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शनिवार, 25 मई 2013

कश्मीर- पर्यटन और आतंक

                                एक बार फिर से जब देश भर से सैलानी अपनी गर्मी की छुट्टियाँ मनाने के लिए पहाड़ी राज्यों की तरफ़ अपना रुख़ कर रहे हैं उस स्थिति में पहले कश्मीर घाटी से यह खबर आई कि इस बार सैलानियों की रिकॉर्ड संख्या भी दर्ज की जा सकती है जो कि लम्बे समय से धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में दिखाई नहीं दे रहे थे तो उसके बाद वहां पर पर्यटकों के लिए परिस्थितियां अनुकूल होने के सभी लक्षण भी मिलने लगे थे. जम्मू कश्मीर सरकार ने भी पर्यटकों की बढ़ती हुई आमद के बीच पर्यटक पुलिस को भी सक्रिय कर उसे पर्यटकों के साथ अच्छे से पेश आकर उनकी परेशानियों को हल करने के निर्दश भी जारी कर दिए हैं. इन अच्छी ख़बरों के बीच दो दिनों में एक बार फिर से आतंकियों की सक्रियता बढ़ने के साथ ही सुरक्षा बलों के साथ उनकी मुठभेड़ों में भी वृद्धि हुई है जो कि पाक समर्थित आतंकियों की एक सोची समझी साज़िश ही है जो कश्मीर को देश की मुख्य धारा के साथ जुड़ते नहीं देखना चाहती है क्योंकि यदि कश्मीरी एक बार पाक के सच को जान गए तो वे आतंकियों के प्रति अपनी सहानुभूति को और कम कर देंगें.
                             सीमा पर कड़ी चौकसी के बाद जिस तरह से आतंकियों के लिए घाटी में आकर घटनाओं को अंजाम देना दिन पर दिन मुश्किल ही होता जा रहा है ऐसे में वे अप्रत्यक्ष रूप से आम कश्मीरियों के लिए पर्यटन से होने वाली आमदनी को आतंकी घटनों के माध्यम से रोकना चाहते हैं क्योंकि इस तरह की घटनाओं से घाटी में आने वाले पर्यटकों की संख्या पर बुरा असर पड़ता है जो किसी भी तरह से आम कश्मीरी लोगों के हित में नहीं होता है. पिछले कुछ वषों से यही देखने में आ रहा है कि पर्यन के इस मौसम में ही आतंकी कुछ ऐसा करने की फ़िराक़ में रहा करते हैं जिससे वहां पर पर्यटकों की संख्या सीमित रहे और आम कश्मीरी आर्थिक रूप से तंग ही रहे. आर्थिक रूप से परेशान युवाओं को देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त करवाना थोड़ा आसान होता है क्योंकि उनमें ऊर्जा होती है और वे आतंकियों द्वारा पैदा की गयी इस कृत्रिम आर्थिक समस्या से निपटने के लिए हथियार उठाने के लिए राज़ी भी हो जाते हैं.
                            इस पूरे परिदृश्य को यदि आम कश्मीरी बदलना चाहता है तो उसे अब आतंकियों से हर तरह का वास्ता तोड़ना ही होगा क्योंकि आतंकी भी साथ रहें और पर्यटक भी आते रहें यह दोनों काम साथ में अब नहीं चल सकते हैं और इससे निपटने के लिए वहां के लोगों को अब अपने भविष्य और कश्मीर में स्थायी शांति के बारे में सोचना ही होगा. जल्दी ही श्री अमरनाथ की वार्षिक यात्रा भी शुरू होने वाली है और यदि माहौल में इस तरह से आतंकियों की मंशा पनपती रही तो निश्चित तौर पर कड़ी सुरक्षा में यात्रा तो संपन्न हो ही जाएगी पर ये श्रद्धालु घाटी और अन्य पर्यटक स्थलों को देखने के लिए वहां तक नहीं जायेंगें जिसका सीधा असर इन स्थानों पर पर्यटन से जुड़े लोगों पर पड़ना स्वाभाविक ही है ? देश आज भी कश्मीरियों के आर्थिक हितों के लिए वहां पर चलने वाले पर्यटन उद्योग को पूरा सहारा देने को तैयार है अब यह वहां के आम लोगों पर ही निर्भर करता है कि उन्हें अपने स्थायी आर्थिक हित और शांति चाहिए या फिर वे भी अभी भी आतंकियों की उन झूठी बातों पर विश्वास करके अपनी आने वाली एक और पीढ़ी को आतंकियों के हवाले करना चाहते हैं ? कश्मीर और कश्मीरियों को देश के साथ चलना है या आतंकियों के साथ अब उसे यह तय करने का समय आ गया है वरना पर्यटकों के लिए देश में पहाड़ी राज्यों की कोई कमी नहीं है.   
 
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