एक बार फिर से कांग्रेस की बैठक में बोलते हुए राहुल ने जिस तरह से महिलाओ को संगठन में ५० % आरक्षण देने की वक़ालत की है उसे उनकी देश की आधी आबादी को पार्टी से जोड़ने की एक कोशिश के रूप में ही देखा जा सकता है क्योंकि अपना दूसरा कार्यकाल पूरा कर रही संप्रग सरकार चाहते हुए भी कोई ऐसा विकल्प नहीं ला सकी जिसके अंतर्गत महिलाओं को उसके द्वारा कोशिश किए जा रहे ३३ % आरक्षण को कानूनी रूप से लागू किया जा सके ? देश में विभिन्न मुद्दों पर राजनीति किये जाने के कारण यह मुद्दा भी उतना ही पीछे छूट गया है जितना नेता चाहते हैं फिर भी संगठन के स्तर पर यदि कांग्रेस राहुल के इस नए विकल्प पर गौर करती है और महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व भी देने की कोशिश करती है तो आने वाले समय में कांग्रेस के लिए यह लाभ का सौदा भी हो या न हो पर आधी आबादी को देने के लिए उसके पास एक संदेश अवश्य हो जायेगा जिससे अन्य दलों को भी इस तरह का काम दबाव में करना ही होगा.
अभी तक जिस तरह से महिलाओं को कानूनी रूप से आरक्षण का विरोध किया जाता रहा है उससे कुछ भी हासिल नहीं हो पाया है और सरकार के पास करने के लिए कुछ विशेष है भी नहीं क्योंकि जब तक यह संवैधानिक बाध्यता नहीं हो पाएगी तब तक पार्टियों द्वारा अपनी सुविधा के अनुसार इसका दोहन किया जाता रहेगा. देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था और स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण आराम से चल रहा है पर इस आरक्षण का लाभ जिस तरह से समाज को मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा है क्योंकि इन आरक्षित हुई सीटों से पूर्व में इनके पिता / पतियों द्वारा प्रतिनिधित्व में रहने के कारण आज भी पूरा कब्ज़ा उनका ही है और कहने के लिए समाज में जागरूकता आ रही है ? केवल आरक्षण देने के बाद यदि उसका अनुपालन सही तरह से न किया जाए तो ऐसे प्रावधानों को बनाने के महिलाओं को वास्तव में क्या लाभ मिल पाएगा और यदि महत्वपूर्ण कामों में इस तरह से सदैव ही कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन किया जाता रहेगा तो आने वाले समय में इनको कोई भी सुविधा की तरह से दी जा सकेगी ?
आज भी महिला आरक्षण के सबसे बड़े विरोधी मुलायम सिंह कानूनी तौर इसे स्वीकार नहीं करना चाहते हैं पर जब अपने पुत्र को सीएम बनाने के लिए उन्हें कन्नौज सीट पर प्रत्याशी की आवश्यकता होती है तो वे अपनी बहू को वहां से मैदान में उतारने से नहीं चूकते हैं ? इससे हमारे देश के नेताओं की उस मानसिकता का पता चलता है कि समाज की दूसरी महिलाओं को किसी भी कानूनी प्रावधान के तहत कोई सुविधा न मिल जाए और वे अपने बड़े राजनैतिक क़द का लाभ उठाकर अपने परिवार की बहू को या किसी अन्य महिला को आराम से राजनैतिक सुविधाएँ दिलाते रह सकें ? किसी भी युवा महिला के राजनीति में आने से देश की विचारधारा और सोचने में बड़ा बदलाव हो सकता है पर हमारे नेता इस पूरी प्रक्रिया को किसी भी तरह से रोक कर रखने में ही अपना लाभ समझते हैं. राहुल द्वारा दिए जा रहे ये विचार बिलकुल उसी तरह हैं जैसे १९८४ में राजीव गाँधी कंप्यूटर की बातें किया करते थे और आज किस राज्य सरकारों समेत झख मारकर सपा की सरकार भी लैपटॉप बाँट रही है ? दूरगामी परिणामों पर विचार किए जाने स्थान पर तात्कालिक लाभ पर ही सोचने पर से देश की राजनीति का जो कबाड़ा हो रहा है उस पर विचार करने की किसी को फुरसत नहीं है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
अभी तक जिस तरह से महिलाओं को कानूनी रूप से आरक्षण का विरोध किया जाता रहा है उससे कुछ भी हासिल नहीं हो पाया है और सरकार के पास करने के लिए कुछ विशेष है भी नहीं क्योंकि जब तक यह संवैधानिक बाध्यता नहीं हो पाएगी तब तक पार्टियों द्वारा अपनी सुविधा के अनुसार इसका दोहन किया जाता रहेगा. देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था और स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण आराम से चल रहा है पर इस आरक्षण का लाभ जिस तरह से समाज को मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा है क्योंकि इन आरक्षित हुई सीटों से पूर्व में इनके पिता / पतियों द्वारा प्रतिनिधित्व में रहने के कारण आज भी पूरा कब्ज़ा उनका ही है और कहने के लिए समाज में जागरूकता आ रही है ? केवल आरक्षण देने के बाद यदि उसका अनुपालन सही तरह से न किया जाए तो ऐसे प्रावधानों को बनाने के महिलाओं को वास्तव में क्या लाभ मिल पाएगा और यदि महत्वपूर्ण कामों में इस तरह से सदैव ही कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन किया जाता रहेगा तो आने वाले समय में इनको कोई भी सुविधा की तरह से दी जा सकेगी ?
आज भी महिला आरक्षण के सबसे बड़े विरोधी मुलायम सिंह कानूनी तौर इसे स्वीकार नहीं करना चाहते हैं पर जब अपने पुत्र को सीएम बनाने के लिए उन्हें कन्नौज सीट पर प्रत्याशी की आवश्यकता होती है तो वे अपनी बहू को वहां से मैदान में उतारने से नहीं चूकते हैं ? इससे हमारे देश के नेताओं की उस मानसिकता का पता चलता है कि समाज की दूसरी महिलाओं को किसी भी कानूनी प्रावधान के तहत कोई सुविधा न मिल जाए और वे अपने बड़े राजनैतिक क़द का लाभ उठाकर अपने परिवार की बहू को या किसी अन्य महिला को आराम से राजनैतिक सुविधाएँ दिलाते रह सकें ? किसी भी युवा महिला के राजनीति में आने से देश की विचारधारा और सोचने में बड़ा बदलाव हो सकता है पर हमारे नेता इस पूरी प्रक्रिया को किसी भी तरह से रोक कर रखने में ही अपना लाभ समझते हैं. राहुल द्वारा दिए जा रहे ये विचार बिलकुल उसी तरह हैं जैसे १९८४ में राजीव गाँधी कंप्यूटर की बातें किया करते थे और आज किस राज्य सरकारों समेत झख मारकर सपा की सरकार भी लैपटॉप बाँट रही है ? दूरगामी परिणामों पर विचार किए जाने स्थान पर तात्कालिक लाभ पर ही सोचने पर से देश की राजनीति का जो कबाड़ा हो रहा है उस पर विचार करने की किसी को फुरसत नहीं है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
बेहतरीन सम-सामयिक आलेख।
जवाब देंहटाएंसच है,
जवाब देंहटाएंबढिया लेख
जवाब देंहटाएंआलेख अच्छा है
latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )