मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 30 दिसंबर 2012

दिल्ली पुलिस और किरण बेदी

            कुछ लोगों की दरिंदगी के बाद देश को अपने इतिहास के सबसे शर्मनाक दृश्य की गवाह बनाने के बाद जिस तरह से एक अबोध लड़की ने इस दुनिया को विदा कहा उसके बाद से पूरे देश में इस जघन्य अपराध की पीड़ितों के बारे में जिस तरह से चिंता अचानक ही उठ खड़ी हुई है उसकी बहुत आवश्यकता थी. अब जब पूरे देश के नाकारा राजनैतिक तंत्र के सामने अपनी पहचान बचाने का संकट आ गया है तो सभी हलकों से कुछ ठोस किये जाने की बातें की जाने लगी हैं. इस क्रम में सबसे महत्वपूर्ण सुझाव दिल्ली पुलिस के साथ लम्बे समय तक काम कर चुकी पूर्व पुलिस अधिकारी किरण बेदी की तरफ़ से आया है उनका यह कहना है कि यदि उन्हें ९० दिन का समय दे दिया जाये तो वे दिल्ली पुलिस का चेहरा बदल सकती हैं और लोगों को यह अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई भी देगा ? जब तक किरण पुलिस सेवा में थीं तब तक उन्होंने निसंदेह दिल्ली पुलिस के बहुत सारे कामों में बहुत क्रांतिकारी बदलाव भी किये थे पर जब उनके पास दिल्ली पुलिस के मुखिया की कुर्सी पर बैठने का समय आया तो शायद वे जोड़ तोड़ में कुछ पीछे रह गईं या फिर अधिकारियों और नेताओं की उनसे त्रस्त फौज़ ने उनसे पीछा छुड़ाने का रास्ता ढूंढ कर उन्हें इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया ?
       अब जब किसी भी अन्य उपाय से दिल्ली पुलिस की छवि को बदलने में सफलता नहीं मिल पा रही है तो आख़िर किस तरह से ९० दिनों में किरण कोई जादू करने का दावा कर रही हैं ? आज भी दिल्ली पुलिस को देश में कुशल पुलिस बल के रूप में जाना जाता है और वहां पर आज भी काम करने की कोई संस्कृति तो है ही वर्ना देश के अन्य राज्यों में पुलिस कैसे काम करती है यह सभी को पता है. सबसे पहले पुलिस सुधार को लागू करने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक पुलिस के कन्धों पर से अनावश्यक काम के बोझ को नहीं हटाया जायेगा तब तक वह किस भी तरह से अच्छा काम कर पाने की स्थिति में नहीं पहुँच पायेगी. दिल्ली पुलिस के पास जिस तरह से विभिन्न तरह के काम होते हैं उनको भी उससे वापस लेना चाहिए और केवल नागरिक सुरक्षा से जुड़े हुए मुद्दों के लिए ही उसका मुख्य रूप से उपयोग किया जाना चाहिए. देश की विभिन्न सरकारों के पास अन्य कामों में पानी की तरह बहाने के लिए धन हमेशा ही रहता है पर जब पुलिस बल के आधुनिकीकरण और उसके लिए नयी तरह की मानवीय ट्रेनिंग की बात की जाती है तो सरकारों के पास हमेशा ही धन की कमी हो जाती हैऔर वे इसके लिए केंद्र सरकार से धन उपलब्ध कराने की बातें करने लगती हैं.
             जिस तरह से पिछले कुछ समय से किरण बेदी मुखर रूप से केंद्र और दिल्ली सरकार पर हमले कर रही हैं उस स्थिति में ऐसा तो नहीं लगता है कि उनको सरकार की तरफ़ से दिल्ली पुलिस को सुधारने के काम में लगाया जायेगा और केवल सरकार ही नहीं वरन दिल्ली पुलिस के वर्तमान अधिकारी भी यह कभी नहीं चाहेंगें कि किरण बेदी एक बार फिर से उनके ऊपर आदेश देने के लिए बैठ जाएँ इसलिए इस पेशकश का ठन्डे बस्ते में जाना तो तय ही है पर इस तरह के किसी प्रयोग को करने में कोई बुराई भी तो नहीं है. प्रयोग के तौर पर अभी तक पुलिस बल को अच्छे से सँभालने वाले सेवा निवृत्त कर्मठ अधिकारियों के एक पैनल की नियुक्ति कर पूरे देश में पुलिस सुधारों के बारे में बात की जा सकती है क्योंकि किसी अन्य क्षेत्र के व्यक्ति के इसमें जुड़ने से वह पुलिस के सामने आने वाली उन कठिनाइयों के बारे में सही ढंग से विचार विमर्श नहीं कर पायेगा जो पुलिस से जुड़े लोग कर सकते हैं. देश के विभिन्न राज्यों के पूर्व पुलिस अधिकारियों के सहयोग से कुछ ऐसा किया ही जाना चाहिए जिससे पूरे देश की पुलिसिंग में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सके. देश के नेता कुछ अधिकारियों के चंगुल से बाहर निकल कर धरातल पर खड़े होकर कुछ ठोस करने के बारे में सोच भी सकते हैं जिसकी अब बहुत आवश्यकता है.    
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1 टिप्पणी:

  1. किरण जी जो कहती हैं कर भी सकती हैं बशर्ते उन्हें अवसर दिए जाएँ बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति भारत सरकार को देश व्यवस्थित करना होगा .

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