मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 21 अप्रैल 2013

चीन और भारत

                             दुनिया में अपनी धौंस को निरंतर बढ़ाने में लगा हुआ चीन समय समय पर भारत के साथ लगती हुई अपनी सीमा को विवादित बताकर जिस तरह से घुसपैठ करता ही रहता है वह आने वाले समय में भारत और चीन दोनों के लिए ही किसी बड़े संकट का कारण भी बन सकता है. चीन के साथ लगती हुई लम्बी और दुर्गम पहाड़ी सीमा के कारण वहां पर भारत द्वारा भी वैसे उपाय नहीं किए जा रहे हैं जिनकी आवश्यकता है क्योंकि कुछ इलाक़ों में भारत की तरफ से सीमा पर पहुंचना कड़ी चुनौती है जबकि चीन की तरफ़ से वहां तक पहुंचना उतना कठिन नहीं है. हिमालयी क्षेत्र में इसी तरह से कहीं पर भारत मज़बूत सामरिक स्थिति में है तो कहीं पर चीन पर भारत ने आज तक कभी भी चीन की सीमा का कहीं भी अतिक्रमण नहीं किया है. इस बार जिस तरह से लद्दाख क्षेत्र में चीन के सैनिकों ने भारतीय सीमा में आकर अपने तम्बू लगाये और उनकी सूचना मिलने पर फिर से उसी तरह की बातें की गईं जो हमेशा से ही की जाती रही हैं तो उससे चीनी और भारतीय रुख का भी पता चलता है ?
                                लगातार परिवर्तित होती अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के कारण चीन अपनी सभी तरफ़ की सीमाओं में विस्तार करने की नीति पर काम कर रहा है और उसका यह भी मानना है कि जिन स्थानों पर वह सामरिक दृष्टि से कमज़ोर है और अपने इस तरह के प्रयासों से वह कुछ हासिल कर सकता है वह वहीं पर ऐसी हरकतें करने में लगा हुआ है. चीन की विस्तारवादी नीतियों के कारण ही वह जापान से लगाकर अपने सभी पड़ोसियों से किसी न किसी छोटे मोटे विवाद में लगा हुआ है जिसका लाभ उसे कई स्थानों पर मिलता हुआ दिखाई भी दे रहा है. आने वाले समय में वह अरब सागर में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए पाक के साथ ग्वादर बंदरगाह के लिए अपना काम शुरू ही कर चुका है और पूरे एशिया क्षेत्र में वह अपनी सामरिक आवश्यकताओं को आज अपनी बढ़ती आर्थिक शक्ति के भरोसे बढ़ाने में लगा हुआ है. ऐसा नहीं है कि इससे पहले चीन का रुख भारत और अन्य पड़ोसियों के साथ बहुत अच्छा रहा है पर अब एक मज़बूत आर्थिक ताक़त के रूप में वह ऐसी घटनों में कुछ अधिक ही दिलचस्पी दिखाने लगा है.
                               भारत के साथ उसकी सीमा से चीन को फिलहाल कुछ ख़ास हासिल नहीं होने वाला तो नहीं है पर लम्बे समय में इस हिमालयी क्षेत्र में खनिज और औंर प्राकृतिक संपदा के मिलने और उसके दोहन के समय चीन चुप भी नहीं बैठने वाला है शायद वह इसी सब को अपने हित में मानकर लगातार भारतीय सीमा का अतिक्रमण जानबूझकर करता ही रहता है जिससे आने वाले समय में वह इस बात को साबित कर सके कि यह क्षेत्र लम्बे समय से ही विवादित रहा है. अपनी विस्तारवादी नीतियों के कारण जिस तरह से चीन भारत के क्षेत्रों में आता है और बात चीत होने पर अधिकांश जगहों पर वापस पुरानी जगह पर वापस भी लौट जाता है इस पूरे प्रकरण में उसकी नीतियों को एक बार फिर से समझने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक भारत के पास भी इस सब से निपटने के लिए कोई कारगर नीति नहीं होगी हम केवल इस तरह की घटना पर अपने विरोध के बाद चीन को उसकी पुरानी स्थिति में वापस भेजने में सफल होकर खुश होते रहेंगें. हो सकता है कि चीन जान बूझकर ही ऐसा करता हो और इस बात का अंदाज़ा लगाना चाहता हो कि चीन के प्रति भारत का रवैया कहीं से बदल तो नहीं रहा है ? फिलहाल चीन के अपनी अस्थायी चौकी स्थापित करने और उन्हें हटाने की उनकी मंशा को समझने की अधिक आवश्यकता है.      
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. चीन कहाँ-कहाँ पर कमजोर है डाक्टर साहब, जरा ज्ञानवर्धन करें.

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  2. बाकी देश का बहुत सारा हिस्सा ऐसा है जहाँ कुछ भी नहीं उगता तो फिर उसकी चिन्ता न की जाये.

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