मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 16 जनवरी 2013

"ठीक है" नहीं "ठीक कर देंगें"

                               जिस तरह से पीएम मनमोहन सिंह ने पाक सेना द्वारा भारतीय सैनिकों के साथ किये गए बर्बर कृत्य की निंदा की गयी और सम्बन्धॊ को नए सिरे से सोचने पर विचार की बात कही गयी है उससे यही लगता है कि अब सरकार के स्तर पर कुछ ऐसा सोच लिया गया है जो आम भारतीय भावनाओं के अनुरूप है और इसी कड़ी में पाक के साथ बहु प्रचारित वीसा समझौते को भी तकनीकी पहलुओं का हवाला देकर टाल दिया गया है. भारत की १९४७ से ही पाक से सम्बन्ध सामान्य रखने की जो भी कोशिशें विभिन्न सरकारों द्वारा की गयी हैं उनका अभी तक कोई भी सकारात्मक रूप सामने नहीं आ पाया है और जब तक पाक की सेना, सेना समर्थित आतंकियों और इस्लाम के नाम पर भारत को बर्बाद कर देने की मानसिकता वहां के नागरिकों में भाड़े के लोगों द्वारा भरी जाती रहेंगीं तब तक किसी भी स्तर पर सामान्य संबंधों की बातें करना ही बे-ईमानी होगी. पाक में जिस तरह से उसके बनने के साथ ही भारत विरोधी भावनाओं को उकसाने का काम वहां के नेताओं और सेना ने किया है उसके बाद अब वहां आने वाली हर पीढ़ी उसी नशे का शिकार है और जब पाक के लोग अपने साथ ही आज़ाद हुए भारत की तरक्की देखते हैं तो उन्हें कहीं न कहीं से अपने शासकों पर गुस्सा भी आता है पर आज जिस तरह का मकड़जाल वहां पर बुना जा चुका है अब उससे निकल पाने का कोई अन्य अवसर भी उनके पास नहीं बचा है.
                जिस तरह से पाक में एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद वहां के कमज़ोर लोकतंत्र की धज्जियाँ उड़ती दिखाई दे रही हैं उस परिस्थिति में अब भारत के साथ बिगड़ते संबंधों के इस दौर में एक बार फिर से वहां पर सैन्य शासन लागू होने का खतरा बढ़ गया है. आज के भारत-पाक संबंधों को देखते हुए यह कहना मुश्किल नहीं है कि पाक में किसी भी संकट के समय सेना जिस तरह से आगे आकर अपने को देश पर थोप देती है वही दृश्य एक बार फिर से दोहराया जा सकता है ? फिलहाल अभी तक वहां के सेनाध्यक्ष की कोई ऐसी शासन करने की महत्वाकांक्षा सामने नहीं आई है और उन्होंने जब से पद संभाला है तब से कुछ भी ऐसा नहीं दिखता जो उनकी राज करने की छिपी हुई मंशा को दर्शाता हो फिर भी सेना में कब कौन अधिकारी किस तरह से क्या कर दे यह कोई नहीं जनता है. भारत के साथ सेना की हरकतों के कारण बिगड़ते हुए संबंधों के बीच पाक सेना की पूरी कोशिश होगी कि किसी तरह से भारत के साथ सम्बन्ध सामान्य न होने पायें जिससे उन्हें एक बार फिर से भारत का ख़तरा दिखा कर अपने को सही साबित करने का मौका मिल जाए और अगले किसी बड़े अंतर्राष्ट्रीय दबाव के आने तक सेना एक बार फिर से वहां पर राज कर सके ?
                                    भारत सरकार को अब केवल पहले हमला न करने की नीति पर भी फिर से विचार करना चाहिए क्योंकि अभी तक जो भी पहले हमला न करने की नीति है वह ज़रुरत से ज्यादा नरम है इसीलिए पाक को यह लगता है कि भारत न तो पहले हमला करेगा और न ही किसी इस तरह की हरक़त पर आगे बढ़कर कुछ करेगा बस इसी स्थित का हमेशा पाक द्वारा लाभ उठाया जाता है. आख़िर देश रक्षा बजट पर जो कुछ भी खर्च करता है उसका क्या मतलब और उद्देश्य है यदि हमारा पड़ोसी दुश्मन इस तरह की हरकतें करने से बाज़ ही नहीं आता है. एक बार पाक की इस तरह की किसी भी हरक़त पर भारत उसे मुंहतोड़ जवाब दे दे तो आने वाले समय में कुछ भी करने से पहले पाक सोचने पर मजबूर हो जायेगा क्योंकि अभी तक उसे यह लगता है कि अपने स्वभाव के कारण ही भारत पाक के ख़िलाफ़ इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं करेगा ? शांति की बातें बहुत हो चुकी हैं पाक को उसकी किसी भी हरक़त पर "ठीक है" के स्थान पर "ठीक करने" की नीति पर काम करना होगा साथ ही देश के राजनैतिक दलों को अनावश्यक बयानबाज़ी से भी बचना ही होगा क्योंकि सामरिक मुद्दों पर सार्वजनिक रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है साथ ही सेना का मनोबल तोड़ने की किसी भी हरक़त पर देश को सेना के साथ खड़े दिखाई देना चाहिए. मनमोहन के बयान में देरी का आरोप लगाना भी कहीं से उचित नहीं है क्योंकि सेना और विपक्षी दल अपने मंचों पर अपनी बात कभी भी कहीं भी कह सकते हैं पर जब देश के प्रधानमंत्री को बोलना या कुछ करना पड़ता है तो यह वहां पर बैठे व्यक्ति सभी सैन्य, राजनैतिक और कूटनैतिक बातों को समझ कर ही बोलना पड़ता है. अनिर्णय की स्थिति अच्छी नहीं होती क्योंकि इसी तरह से कारगिल युद्ध के समय भी वायु सेना को आदेश देने में अटल बिहारी की देरी ने भारतीय जवानों को काल के गाल में धकेल दिया था.      
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. पहले अपना देश तो ठीक कर लें. अटल जी ने जो किया सो किया अब तो सुधरने की नेक सलाह दें दें डाक्टर साहब.

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