मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 28 जून 2013

सीबीआई की संभावित उड़ान

                                                 केंद्र सरकार द्वारा सीबीआई को स्वतंत्र किये जाने के मुद्दे पर गठित मंत्रियों के समूह की सिफारिशों को काफ़ी हद तक मानने का फ़ैसला किया है जिसके बाद यह माना जा सकता है कि अब इस जांच एजेंसी को कुछ जगहों पर काम करने की पूरी स्वतंत्रता मिलने वाली है और इसके द्वारा की जाने वाली जांचों पर निगरानी रखने के लिए अब सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के पैनेल द्वारा विचार किया जाया करेगा जिससे सरकार का अनावश्यक दबाव भी एजेंसी पर ख़त्म होने की एक शुरुवात भर हो सकती है. देश में सरकारें चला रहे सभी दलों के लिए सरकारी तंत्र का दुरूपयोग करने की एक ऐसी बीमारी लगी हुई है जिस कारण से हमारी इस महत्वपूर्ण जांच एजेंसी के काम काज को देखते हुए कोर्ट ने इसे सरकारी तोता बताया जो केवल वही करता है जो उसके मालिक के रूप में सरकार चाहती है. ऐसी स्थिति में जब कोर्ट ने सरकार से इसे दबावमुक्त होकर काम करने लायक माहौल बनाने के लिए निर्देश जारी करने के साथ यह भी जानना चाहा है कि सकरार इस दिशा में क्या कर रही है इससे भी अबगत कराये तब सरकार ने यह काम शुरू किया है.
                    आज की परिस्थितियों में जब देश १९५० में बनाए गए संविधान के अनुसार ही चल रहा ही तो उसमें समय के साथ आये हुए बदलावों के साथ महत्वपूर्ण परिवर्तनों की आवश्यकता पर कोई ध्यान ही नहीं देना चाहता है. पहले और अब में सबसे बड़ा परिवर्तन यही आ चुका है कि नेताओं में पहली जैसी मानसिकता ही नहीं रही और वे अपने हितों को साधने के लिए इस जांच एजेंसी का दुरूपयोग करने को अपना हक़ समझने लगे हैं जब नेताओं में इस तरह की बात घर कर गई है तो इसमें जांच एजेंसी के सामने अन्य कोई विकल्प शेष ही नहीं रह जाता है क्योंकि सरकार की ज़रूरतों को पूरा करते करते एजेंसी अपना काम करने का तरीका ही भूल गई है और राजनैतिक मामलों में उसे जिस तरह से काम करना चाहिए वह उसमें पूरी तरह से विफल साबित होती है. देश के प्रति आज भी अधिकांश सरकारी कर्मचारियों में काम करने की ललक अभी भी है पर जिस तरह से दबाव की राजनीति ने अपनी जगह बना ली है वह कहीं से भी उचित नहीं है और उस माहौल में कोई ठीक से काम करने का इच्छुक भी नहीं दिखाई देता है.
                   इस बात पर आलोचनाओं का कोई मतलब नहीं होता है कि सरकार ने आधे अधूरे मन से सुधारों को लागू किया है क्योंकि भारत में लोकतंत्र है और कोई भी काम इतनी आसानी से हमारे नेता नहीं करने देंगें यह पूरा देश जानता है तो उस स्थिति में कहीं से किसी दबाव के बाद शुरू हुई इस प्रक्रिया को यदि केवल एक शुरुवात ही माना जाये तो आने वाले समय में बहुत कुछ सुधारा भी जा सकता है. उन दिनों को याद करने की आवश्यकता है जब टी एन शेषन ने चुनाव सुधारों को लागू करने का दृढ संकल्प दिखाया था इस मामले में सभी नेता के जैसे हैं क्योंकि तब शेषन की नियुक्ति का भाजपा ने उतना ही विरोध किया था जितना सीबीआई के वर्तमान निदेशक रणजीत सिन्हा का ? यदि उस समय चंद्रशेखर सरकार ने शेषन की जगह और अब संप्रग सरकार ने सिन्हा की जगह किसी और को नियुक्त किया होता तो क्या देश में इतने परिवर्तन और सुधारों की दिशा में बढ़ा जा सकता था ? इसलिए बेहतर यही है कि सभी राजनैतिक दल अपने हितों से देश के हितों को ऊपर रखने का क्रम सीखा शुरू कर दें वरना वह दिन दूर नहीं जब ये क्रुद्ध जनता के पैरों के नीचे दिखाई दे सकते हैं. 
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