मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 15 अप्रैल 2013

कश्मीरी जिहाद का पाकिस्तानी सच

                       कश्मीर में सक्रिय पाकिस्तानी आतंकियों के बारे में पहली बार वहाँ की राजनैतिक पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इन्साफ़ ने जिस तरह से यह स्वीकार किया है कि ये आतंकी पाकिस्तान के लिए भी एक बड़ा ख़तरा हैं पहली नज़र में यह अपने आप में बड़ा बदलाव दिखाई देता है क्योंकि अभी तक किसी भी पाकिस्तानी नेता या राजनैतिक दल ने इससे पहले यह बात मानी ही नहीं है और हमेशा से यही कहा है कि पाकिस्तान कश्मीर के मुसलमानों का समर्थन करता है और उनके लिए हर तरह कि सहायता भी उपलब्ध कराने के लिए प्रयास करता है क्योंकि वे वहाँ पर कथित जिहाद में लगे हुए हैं ? अभी तक पाकिस्तान में हर चुनाव में जिस तरह से केवल भारत के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने का काम ही किया जाता रहा है और उसमें भी सेना की भूमिका हमेशा ही बहुत प्रभावी रहा करती है उस स्थिति में किसी के पास भी यह अधिकार नहीं बचता है कि वे सही बात को सही तरह से कह सकें. पहली बार तहरीक-ए-इन्साफ़ और इमरान खान ने यह स्वीकार किया है उससे आने वाले समय में पाकिस्तान की किस्मत भी बदल सकती है.
                     सारी दुनिया यह बहुत अच्छे से जानती है कि पूरे विश्व में आज इस्लामी आतंक का केवल पाकिस्तान से बहुत बड़े स्तर पर पोषण किया जा रहा है और उसके बाद जिस तरह से पाकिस्तान के नेता और सेना के अधिकारी बेशर्मी से अपनी बातों को कहने और रखने में लगे रहते हैं उससे भी पाकिस्तान का ही बहुत बड़े स्तर पर नुकसान हो रहा है क्योंकि आज जिस इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान में मध्य कालीन सोच पनप रही है और जिस सऊदी अरब से यह सोच निकली थी वहाँ भी परिवर्तन की लहर चल रही है और आज के अनुसार इस्लाम के प्रगतिशील स्वरुप को स्वीकार भी किया जाने लगा है फिर पाकिस्तान को आज भी कुछ आतंकी संगठनों और कट्टरपंथी उलेमाओं द्वारा जिस राह पर धकेल जा रहा है वह उसे आने वाले समय में बहुत पीछे ले जाने वाला है. आन्तरिक सुरक्षा के मुद्दे पर जिस तरह से इमरान की पार्टी ने अफगानिस्तान में तालिबान का पोषण करने, पाकिस्तानी तालिबान द्वारा शरिया की अपनी व्याख्या को लागू करने, शिया सुन्नी दंगे, कराँची के वर्ग संघर्ष और बलूचिस्तान में चल रहे हालातों के साथ कश्मीरी आतंकी संगठनों को पाकिस्तान के आन्तरिक हालत बिगड़ने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया है उससे उसकी सोच का पता चलता है कि वह पाक को नए सिरे से आगे बढ़ाने के लिए तैयार है.
                     अभी तक पाकिस्तान में जिस तरह से आन्तरिक सुरक्षा के मुद्दे पर अराजकता ही दिखाई देती है उससे निपटने के लिए किसी भी सत्ताधारी दल को पूरी सेना का समर्थन चाहिए होगा जो कि भारत के ख़िलाफ़ कुछ भी करने को अपना पहला कर्तव्य मानती आई है जबकि आज भी भारत केवल उसकी हरक़तों का जवाब देने के अलावा अपनी तरफ से कुछ भी नहीं करता है. यदि किसी तरह से इमरान को सत्ता तक पहुँचने में सफलता भी मिल जाती है तो उस स्थिति में भी किसी भी तरह से उनके लिए सेना का समर्थन पाना बहुत मुश्किल होगा क्योंकि इस्लाम के नाम पर चलाये जा रहे जिहाद के लिए जिस तरह से पूरी दुनिया के मुसलमानों से चंदा लिया जाता है और उसको इस्तेमाल अपने लिए किया जाता है तो कोई भी अपने इस बिन मांगे अनवरत चलने वाले आर्थिक स्रोत को क्यों बंद करना चाहेगा ? पाक को आज जितना धन इस्लाम के नाम पर मिल रहा है उसका दुरूपयोग इस्लाम को बदनाम करने में ही अधिक किया जा रहा है यदि सही सोच के साथ इस जिहाद से आगे बढ़कर इस धन का उपयोग मुसलमानों की भलाई के लिए किया गया होता तो आज कम से कम पाक और अफ़गान मुसलमानों की स्थिति भारत के मुसलमानों से बहुत ख़राब नहीं होती और उसमें भी परिवर्तन आ ही गया होता.        
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