मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 9 मार्च 2013

परवेज़ अशरफ़ की अजमेर यात्रा

                                    पाक पीएम परवेज़ अशरफ़ की अजमेर शरीफ यात्रा के विरोध में अब ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के दीवान जैनुल आबदीन द्वारा भी विरोध किये जाने के बाद अजमेर में परिस्थितियां और भी कठिन हो गई हैं क्योंकि अभी तक परवेज़ की यात्रा का विरोध केवल वकीलों और सामाजिक संगठनों के साथ हिन्दू वादी संगठन ही कर रहे थे पर स्थितियों में इस तरह से बदलाव आ जाने के बाद अब पाक पीम की यह यात्रा उनके लिए कुछ अच्छा लेकर नहीं आने वाली है. आम तौर पर दरगाह शरीफ़ के दीवान द्वारा आने वाले किसी भी राजनैतिक या बड़े सामाजिक स्तर के व्यक्ति का स्वागत और सम्मान किया जाता है साथ ही उन्हें दरगाह शरीफ की तरफ से भेंट भी दी जाती है जिसे सामान्य शिष्टाचार ही माना जाता है पर दीवान साहब द्वारा खुद ही उनकी यात्रा का विरोध किए जाने की स्थिति में अब अजमेर प्रशासन के लिए इस यात्रा को संपन्न कराना भी एक चुनौती ही बन गया है. देश में पाक सैनिकों द्वारा भारतीय सीमा क्षेत्र में घुसपैठ करने की कोशिशों के विरोध करने पर भारतीय सैनिकों के सर काटे जाने की घटना के बाद से ही देश में पाक के ख़िलाफ़ माहौल गरमाया हुआ है.
                                       अजमेर शरीफ़ के दीवान साहब ने जिस तरह से अपनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा कि पाक की घिनौनी हरक़तों के बाद उसके पीएम का स्वागत करना देश के शहीदों का अपमान करने के सामन होगा क्योंकि पाक ने अपने घटिया कारनामे से दोनों देशों के संबंधों को ख़राब करने में में कोई कसर नहीं छोड़ी है और इस स्थिति में किसी भी पाक राजनेता का स्वागत किया जाना किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता है. दीवान साहब ने कहा कि वे इस सूफी दरगाह के दीवान हैं और हमें किसी राजनीति से कोई मतलब नहीं है फिर भी पाकिस्तान ने जिस तरह से निर्दोषों के साथ अमानवीय व्यवहार किया उसके बाद उनके स्वागत का कोई मतलब ही नहीं बनता है. उन्होंने पाक पर इस्लामी देश होने के बाद भी इस्लाम के मूल्यों का अनुपालन न करने का आरोप भी लगाया और कहा कि इस्लाम अपने पड़ोसियों के साथ मधुर संबंधों की वकालत करता है पर पाक ने इस्लाम के इस बुनियादी उसूल पर ही ध्यान नहीं दिया है और सैनिकों के सर काटकर अपने असली चेहरे को दिखाया है. दरगाह दीवान द्वारा इस तरह का रूख अपनाने के बाद ही अजमेर प्रशासन के लिए चिंता गहरा गई है क्योंकि अब वहां पर व्यापक स्तर पर काले झंडे दिखाए जाने और विरोध किए जाने की सम्भावना बढ़ गई है.
                                    भारत ने हमेशा से ही इंसानियत को प्राथमिकता दी है और जिस सूफी परंपरा का भारत ने सैकड़ों वर्षों से पालन किया है वह सभी जगह दिखाई भी देती है सूफी परंपरा भारत में ही पोषित हुई है जिसे यहाँ पर धर्म और अन्य बन्धनों से आगे बढ़कर इंसानियत के लिए ही काम किया गया है और आज के समय में अजमेर शरीफ की दरगाह में सजदा करना हर मुसलमान का सपना होता है. पूर्व पाक सैन्य शासक परवेज़ मुशर्रफ ने भी अजमेर शरीफ आने का सोचा था पर ख्वाजा ने उनकी दरख्वास्त नामंज़ूर कर दी थी और वे उस समय आगरे से ही वापस चले गए थे. सूफी अपना सब कुछ छोड़कर मस्ती भरा जीवन जीते हैं पर पाक ने सब कुछ हड़पने की जो नीति अपना रखी है उसका समर्थन तो दुनिया में कोई भी समझदार व्यक्ति नहीं कर सकता है ? भारत सरकार की तरफ से जो सामान्य शिष्टाचार निभाया जा रहा है उस पर किसी भी तरह की राजनीति नहीं की जानी चाहिए क्योंकि किसी भी देश के पीएम के लिए जो कुछ भी प्रोटोकाल के तहत किया जाना आवश्यक होता है भारत उस राजनयिक शिष्टाचार से पीछे हट भी नहीं सकता है. संसद में दिए गए अपने बयान में मनमोहन सिंह ने भी इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि यह उनकी निजी यात्रा है और इसमें सामान्य राजनयिक शिष्टाचार का पूरा ध्यान रखा जायेगा पर इससे किसी भी तरह के सम्बन्ध सुधारने के प्रयास की तरह नहीं देखा जाना चाहिए.           
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

5 टिप्‍पणियां:

  1. काहे का शिष्टाचार, ऐसे व्यक्ति की यात्रा का क्या मतलब.

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  2. बोल गया परवेज, परेशां पाकी बटके -


    लटके झटके पाक हैं, पर नीयत नापाक |
    ख्वाजा के दरबार में, राजा रगड़े नाक |

    राजा रगड़े नाक, जियारत अमन-चैन हित |
    हरदम हावी फौज, रहे किस तरह सुरक्षित |

    बोल गया परवेज, परेशां पाकी बटके |
    सिर पर उत तलवार, इधर कुल मसले लटके ||

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
    सादर

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये

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