मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 24 मार्च 2013

आतंकी कनेक्शन और कानून

                           सोनौली बॉर्डर से गिरफ्तार किये गए आतंकी लियाक़त के मामले में जिस तरह से एक बार फिर से राजनीति शुरू की गयी है वह किसी भी तरह से देश के लिए सही नहीं कही जा सकती है क्योंकि जब भी सुरक्षा सम्बन्धी मामलों में इस तरह से राजनीतिज्ञों का दखल हुआ है तब तब देश को उसकी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी है. इस मसले पर जिस तरह से कश्मीर सरकार, पुलिस और अन्य लोग दिल्ली पुलिस के पीछे पड़े हुए हैं उससे यही लगता है कि राजनीति का कोई घिनौना चेहरा भी अभी सबके सामने आने को बाकी है. यह सही है कि आतंकी गतिविधियों में लिप्त रहे लोगों के लिए सरकार ने एक पुनर्वास योजना तैयार की है पर उस पर जिस तरह से पारदर्शिता के साथ अमल किया जाना चाहिए वह नहीं हो पा रहा है जब पाक से इन आतंकियों के समर्पण के लिए वापसी के लिए सरकार एक योजना पर काम कर रही है तो उन्हें इस तरह से चुपचाप जाने की अनुमति कैसे दी जा सकती है क्योंकि यदि एक बार कोई व्यक्ति ख़ुफ़िया एजेंसियों की सूची में आ गया है तो उस पर हर परिस्थिति में नज़र तो रखी ही जाती है फिर यदि सूचना के अभाव में दिल्ली पुलिस ने लियाक़त को गिरफ्तार कर लिया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा है ? यदि उसकी गिरफ़्तारी ग़लती से हुई है तो कानूनी औपचारिकतायें पूरी होने के बाद वह छूट ही जायेगा पर उसकी निशान देही पर जो विस्फोटक मिलने का दावा है उसके बारे में क्या होगा ?
                              इस मसले में जिस तरह से जम्मू कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्लाह ने पूरे मामले की जांच एनआईए से करने की मांग केन्द्रीय गृह मंत्री से की है वह भी पूरी तरह से कश्मीरी लोगों के दबाव में लिया गया क़दम ही है क्योंकि यदि जम्मू कश्मीर सरकार, पुलिस और आईबी के अधिकारियों को यह पता था कि लियाक़त आत्म समर्पण करने आ रहा है तो इस बात की सूचना समय रहते दिल्ली पुलिस से क्यों नहीं साझा की गयी थी और यदि की गयी थी तो दिल्ली पुलिस के किन लोगों ने जानकारी होने के बाद भी इनकी गिरफ़्तारी का प्रयास किया ? यदि लियाक़त के मामले में दिल्ली पुलिस पर आरोप लगाने वाले सही हैं तो वे इन आतंकियों के समर्पण की व्यवस्था सोनौली बॉर्डर पर ही क्यों नहीं करते हैं जिससे उनके किसी और प्रदेश की पुलिस के हत्थे चढ़ने की सम्भावना ख़त्म ही हो जाए. आज केवल कश्मीर के आतंकियों के मुख्य धारा में लौटाने के लिए क्या दिल्ली पुलिस की पूरी कार्य शैली पर प्रश्न चिन्ह लगाना उचित है क्योंकि दिल्ली पुलिस पूरे देश की पुलिस के मुकाबले अधिक दक्षता से काम करने में आज तक सफल रही है.
                               इस मसले को अल्पसंख्यक बहुसंख्यक के झगडे से आगे बढ़कर देश के हित में सोचने की ज़रुरत है और सभी जानते हैं कि कश्मीर के कुछ नेता और आतंक समर्थक लोग देश के बारे में सोचना ही नहीं चाहते हैं इसलिए आज कश्मीर देश की मुख्य धारा से पूरी तरह से कटा हुआ सा लगता है ऐसा नहीं है कि पूरे भारत से कश्मीर के लिए सद्भावना नहीं निकलती है पर कुछ पाक समर्थिक आतंकियों के कारण आज भी कश्मीर अपनी आवाज़ को बुलंद करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है ? यदि कोई भी आतंकी समर्पण करके एक बार फिर से सामान्य जीवन जीना चाहता है तो उसके लिए अवसर तो होने ही चाहिए पर साथ में एक कड़ी शर्त भी होनी चाहिए कि यदि वे फिर से इस तरह की गतिविधि में लिप्त पाए गए तो उनको बिना किसी मुक़दमे के ही उम्र क़ैद की सजा दे दी जाएगी क्योंकि जब तक माफ़ी के साथ कठोर शर्तें नहीं होंगीं तो इन लोगों द्वारा फिर से आतंकियों का समर्थन नहीं किया जायेगा इसकी गारंटी कौन लेगा ? भटके हुए लोगों को सही राह दिखाना अच्छा है पर इस तरह से तालमेल के अभाव या क्षुद्र राजनीति के चलते सुरक्षा एजेंसियों या पुलिस पर उँगलियाँ उठाने से उनके मनोबल पर बुरा असर पड़ने से नहीं रोक जा सकता है.
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