मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

उमर, कश्मीर और भारत

                                      जम्मू कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्लाह ने अपनी राजनैतिक मजबूरियों के तहत जिस तरह से अफज़ल की फाँसी के तरीक़े पर रोना रोया है उससे कश्मीर के लोगों का तो कोई भला हो ही नहीं सकता है पर आने वाले समय में देश के अन्य भागों में रहने वाले नागरिकों के मन में यह भावना भी घर कर सकती है कि कश्मीर घाटी में कोई भी व्यक्ति बाकी हिंदुस्तान के लोगों और उनकी भावनाओं के बारे में कुछ भी सोचना नहीं चाहता है. देश ने  कश्मीर घाटी को जितना कुछ दिया है आज उतना दुनिया के किसी हिस्से में किसी भी सरकार ने अपने किसी राज्य को इतना नहीं दिया है इसके बाद भी यदि कश्मीर के लोगों में यह भावना बैठाने का काम वहां के नेता करना चाहते हैं कि भारत उनकी भावनाओं का सम्मान नहीं करता है तो राज्य के लोगों के भविष्य को आसानी से समझा जा सकता है ? उमर को अफज़ल की फाँसी तो दिखाई देती है पर संसद में काम करना वाले सुरक्षा कर्मियों और अन्य निर्दोष कर्मचारियों की शहादत दिखाई नहीं देती है जिसने इस पूरे मसले को जन्म दिया था. क्या कश्मीरी लोगों को यह लगता है कि देश की संसद पर हमला करने वाले इसी तरह से जेल में हमेशा के लिए बंद कर दिए जाएँ और आने वाले समय में कोई आतंकी समूह उन्हें छुड़ाने का प्रयास कर देश को नीचा दिखा सकें ? सरकार ने चाहे जिस परिस्थिति में यह काम किया हो पर उसने देश की आतंकियों के ख़िलाफ़ कठोर नीति अपनाने की शुरुआत तो कर ही दी है.
                                        पूरा देश आज भी कश्मीर के लोगों की भावनाओं के साथ है पर क्या कश्मीरियों की भी यह ज़िम्मेदारी नहीं बनती है कि वे भी देश के लोगों की भावनाओं को ठीक तरह से समझने का प्रयास करें ? अफज़ल ने जिस तरह से ग़लत किया उसका किसी भी तरह से समर्थन नहीं किया जा सकता है पर जब तक कश्मीरी लोगों और जिन युवाओं की बातें उमर कर रहे हैं उन्हें देश की मुख्य धारा से जोड़ने के ईमानदार प्रयास नहीं किये जाएंगें तब तक यह स्थिति सुधरने वाली नहीं है. उमर आज युवाओं की पीढ़ी पर फाँसी का बुरा असर पड़ने की बात कर रहे हैं पर क्या उसी युवा पीढ़ी पर संसद के हमले से कोई अच्छा असर पड़ा था हिंसा किसी भी स्तर पर किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती है इसलिए इस तरह की हिंसक और आतंकी घटनाओं में शामिल लोगों के लिए कम से कम सरकारों को तो कड़ा रुख़ अपनाना ही चाहिए जिससे पूरी दुनिया में यह संदेश भी जा सके कि अब भारत में आतंकियों को केवल जेल में बंद रखकर ही काम नहीं किया जाता है बल्कि उनको सज़ा दिलवा कर उस पर अमल भी किया जाता है. इस क़दम से जहाँ आतंकियों के मन में भारत की जेलों में सुरक्षित रहने के मंसूबे विफल हो जाएंगें और उन पर भारत में हिंसा फ़ैलाने के नतीज़ों पर दोबारा सोचने पर मजबूर भी होना पड़ेगा.
                                      जब कश्मीर घाटी के लोग और वहां के नेता ही बाक़ी दुनिया की रफ्तार से क़दम मिलाना ही नहीं चाहते हैं तो उस स्थिति में आख़िर उनकी किस तरह से मदद की जा सकती है. आज समय है कि उमर जैसे नेताओं के पास सत्ता की शक्ति है और उन्हें इसका उपयोग राज्य में विकास को बढ़ावा देने के लिए करना चाहिए जम्मू क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से औद्योगिक गतिविधियाँ बढ़ी हैं और वहां के लोगों के जीवन स्तर में सुधार आने की संभावनाएं प्रबल हुई है यदि उसी तरह से घाटी में भी देश के साथ विकास करने की ललक जाग जाए तो आने वाले समय में आज विरोध प्रदर्शन करने वाले युवाओं को आगे बढ़ने में सहायता की जा सकती है पर अलगाववादी नेता जिस तरह से आम जनता को आज भी धर्म की अफीम चटाकर उसे बाक़ी दुनिया से काटने की कोशिशों में निरंतर ही लगे रहते हैं उस स्थिति में इन युवाओं के भविष्य को कौन संभालेगा ? देश के तेज़ विकास की झलक और उच्च शिक्षा के प्रभाव से भी इन युवाओं को अवगत कराना चाहिए जिससे ये भी देश के बाक़ी हिस्सों के युवाओं की तरह आगे बढ़ने के सपने देख सकें और आने वाले कुछ दशकों में कश्मीर को दुनिया की सबसे सुरक्षित और विकसित क्षेत्र बनाने के लिए अपना योगदान कर सकें पर धर्म के नाम पर बहलाए जाने वाले लोगों को विकास की यह सुबह कितनी सुहानी लगेगी यह तो आने वाला समय ही बता पायेगा.           
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