीय सेना से सीधे लड़ने के बजाय पाक को संसाधन उपलब्ध करा देता हैं जिससे जिहाद और नया नामों पर पाक अपने यहाँ के लोगों को भड़का कर भारत के ख़िलाफ़ कुछ न कुछ करने में लगा रहता है. अभी चीन की समझ में यह नहीं आ रहा है पर जब इसी पाक के आतंकी उसके यहाँ अपनी विस्तारवादी नीतियों के साथ घुसने की कोशिश करेंगें तब चीन के लिए भी बहुत मुश्किलें आने वाली हैं.
        भारतीय सेना को एक एकीकृत कमान की आवश्यकता है जिससे आवश्यकता पड़ने पर सेना के तीनों अंगों में बेहतर सामंजस्य बिठाया जा सके और किसी भी संभावित युद्ध में कम शक्ति के साथ कड़ा प्रतिरोध किया जा सके. इसके लिए सरकार को ही प्रयास करना होगा और सेना के तीनों अंगों के संयुक्त अभ्यास को वरीयता देनी ही होगी जिससे ऐसी किसी भी परिस्थिति में सेना का प्रदर्शन एक समग्र हमले के रूप में दिखाई दे. कारगिल युद्ध के समय भी जिस तरह से हिचकिचाहट में वायु सेना को हाथ बाँध कर काम करने को कहा गया था उसके परिणाम स्वरुप भी वह पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाई थी अब इस कमी के लिए वायु सेना नहीं बल्कि तत्कालीन राजनैतिक नेतृत्व ही ज़िम्मेदार है. कारगिल में सेना को जिस मुश्किल में हमारे नेताओं ने उलझा दिया था वह कोई युद्ध में मिली विजय नहीं थी बल्कि कूटनीतिक स्तर पर किये गए प्रयासों के बाद हमलावरों को जाने देने के समझौते के बाद सेना के लिए निकाला गया एक रास्ता मात्र थी. सेना को तब भी स्पष्ट आदेश नहीं थे और ऐसे मौकों पर सेना के लिए काम करने के लिए जिस तरह से सरकार की तरफ़ मजबूरी में ताकना पड़ता है वह भी कई बार सेना के मनोबल को तोड़कर उसकी क्षमता को प्रभावित कर देता है. अमेरिका में कही गयी ये बातें कोई नयी नहीं है और अब हमारे नेताओं पर ही सब निर्भर करता है कि वे आख़िर किस तरह से सेना को वर्तमान तंत्र में दक्षता को बढ़ाने वाले कदम उठाने के लिए कितनी स्वतंत्रता देते हैं ?  
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