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शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

बिजली सुधार का सच

                          देश में बिजली की निरंतर बढ़ती बिजली की ज़रूरतों के बीच जिस तरह से इसकी किल्लत भी तेज़ी से बढ़ती जा रही है वह आने वाले समय में देश के विकास में पूरी तरह से एक बड़ी बाधा बनकर सामने आने वाली है. देश के अधिकांश राज्यों में उत्पादन और वितरण की पूरी व्यवस्था में जिस स्तर पर भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता का बोलबाला बना हुआ है ऐसे में अनमने मन से किए गए कोई भी सुधारात्मक प्रयास किसी भी तरह से कोई अच्छा फल से पाने में पूरी तरह से असफल ही रहने वाले हैं. केन्द्रीय बिजली मंत्रालय ने जिस तरह से एक नए प्रस्ताव को राज्यों के सामने रखा उससे कुछ उम्मीद तो जगती है पर यदि राज्यों में अभी तक चल रही कार्य संस्कृति को बदलने की दिशा में ठोस काम नहीं किए गए तो किसी भी प्रयास से इन निगमों को बचाने और राज्यों में बिजली व्यवस्था मज़बूत करने के किसी भी प्रयास को बड़ा झटका लगने ही वाला है. दो लाख करोड़ रूपये से अधिक के कर्ज़दार ये बिजली बोर्ड किस तरह से आने वाले समय में कुछ ठीक कर पायेंगें यह सोचने का विषय है. राज्यों में अभी तक जिस तरह से राजनैतिक प्राथमिकताओं के आधार पर नीतियां बनायीं और लागू की जाती हैं उनसे पूरी तरह से घाटे को बढ़ाने वाला ही कहा जा सकता है.
                     देश के ५ राज्यों यूपी, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और तमिलनाडु ने जिस तरह से केन्द्रीय विद्युत मंत्रालय के क़र्ज़ पुनर्गठन प्रस्ताव के अनुसार इस बात पर सहमति जताई है के वे अपने यहाँ के बिजली क़र्ज़ के आधे हिस्से के बांड जारी करेंगें और बाकी के आधे हिस्से को आसान किस्तों में चुकाने की छूट का लाभ उठाते हुए बिजली क्षेत्र को सुधारने का काम करेंगें. इस मामले में आगे बढ़ते हुए यूपी, राजस्थान और हरियाणा ने जिस तरह से बांड जारी करने पर तेज़ी दिखाई है उससे उत्तरी क्षेत्र में बिजली की स्थिति में कुछ सुधार जल्दी ही दिखाई भी पड़ सकता है. अभी तक राज्यों के बिजली निगमों की जो वित्तीय स्थिति है उसमें कोई भी वित्तीय संसथान या बैंक उन्हें क़र्ज़ देने के लिए राज़ी ही नहीं थे तो इस स्थिति में राज्यों के दख़ल से अब इन्हें आसानी से नई परियोजनाओं के लगाने और पुरानी परियोजनाओं के पुनर्गठन को तेज़ी से पूरा किया जा सकेगा. इस तरह से किसी नए प्रस्ताव पर बात बन जाने से केवल एक हो मोर्चा जीता हुआ माना जा सकता है क्योंकि जब तक नए सिरे से उपलब्ध धन का सही दिशा में पूरा उपयोग नहीं किया जायेगा तब तक पूरी व्यवस्था के दीमक एक बार फिर से इस धनराशि को चट कर जाने में देर नहीं लगाएंगें.
                     आज जिस तरह से देश के हर राज्य में प्रशासनिक अधिकारियों की कमी का रोना है उसके बाद भी बिजली जैसे क्षेत्र में विशेषज्ञों के स्थान पर भी भी प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति को ही प्राथमिकता दी जाती है उस स्थिति में भी अपेक्षित सुधार नहीं किए जा सकते हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में केवल प्रशासनिक दक्षता ही नहीं चाहिए होती है बल्कि इसके साथ क्षेत्र विशेष की जानकारी भी उतनी ही आवश्यक होती है पर आज सभी सरकारें केवल प्रशासनिक अधिकारियों से ही पूरा काम करवाना चाहती हैं जिससे भी इस तरह के क्षेत्रों में समस्याएं बढ़ती ही जाती हैं. यदि सरकारों को लगता है कि कहीं से क्षेत्र विशेष के अधिकारियों में उतनी प्रशासनिक दक्षता नहीं है तो सरकार उन्हें इसके लिए विशेष प्रशिक्षण भी दिलवा सकती है. साथ ही उत्पादन, पारेषण और वितरण के क्षेत्रों में नियुक्ति के समय से ही विशेषज्ञता पर ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि जब तक इस पूरे क्षेत्र में लम्बे समय तक काम करने का अनुभव युक्त लोगों की टीम काम करने में सक्षम नहीं होगी तब तक व्यवस्था में सुधार नहीं आ पायेगा. इसके लिए भविष्य में जिन नए अधिकारियों की तैनाती की जाए उन्हें सभी क्षेत्रों में घुमाने के स्थान पर क्षेत्र विशेष में ही रखा जाये जिससे वे अपने अनुभव के आधार पर कुछ सुधार कर पाने में सक्षम बन सकें.     
  
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