एक बार फिर से देश उन्हों बातों में उलझने जा रहा है जिससे आज तक उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ है क्योकि बोधगया के देश के महत्वपूर्ण बौद्ध तीर्थ स्थल होने के साथ ही पडोसी गया में वार्षिक श्राद्ध के समय पूरे विश्व से श्रद्धालु वहां जाकर अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए जाया करते हैं. ऐसे में यदि किसी भी स्तर पर इन अस्था के केन्द्रों पर इस तरह से सांकेतिक या पूरे ज़ोर से हमला किया जाता है तो आने वाले समय में इससे पूरे बिहार के पर्यटन पर भी बुरा असर पड़ सकता है. बौद्ध गया पूरे विश्व के बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए के महत्वपूर्ण स्थल रहा है और यहाँ पर आने वाले श्रद्धालुओं में विदेशी लोग हमेशा से ही अधिक हुआ करते हैं. इन स्थलों के धार्मिक महत्त्व को देखते हुए जिस तरह से सरकार और पुलिस को चौकन्ना रहने की आवश्यकता थी उसमें हम पूरी तरह से असफल साबित हुए हैं और यह पहली बार नहीं है कि ऐसा हुआ है देश के हर राज्य में कमोबेश यही स्थिति बनी हुई है और इससे निपटने के लिए जिस तरह के प्रभावी और कड़े कानूनों की आवश्यकता है उन पर आज तक विचार नहीं किया जा सका है ?
हमेशा की तरह देश में किसी भी ग़ैर इस्लामिक तीर्थ स्थल या भीड़ भरे स्थल पर होने वाले किसी भी आतंकी हमले के लिए इस्लामी चरम पंथियों पर ही शक की सुई सबसे पहले घुमाई जाती है क्योंकि विदेशों में बैठे हुए इनके आक़ा अक्सर अपने बयानों में भारत पर हमले करने की बातें करके यहाँ की सुरक्षा एजेंसियों को भी एक तरफ़ ही सोचने को बाध्य किया करते हैं ? देश में संदेह के आधार पर हिरासत में लिए जाने का मुद्दा अब बहुत बड़ा बन चुका है क्योंकि जिस स्तर पर इन आतंकियों से निपटने की योजना होनी चाहिए उसमें हमारे नेता बहुत पीछे हैं और वे किसी भी ऐसे तंत्र पर सहमत नहीं हो पाते हैं जिससे संदिग्धों की हिरासत और उन पर अभियोग दर्ज करने को बाध्यता के रूप में लिए जाये और यदि किसी के ख़िलाफ़ सबूत नहीं मिलते हैं तो उसे अनावश्यक रूप से जेलों में न रखा जाये और दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्यवाही भी की जाये ? इस तरह के आतंकी हमलों में संदेह के आधार पर ही जांच शुरू की जाती है क्योंकि आतंकी कोई अपने कामों के बारे में प्रचारित करने सामने नहीं आते हैं इसलिए संदिग्धों की गिरफ़्तारी पर कोई राजनीति भी नहीं होनी चाहिए हाँ निर्दोषों को जेल में बंद रखने पर कठोर नियमों के तहत कार्यवाही करने का नियम भी होना चाहिए.
आतंक और आतंकियों से निपटने के लिए हमारे पास पूरी व्यवस्था भी होनी चाहिए अब इसका समय आ गया है क्योंकि जिस स्तर पर आतंकियों ने अपना जाल बुन रखा है उसे ख़त्म करने के लिए अब समग्र प्रयासों की आवश्यकता है और बिना इसके किसी भी तरह से समाज में सुरक्षा के स्तर पर अपेक्षित सुधार नहीं लाया जा सकता है. किसी भी आतंकी घटना को मीडिया जिस तरह से हमेशा ही अपने अनुसार विभिन्न संगठनों और देशों पर इलज़ाम लगाने के लिए सनसनी फ़ैलाने में लग जाया करता है उसका भी कोई औचित्य नहीं है क्योंकि इस तरह की रिपोर्टिंग से कई बार जांच की गति में भी बाधा आती है ? देश की ख़ुफ़िया और सुरक्षा एजेंसियों के पास संदिग्धों को हिरासत में लिए जाने के अधिकार तो होने ही चाहिए पर उन पर यह ज़िम्मेदारी भी होनी चाहिए कि वे एक निश्चित समय में अभियोग पंजीकृत करके दोषियों को सज़ा दिलवाने का क्रम शुरू कर सकें और एक निर्धारित अवधि में ऐसा न कर पाने पर उनके लिए संदिग्धों को रिहा करने की बाध्यता भी होनी चाहिए और किसी भी तरह के संदेह होने पर सम्बंधित संदिग्धों की गतिविधियों पर नज़र भी रखने की व्यवस्था भी होनी चाहिए. पर देश में सुरक्षा के नाम पर राजनीति करने वाले दलों को इससे क्या हासिल होता है यह हम सभी जानते हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
हमेशा की तरह देश में किसी भी ग़ैर इस्लामिक तीर्थ स्थल या भीड़ भरे स्थल पर होने वाले किसी भी आतंकी हमले के लिए इस्लामी चरम पंथियों पर ही शक की सुई सबसे पहले घुमाई जाती है क्योंकि विदेशों में बैठे हुए इनके आक़ा अक्सर अपने बयानों में भारत पर हमले करने की बातें करके यहाँ की सुरक्षा एजेंसियों को भी एक तरफ़ ही सोचने को बाध्य किया करते हैं ? देश में संदेह के आधार पर हिरासत में लिए जाने का मुद्दा अब बहुत बड़ा बन चुका है क्योंकि जिस स्तर पर इन आतंकियों से निपटने की योजना होनी चाहिए उसमें हमारे नेता बहुत पीछे हैं और वे किसी भी ऐसे तंत्र पर सहमत नहीं हो पाते हैं जिससे संदिग्धों की हिरासत और उन पर अभियोग दर्ज करने को बाध्यता के रूप में लिए जाये और यदि किसी के ख़िलाफ़ सबूत नहीं मिलते हैं तो उसे अनावश्यक रूप से जेलों में न रखा जाये और दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्यवाही भी की जाये ? इस तरह के आतंकी हमलों में संदेह के आधार पर ही जांच शुरू की जाती है क्योंकि आतंकी कोई अपने कामों के बारे में प्रचारित करने सामने नहीं आते हैं इसलिए संदिग्धों की गिरफ़्तारी पर कोई राजनीति भी नहीं होनी चाहिए हाँ निर्दोषों को जेल में बंद रखने पर कठोर नियमों के तहत कार्यवाही करने का नियम भी होना चाहिए.
आतंक और आतंकियों से निपटने के लिए हमारे पास पूरी व्यवस्था भी होनी चाहिए अब इसका समय आ गया है क्योंकि जिस स्तर पर आतंकियों ने अपना जाल बुन रखा है उसे ख़त्म करने के लिए अब समग्र प्रयासों की आवश्यकता है और बिना इसके किसी भी तरह से समाज में सुरक्षा के स्तर पर अपेक्षित सुधार नहीं लाया जा सकता है. किसी भी आतंकी घटना को मीडिया जिस तरह से हमेशा ही अपने अनुसार विभिन्न संगठनों और देशों पर इलज़ाम लगाने के लिए सनसनी फ़ैलाने में लग जाया करता है उसका भी कोई औचित्य नहीं है क्योंकि इस तरह की रिपोर्टिंग से कई बार जांच की गति में भी बाधा आती है ? देश की ख़ुफ़िया और सुरक्षा एजेंसियों के पास संदिग्धों को हिरासत में लिए जाने के अधिकार तो होने ही चाहिए पर उन पर यह ज़िम्मेदारी भी होनी चाहिए कि वे एक निश्चित समय में अभियोग पंजीकृत करके दोषियों को सज़ा दिलवाने का क्रम शुरू कर सकें और एक निर्धारित अवधि में ऐसा न कर पाने पर उनके लिए संदिग्धों को रिहा करने की बाध्यता भी होनी चाहिए और किसी भी तरह के संदेह होने पर सम्बंधित संदिग्धों की गतिविधियों पर नज़र भी रखने की व्यवस्था भी होनी चाहिए. पर देश में सुरक्षा के नाम पर राजनीति करने वाले दलों को इससे क्या हासिल होता है यह हम सभी जानते हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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