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शनिवार, 29 जून 2013

प्रेम विवाह और हाई कोर्ट

                          पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट की वेकेशन बेंच ने एक महत्वपूर्ण फ़ैसले से जहाँ अवैध तरीके से विवाह करने वाले कथित प्रेमी युगलों के लिए समस्या उत्पन्न हो गयी है वहीं देश में कानून का सहारा लेकर विवाह की इस प्रक्रिया पर फिर से विचार किये जाने की आवश्यकता भी महसूस की जाने लगी है. जस्टिस ए के मित्तल की कोर्ट ने इस तरह की तीन याचिकाओं का एक साथ साथ निपटारा करते हुए उन्हें खारिज़ कर दिया और याचियों के वकीलों से यह भी पूछा कि क्या उन्होंने हिन्दू विवाह अधिनियम को पूरी तरह से पढ़ा है और क्या ये विवाह उन मानकों को पूरा करते हैं ? पंजाब-हरियाणा में आम तौर पर बालिग प्रेमी जोड़ों द्वारा भागकर चंडीगढ़, मोहाली और पंचकूला में शरण लेते हैं और मंदिर में विवाह कर कोर्ट से सुरक्षा की अपील करते हैं इस पर कोर्ट ने कड़ी आपत्ति दर्शाते हुए इस तरह की किसी भी प्रक्रिया पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की और साथ में यहाँ तक भी कह दिया कि यह सब वकीलों द्वारा शादी को वैध करने के पैकेज में ही शामिल होता है ?
                           देश का संविधान विवाह योग्य आयु प्राप्त कर चुके युवाओं को अपने अनुसार अपने जीवन साथी को चुनने की पूरी आज़ादी देता है और आवश्यकता पड़ने पर इस तरह से शादी करने वालों को सुरक्षा भी उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है पर इधर कुछ वर्षों से जिस तरह से वकीलों द्वारा इस तरह से विवाह कराने को एक पेशे और पैकेज के रूप में लिया जाने लगा है वह बात भी कोर्ट के संज्ञान में है जिससे नाराज़ होकर ही कोर्ट ने इन याचिकाओं को रद्द कर दिया और साथ ही यह भी कहा कि वह कोई कड़ी टिप्पणी करने बच रही है जिससे पूरे मसले की गंभीरता को समझा जा सके. पंजाब और हरियाणा में आज भी जातीय और समगोत्रीय विवाहों के लेकर सामाजिक रूप से बहुत संवेदन शीलता रहा करती है उस स्थिति में सामजिक मर्यादाओं को तोड़कर शादी करने का रिवाज़ बढ़ता ही जा रहा है और उस पर कानूनी मोहर लगवाने के लिए हाई कोर्ट से अच्छा कोई साधन वकीलों की समझ में भी नहीं आता है जिससे भी कोर्ट में ऐसे आवेदन बढ़ते ही जाते हैं.
                          सदियों से चले आ रहे सामाजिक मूल्यों परम्पराओं को आज की आधुनिकता में तोड़ने पर आमादा नई पीढ़ी के लिए कोर्ट एक अच्छा माध्यम साबित हुए हैं क्योंकि कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस और प्रशासन के लिए विवाहित जोड़े की सुरक्षा भी महत्वपूर्ण हो जाती है. प्रेम का कोई स्वरुप नहीं होता है पर प्रेम में मर्यादाओं और शिष्टता का भी समावेश होना आवश्यक है पर आज जिस तरह से किसी भी तरह की सामाजिक परंपरा को न मानकर उनकी धज्जियाँ उड़ाई जा रही है उससे भी कई बार जातीय वैमनस्यता को बढ़ावा मिलता है और जब बात पंजाब और हरियाणा के परम्पराओं में जीने वाले समाज की हो तो मसला और भी उलझ जाया करता है. बहुत सारे मामलों में जिस तरह से प्रेमी युगलों के बाद में मिलने पर हत्या भी किये जाने के अनगिनत उदाहरण भी मिलते हैं उससे भी सामजिक मान्यताओं को ठोकर लगती है. शिक्षा के सुअवसर अपने जगह पर हैं पर इस तरह से बढ़ते हुए प्रेम विवाहों के कारण ही लड़कियों की उच्च शिक्षा के लिए आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में अघोषित रोक सी दिखाई देती है. कही ऐसा न हो की कुछ लोगों के इस तरह के क़दमों से पूरे समाज में लड़कियों की शिक्षा पर ही बुरा असर पड़ने लगे.       
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