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मंगलवार, 13 नवंबर 2012

बहु-सदस्यीय कैग ?

             सरकार के काम काज पर गंभीर टिप्पणियां करने के बाद जिस तरह से कैग को बहुसदस्यीय बनाने की सरकारी मंशा पर विवाद होने के बाद सरकार की तरफ से केन्द्रीय मंत्री नारायणसामी ने स्पष्टीकरण दिया उसकी कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि यदि देश हित में कोई बदलाव अच्छा काम कर सकता है तो उस पर तुरंत निर्णय लिए जाने की आवश्यकता है. यदि संवैधानिक संस्थाओं की मजबूती के लिए वहां पर इस तरह की व्यवस्था कर दी जाए कि वर्तमान प्रमुख के बाद सामान्य परिस्थितियों में वरिष्ठता के आधार पर कौन उस पद पर बैठेगा तो यह देश के लिए अच्छा ही होगा और इस बात को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देखे जाने की आवश्यकता है क्योंकि हमारे देश के राजनैतिक स्वरुप में आज भी उतनी समझ नहीं आ पायी है जो देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक है. विपक्ष का काम किसी भी परिस्थिति में सरकार के ग़लत काम काज पर ऊँगली उठाना होता है पर देश में यह के परंपरा सी बन चुकी है कि सरकार जो भी करे उसका विरोध करना शुरू कर दिया जाये भले ही उससे लम्बे समय में देश के हित प्रभावित हो जाएँ ? अब देश के राजनैतिक तंत्र को इस तरह की बचकानी हरकतों को छोड़कर नए तरह से सोचने की आवश्यकता है.
           कैग जैसी संवैधानिक संस्था को जब से बहुसदस्यीय बनाये जाने का प्रस्ताव सामने आया है उसके बाद से ही देश में इसे लेकर राजनीति बहुत गरमा गयी है क्योंकि अभी तक इस संस्था के वर्तमान प्रमुख ने जिस तरह से संप्रग सरकार को विभिन्न मुद्दों पर नियमों के चलते राजस्व में हानि के कारण घेरा है तो इस स्थिति में सरकार द्वारा कैग के वतमान स्वरुप से किसी भी तरह की छेड़छाड़ पर यह सब तो होना ही है. दो दशक पहले जब टी एन शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया था तब भी विपक्षी दलों ने इस तरह के आरोप लगाये था कि शेषन पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गाँधी के सुरक्षा प्रमुख रह चुके हैं इसलिए वे चुनाव के समय कांग्रेस का पक्ष लेंगें जबकि देश का इतिहास गवाह हैं कि शेषन के द्वारा चुनाव आयोग को सशक्त करने की कोशिश ने आज इस संस्था को चुनाव के समय सबसे शक्तिशाली संस्था बना दिया है और यहाँ तक कि राज्य या केंद्र कोई भी सरकार अब चुनाव के समय चुनाव आयोग से कोई टकराव मोल नहीं लेना चाहती हैं ? फिर जब चुनाव आयुक्तों की संख्या बढ़ाये जाने की बात हुई तो विपक्षियों ने कांग्रेस पर यह आरोप लगाया कि वह बहुमत के फैसले से ईमानदार मुख्य चुनाव आयुक्त के पर कतरना चाहती है और आज किसके पर कतरे जा रहे हैं हैं यह पूरा देश देख रहा है.
          कैग को बहुसदस्यीय बनाने के लिए सरकार को संविधान संशोधन करना होगा जिसके लिए उसके पास बहुमत नहीं है फिर भी सभी दलों को इस संस्था को बहुसदस्यीय बनाये जाने के लिए शुंगलू समिति की मंशा के अनुसार काम करना चाहिए क्योंकि जब तक देश से जुड़े मुद्दों को समान आधार पर राजनैतिक लाभ हानि से आगे आकर नहीं समझा जायेगा तब तक संस्थाए कुछ भी कहती रहेंगीं पर सरकारें अपने मन की करती रहेंगीं. देश को मज़बूती से काम करने वाले लोगों से लैस संस्थाओं की आवश्यकता है क्योंकि राजनैतिक दलों में जी हज़ूरी करने वालों की कोई कमी नहीं है. यदि कैग में कई सदस्य होते हैं तो उन्हें पहले से ही आगे बढ़कर काम करने का अनुभव हो जायेगा और इस संस्था के प्रमुख पर जितना भार होता है वह भी कई हिस्सों में बाँट जायेगा जिससे काम करने में कुछ आसानी होने के साथ काम में तेज़ी भी आ जाएगी. देश की सरकारों के काम काज पर नज़र रखने वाली इस दृष्टि में और पैना पन लाने के लिए इसे सभी दलों को बहुसदस्यीय बनाने पर विचार करना चाहिए और यदि इस परिवर्तन से काम करने में बेहतरी न हो या कोई सरकार इसका अनुचित लाभ उठाने की कोशिश करे तो एक और संविधान संशोधन करके इसे वापस भी लिए जाने का विकल्प हमेशा खुला ही तो है फिर इस बात को इतना अधिक तूल देने की क्या आवश्यकता है.           
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