मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 7 जनवरी 2013

अकाल तख्त और राजनीति

                    देश में एक बार फिर से १९८४ की घटना को लेकर सिख राजनीति की गरमाने का काम किया जा रहा है जिसकी आज के समय में कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि अब जब देश अपनी उस पुरानी कड़वाहट को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना सीख चुका है तो ऐसी परिस्थिति में एक बार फिर से पुराने ज़ख्म को कुरेदने का कोई मतलब नहीं है. हालंकि आज भी पंजाब में और दिल्ली में इस घटिया राजनीति के शिकार हुए हिन्दू और सिख परिवारों को न्याय की आस है और वे भारतीय कानून की तरफ देख रहे हैं पर जिस तरह से कानून की धीमी गति है उसे देखते हुए समय से हमें आज तक कभी भी न्याय नहीं मिला है. ऐसी स्थिति में जिस तरह से अकाल तख्त ने इंदिरा गाँधी के हत्यारों को सम्मान दिया वह आज के पंथिक राजनीति की मजबूरियों को ही दिखता है. एक समय धर्म को इसी तरह से राजनीति के मैदान में आमंत्रित किया गया था जिसका खामियाज़ा पूरे पंजाब के साथ देश ने भी पूरे दशक भर झेला और इस पूरी कवायद में जिस तरह से पंजाब में निर्दोष हिदुओं और देश के अन्य भागों में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद सिखों पर ज़ुल्म हुए वैसा कभी भी देखने को नहीं मिला.
                  पूरे देश में जिस तरह से राजनेता अपने लाभ के लिए धार्मिक नेताओं का दुरूपयोग किया करते हैं उससे भी पूरे माहौल में कड़वाहट घुलती है और उससे बचने का एक ही तरीका हो सकता है कि देश की जनता इतनी परिपक्व हो जाये और वह किसी भी परिस्थिति में कभी भी इस तरह से नेताओं को धार्मिक गुरुओं और अन्य लोगों का दुरूपयोग नहीं करने दे पर देश में शिक्षा का जो स्तर है उसे देखते हुए कोई भी नेता अपने क्षुद्र स्वार्थों के लिए कभी भी धर्म का बड़े पैमाने पर दुरूपयोग कर सकता है ? इंदिरा गाँधी के समय में देश के राजनैतिक नेतृत्व ने जो गलतियाँ की थीं उन्होंने उसका खामियाज़ा भी भुगता फिर आज के समय में इस तरह से एक बार फिर से उन्हीं घावों को कुरेदकर देश को क्या मिल सकता है ? सिख देश की ही नहीं दुनिया की सबसे जीवंत कौम है और उसने भारत के लिए जो कुछ भी किया है उसे बार बार दोहराने की ज़रुरत भी नहीं है क्योंकि इस तरह की बातें करके लोग उनके सम्मान पर चोट पहुंचाते हैं जिसके लिए यह स्वाभिमानी कौम कभी भी तैयार नहीं हो सकती है. देश को बनाने में पिछली ५ से भी अधिक सदियों से सिखों और उनके गुरुओं ने जो त्याग और बलिदान किये हैं उन्हें याद करने और उनके प्रति आदर का भाव रखने की ज़रुरत है न कि उन पर संदेह जताने का ?
                आज एक बार फिर से देश में इस तरह की भावनाएं भड़काने का काम किया जाने लगा है जिसके बाद कुछ लोग इसका दुरूपयोग फिर से शुरू कर सकते हैं ऐसे में सभी को यह ध्यान रखना ही होगा कि पंजाब में एक बार बहुत सारे बलिदानों के बाद मिली इस शांति को बनाये रखना है या कुछ स्वार्थों की लिए उसे एक बार फिर से दांव पर लगाना है ? पिछले कुछ वर्षों से कश्मीर में आतंकियों की गतिविधियों पर नियंत्रण हो जाने कारण अब पाकिस्तान के लिए वह पर नफ़रत फैलाना उतना आसान नहीं रह गया है इसलिए एक बार फिर से वह विदेशों में बसे सिखों के माध्यम से यहाँ की अकाली राजनीति में दख़ल देकर पंजाब को फिर से बुरे दौर की तरफ धकेलना चाहता है ऐसे में अब यह सारी ज़िम्मेदारी पंजाब के लोगों पर आ जाती है कि वे अपने विवेक से काम लें और इस तरह की किसी भी बात को अधिक महत्त्व न दें. एक बार पवित्र हरमंदिर साहब की शान में आतंकियों और सुरक्षा बलों की तरफ से गुस्ताखी की जा चुकी है अब उसे दोहराने की ज़रुरत नहीं है जिन पर धर्म को बचाए रखने का ज़िम्मा है कम से कम वे तो सही तरह का बर्ताव करें और आम लोगों को इस तरह के माहौल में झोंकने का काम न ही करें तो अच्छा रहेगा.       
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें