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रविवार, 14 अप्रैल 2013

मंत्री और नैतिकता

                           यूपी में बात बात पर विभिन्न मंत्री जिस तरह से बयानबाज़ी करने में लगे हुए हैं उससे यही लगता है कि समाजवादियों की नई तैयार होती फौज में केवल ज़बान हिलाने वाले ही अधिक हैं और उनके पास करने के लिए कोई काम नहीं होता है. दो दिनों में दो मंत्रियों द्वारा जिस तरह से बयानबाज़ी की गयी उसके बाद खादी ग्रामोद्योग मंत्री राजा राम पाण्डेय को बर्खास्त किया गया उससे यही लगता है कि आज मुलायम और अखिलेश को ये समझ ही नहीं आ रहा है कि अपने इन बेकाबू होते माननीय मंत्रियों से कैसे निपटा जाए. राजाराम पाण्डेय को महिलाओं के ख़िलाफ़ अभद्र बयान देने के बाद बाहर का रास्ता दिखाया गया है और सपा द्वारा यह दर्शाने की कोशिश की गई है कि वह महिलाओं के प्रति संवेदनशील है और उनके ख़िलाफ़ कोई बयान भी बर्दाश्त नहीं किया जायेगा वैसे देखा जाए तो राजाराम की यह दूसरी ग़लती थी इससे पहले वे एक महिला जिलाधिकारी की तारीफ करते समय भी फरवरी माह में इसी तरह से बहक गए थे.
                          दूसरे मामले में स्वस्थ्य राज्य मंत्री शंख लाल मांझी ने सपा कार्यकर्ताओं की शिकायतों पर झल्लाते हुए यह कहा कि यदि अफसर नहीं सुनते हैं तो उनको कमरे में बंद करके पीटो बाद में जो होगा देखा जाएगा. इस तरह की बयानबाज़ी के निहितार्थ समझने में किसी को भी देर नहीं लगनी चाहिए क्योंकि सपा में आज़म, शिवपाल जैसे वरिष्ठ मंत्रियों द्वारा लगातार ऐसे ही बेतुके बयान दिए जाते रहते हैं और उनके ख़िलाफ़ किसी भी तरह की कार्यवाही करना मुलायम-अखिलेश के बस में नहीं है तो उनकी देखा देखी अन्य मंत्रियों को भी यही लगने लगा कि उनकी तरह वे भी किसी भी तरह का बयान दे सकते हैं और उन्हें भी कोई कुछ नहीं कहेगा ? जब सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों के इस तरह के आपत्तिजनक बयानों पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई तो अन्य लोगों के विरुद्ध कुछ भी किया जाना सपा जैसी समाजवादी विचारधारा की कथित पोषक पार्टी द्वारा कैसे सही कहा जा सकता है, जब कप्तान के पास ही इतने अधिकार नहीं है कि वह अपनी टीम को नियंत्रण में रख सके तो उस टीम का क्या हो सकता है यह सभी अंदाज़ा लगा सकते हैं ?
                          यदि सपा को कुछ करना ही है तो उसे अपने मंत्रियों को हटाने के स्थान पर उन्हें एक बार फिर से राजनीति के साथ मर्यादा और नैतिकता का पाठ नियमित रूप से पढ़वाना चाहिए और उनकी परीक्षा भी लेनी चाहिए जिससे आने वाले समय में वे इस तरह की केवल ध्यान आकर्षित करने वाली बेतुकी बयानबाज़ी से दूर रह सकें और सरकार तथा पार्टी के लिए नए नए संकट उत्पन्न न कर सकें. मर्यादाओं की बात शुरू करने से पहले उनको अपने जीवन में उतार कर दिखाने की आवश्यकता होती है क्योंकि जब सरकार में शिवपाल और आज़म कुछ भी कहने से परहेज़ नहीं करते हैं तो सरकार और पार्टी क्या कर सकती है ? ऐसा भी नहीं है कि इन मंत्रियों के पास कहने के लिए कुछ और नहीं होता है और वे अनजाने में ऐसा कह देते हैं वास्तव में यह सब जानबूझकर किया जाने वाला काम है जो सरकार में उनकी धाक को दिखाने का काम करता है कि हम जो चाहे कह सकते हैं और यह कह पाना किसी और के बस में नहीं है. हो सकता है कि इससे उनके समर्थकों में उनकी धौंस जम भी जाती हो पर समाज पर उसका असर ग़लत ही पड़ता है. फिलहाल तो एक साल पुरानी अखिलेश सरकार के चेहरे पर मजबूरी की झुर्रियां दिखाई देने लगी हैं और उन्हें अब फ़ेशिअल से दूर नहीं किया जा सकता है उसके लिए तुरंत प्लास्टिक सर्जरी की ज़रुरत है.             
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