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शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

न्याय, कानून और पाक

                   पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज़ मुशर्रफ इस्लामाबाद हाई कोर्ट द्वारा गिरफ़्तारी का आदेश दिए जाने के बाद जिस तरह से अदालत से भाग खड़े हुए और उनके भागते समय वहां पर उपस्थित वक़ीलों ने गीदड़ भागा के नारे लगाये उससे बड़ी बड़ी डींगें हांकने वाले मुशर्रफ के आत्मबल और उनकी कानून में आस्था के बारे में ही पता चलता है. जिस तरह से जिस कानून की अवहेलना कर उन्होंने पाकिस्तान के जिन प्रधान न्यायाधीश इफ्तिख़ार चौधरी को बर्खास्त किया था अब उनकी इस मामले में सुनवाई भी संभवतः उन्हीं के द्वारा ही की जाएगी. अपने अस्तित्व में आने के समय से ही पाकिस्तान में जिस तरह से सैन्य अधिकारियों और नेताओं ने अपने लाभ के लिए कानून को हमेशा ही ग़लत तरीके से इस्तेमाल किया है यह अब कानून का एक तरह से पलटवार ही लगता है क्योंकि एक समय अपने को देश का सबसे ताक़तवर इंसान मानने वाले मुशर्रफ़ को जिस तरह से भागना पड़ा वह पाकिस्तान के इतिहास में अपने तरह की पहली घटना ही है जिससे वहां की सेना और नेताओं को सबक़ भी लेने की आवश्यकता है.
                                       पहले की घटनाओं में जिस तरह से उन्हें चुनाव लड़ने के अयोग्य साबित किया गया और अब उनके ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी के आदेश भी जारी हुए हैं उसके बाद यही लगता है कि पाकिस्तान के अन्य शासकों की तरह अब उनका भी काफी लम्बा समय जेल में ही बीतने वाला है क्योंकि अभी तक जिस सेना के दम पर वे अपने को मज़बूत साबित करने में लगे हुए थे अब वाही सेना भी कानून की दुहाई देकर उनसे आसानी से पल्ला झाड़ सकने की स्थिति में आ चुकी है और ऐसा भी नहीं है कि पाक सेना में सारे उनके हक़ में ही बोलने वाले हैं ? उनको जिस तरह से उनके ही आलीशान फार्म हाउस में कोर्ट के आदेशों का अनुपालन करने के लिए नज़रबंद कर दिया गया और उनकी सुरक्षा वापस ले ली गयी है वह भी उनकी परेशानियों को बढ़ाने वाला है साबित होने वाला है क्योंकि जब तक उनके पास कोई राहत भरी खबर आएगी तब तक उनके ख़िलाफ़ चल रहे अन्य मुक़दमें भी अपनी गति पकड़ चुके होंगें तो उस स्थिति में उनके पास जेल में समय काटने के अलावा कुछ शेष नहीं बचेगा.
                 पाकिस्तान में जिस तरह से कानून की खिल्ली अभी तक उड़ाई जाती रही है और आगे भी नेता और सेनाधिकारी इस तरह की हरक़तें करने से बाज़ नहीं आने वाले हैं तो उस स्थिति में अब कोर्ट की हर कार्यवाही ही उसके मान सम्मान को बचाए रखने का काम करने वाली है क्योंकि जब तक कोर्ट के प्रति सम्मान के भाव पाकिस्तान के शासकों में नहीं होंगें तब तक वहां के समाज को सुधारने में किया गया कोई भी प्रयास काम नहीं करने वाला है. यदि एक बार पाकिस्तान में कोर्ट की कानून के अनुसार सभी को चलाने की मंशा पूरी हो गयी तो आने वाले समय में वहां पर पनप रहे आतंक के पौधों को भी कोर्ट के माध्यम से चुनौतियाँ मिल सकती है जो कि इस पूरे क्षेत्र के साथ पाकिस्तान के लिए भी अच्छा होगा क्योंकि अपने लाभ के लिए सेना और नेता कट्टरपंथियों पर कभी भी कोई चाबुक चलाने की हैसियत में नहीं हो पाएंगीं उस स्थिति में वहां पर सक्रिय मानवाधिकार कार्यकर्ता कोर्ट के माध्यम से इस तरह के आदेश पारित करवाकर उन पर अमल करने के लिए सरकारों और सेना पर दबाव बनाने की स्थिति में आ सकते हैं ? पाकिस्तान में तो यह सब आम ही है पर जब सेना और सेना से जुड़े किसी इतने मज़बूत तंत्र पर संकट आता है तो वह देश का ध्यान बंटाने के लिए भारत विरोधी सुरों और षड्यंत्रों में लग जाते हैं इसलिए अब भारत को सीमा पर कड़ी चौकसी के साथ सतर्क रहने की आवश्यकता भी है. 
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