मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 7 जनवरी 2013

सोशल मीडिया कितना सोशल ?

                     भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग ठाकुर की सोशल मीडिया प्रोफाइल पर पोस्ट की गयी एक पोस्ट ने फिर से उसी बात को आगे कर दिया है कि वास्तव में सोशल मीडिया में अपनी बात कहते समय किसी व्यक्ति को कहाँ तक आज़ादी मिलती है और वह किस हद तक किसी व्यक्ति या विषय पर अपनी राय दे सकता है ? इस विवाद के बाद जहाँ ठाकुर ने इसे अपनी पोस्ट होने से इनकार किया वहीं दूसरी तरफ़ इस बात का खुलासा और हंगामा होने पर उनके प्रोफाइल से जिस तरह से यह पोस्ट गायब हो गयी उससे भी क्या समझा जाये ? यदि मुख्य विपक्षी दल की युवा शाखा के अध्यक्ष सत्ताधारी पार्टी की अध्यक्ष या अन्य किसी नेता के बारे में इस तरह के बयान और विचार व्यक्त करेंगें तो इससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि देश की राजनीति आख़िर किस दिशा में जा रही है ? क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी को यह छूट दी जा सकती है या दी जानी चाहिए जिससे इस तरह के विवाद उत्पन्न होते हैं ? क्या युवा मोर्चा के अध्यक्ष की यह हरकत देश के भावी नेताओं के आज के नेताओं के बारे में विचारों को नहीं दर्शाता है दलीय वैचारिक सिद्धांत अलग अलग हो सकते हैं पर उन सिद्धांतों को सही साबित करने में इस तरह की हरकतों को क्या कहा जाना चाहिए ?
           इस तरह की बयानबाज़ी से एक बात फिर से सामने आती है कि आख़िर इस तरह की हरकतों के बाद केवल अपना पल्ला झाड़ लेने से क्या हासिल किया जा सकता है क्योंकि जब ठाकुर इतने ज़िम्मेदारी भरे पद पर हैं तो लोकतंत्र के मूल उद्देश्यों से वे अपने को इस तरह से अलग नहीं कर सकते हैं क्योंकि आज जो सत्ता में हैं कल वे विपक्ष में भी हो सकते हैं तो क्या उस समय उनके अध्यक्ष और अन्य नेताओं के बारे में यदि कोई ऐसी बातें करता है तो उन्हें अच्छा लगेगा ? किसी भी व्यक्ति द्वारा यह कहा जाये तो उसको किसी तरह से बचाया जा सकता है पर भारतीय मूल्यों की हमेशा दुहाई देने वाली भाजपा की युवा शाखा के अध्यक्ष इस तरह की हरकतों और फिर अपने कर्मों से पल्ला झाड़ने को क्या कहा जाये ? बात यहाँ पर किसी दल या नेता की नहीं बल्कि राजनीति के गिरते हुए मूल्यों की है क्योंकि जब तक हम अपने मूल्यों से सही तरह से जुड़ना नहीं सीखेंगें तब तक किसी भी तरह से हमारी किसी भी बात को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है ?
          ठाकुर ने जिस तरह से यह कहकर अपने को बचाने की कोशिश की कि यह पोस्ट उनकी नहीं है तो उनकी इस बात को भी आख़िर क्यों सच माना जाये जब उनकी प्रोफाइल से विवाद होने के बाद यह पोस्ट हटा ली गयी है ? यदि उनकी प्रोफाइल को किसी द्वारा हैक कर लिया गया था तो वे इस बात को भी सबके सामने स्वीकार कर सकते थे पर उन्होंने किसी भी तरह से अपने को बचाने की जो जुगत निकाली उसका किसी भी तरह से समर्थन नहीं किया जा सकता है. आज के नेट के युग में किसी के भी खाते से छेड़ छाड़ संभव है और यदि ऐसा हो गया था उसे स्वीकार कर कानूनी प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए थी पर उसके स्थान पर अलग अलग तरह की बातें की गयीं जिसने संशय को बढ़ाने का काम किया. आम लोगों में तो कोई भी कुछ भी कह सकता है पर जब इतने महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए लोग इस तरह से कुछ कह कर कुछ सफाई देने में लग जाते हैं तो उसका असर किसी न किसी तरह से आम जनता की मानसिकता पर भी पड़ता है. सार्वजनिक जीवन जी रहे सभी लोगों को अब यह समझना ही होगा कि दूसरों का सम्मान किये बिना उनको भी वह सम्मान नहीं मिल सकता है और जो आज देश के भावी नेताओं वाली कतार में हो उनको तो बहुत संभलकर अपने वक्तव्य देने चाहिए जिससे वे पहले से ही गर्त में गिर चुकी राजनीति को कम से कम उसी स्तर पर तो संभलकर रख सकें ?     
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