देश में विश्वास के आधार पर बनाये और हलाये जाने वाले संविधान और नियमों की अपरिहार्यता को देखते हुए सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी जांच रिपोर्टों को सरकार और विभिन्न एजेंसियों के साथ साझा करने के लिए अनुमति मांगी है क्योंकि उसका कहना है कि वर्तमान में जांच को सरकार और विभिन्न एजेंसियों से साझा किये बिना इसे आगे बढ़ा पाने में दिक्कतें आने लगी हैं. आज के समय जो भी कानून हैं उसमें एजेंसी को केवल जांच का अधिकार ही और विभिन्न तरह के मामलों में आगे बढ़ने के लिए उसे सरकार की अनुमति लगातार चाहिए होती है और कोयला घोटाले में जिस तरह से राज्य सरकारों को भूमिका की भी जांच होनी है तो उस परिस्थिति में उसे केंद्र सरकार के साथ यह रिपोर्ट साझा करनी ही होगी और आगे के क़दमों के बारे में उससे अनुमति लेकर कार्यवाही करनी होगी. सीबीआई के पास अभी इतने अधिकार नहीं हैं जिनके माध्यम से वह स्वतंत्र रूप से किसी भी अधिकारी या राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में दखल दे सके और जांच के व्यापक स्वरुप को देखते हुए उसे भ्रष्टाचार के मामलों में सतर्कता आयुक्त के साथ राज्यों की पुलिस से भी रिपोर्ट साझा करने की आवश्यकता हो रही है.
पिछले कुछ वर्षों में सीबीआई के दुरूपयोग की बढ़ती हुई घटनाओं की ज़िम्मेदारी सरकारों पर ही आती है क्योंकि यह एजेंसी सरकार के अंतर्गत ही आती है पर कोर्ट में चल रहे मामलों और कोर्ट के आदेशों के बाद अब जिस तरह से जांच ठहरी हुई है उसमें सरकार के साथ रिपोर्ट साझा किए जाने के बारे में कोर्ट द्वारा आदेश अपरिहार्य हो गया है. इस परिस्थिति में कोर्ट द्वारा रिपोर्ट अपने यहाँ जमा कराये जाने के बाद अनुमति दिए जाने की पूरी सम्भावना है जिससे उसमें किसी तरह के फेर बदल को रोका जा सके. आज हमें इस बात पर विचार करने की अधिक आवश्यकता है कि वे कारण कहाँ से उत्पन्न हो गए कि न्यायपालिका को विधायिका के ख़िलाफ़ इस हद तक आदेश पारित करने के लिए मजबूर होना पड़ा ? देश के पास एक सम्पूर्ण और समग्र संविधान होने के साथ परिवर्तनशील विचार धारा भी है जो आवश्यकता पड़ने पर संसद के माध्यम से संविधान में परिवर्तन करने की क्षमता से पूरी तरह से युक्त है. ऐसी स्थिति में भी जब अविश्वास का माहौल इस क़दर हावी होता है तो हम सभी को विचार करने की आवश्यकता महसूस होती है.
केवल राजनैतिक कारणों से ही सीबीआई को नियंत्रण मुक्त किए जाने की किसी भी आवश्यकता पर विचार किए जाने के स्थान पर इसके हर समय राजनैतिक दुरूपयोग का रोना रोने की स्थिति भी आज बदलने की आवश्यकता है क्योंकि किसी भी दल या गठबंधन की केंद्र सरकार से असहमत या अन्य दलों की सरकारें जिस तरह से हर समय इसके दुरूपयोग का रोना रोती हैं पर उनको किसी स्पष्ट जांच की आवश्यकता होने पर वे केंद्र सरकार से खुद ही सीबीआई जांच का अनुरोध करती हैं क्योंकि उन्हें भी यह पता है कि केवल राजनैतिक कारणों को छोड़कर आज भी इस जांच एजेंसी के पास काम करने की जितनी दक्षता है उसका देश में कोई मुकाबला नहीं है. इसे पूरी तरह से नियंत्रण मुक्त किए जाने के स्थान पर इस पर नियंत्रण रखने के लिए एक समिति होनी चाहिए जिसमें केवल सरकारी लोगों के स्थान पर कुछ सामाजिक लोगों का भी दखल होना चाहिए ? देश भी समाज के मूर्धन्य लोगों के अनुभवों का लाभ ले सकता है पर उसके लिए केवल विरोध की राजनीति एजेंसी के मनोबल पर बुरा असर डालती है इसलिए अब समय है कि नेता लोग ही अपनी हितों को साधने के लिए इसका इस्तेमाल बंद करें और इसे निष्पक्ष रूप से काम करने का अवसर दें क्योंकि देश की अदालतें कम के बोझ से पहले ही दबी हुई हैं और अब उनका पास जांचों की निगरानी का काम भी आ रहा है ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
पिछले कुछ वर्षों में सीबीआई के दुरूपयोग की बढ़ती हुई घटनाओं की ज़िम्मेदारी सरकारों पर ही आती है क्योंकि यह एजेंसी सरकार के अंतर्गत ही आती है पर कोर्ट में चल रहे मामलों और कोर्ट के आदेशों के बाद अब जिस तरह से जांच ठहरी हुई है उसमें सरकार के साथ रिपोर्ट साझा किए जाने के बारे में कोर्ट द्वारा आदेश अपरिहार्य हो गया है. इस परिस्थिति में कोर्ट द्वारा रिपोर्ट अपने यहाँ जमा कराये जाने के बाद अनुमति दिए जाने की पूरी सम्भावना है जिससे उसमें किसी तरह के फेर बदल को रोका जा सके. आज हमें इस बात पर विचार करने की अधिक आवश्यकता है कि वे कारण कहाँ से उत्पन्न हो गए कि न्यायपालिका को विधायिका के ख़िलाफ़ इस हद तक आदेश पारित करने के लिए मजबूर होना पड़ा ? देश के पास एक सम्पूर्ण और समग्र संविधान होने के साथ परिवर्तनशील विचार धारा भी है जो आवश्यकता पड़ने पर संसद के माध्यम से संविधान में परिवर्तन करने की क्षमता से पूरी तरह से युक्त है. ऐसी स्थिति में भी जब अविश्वास का माहौल इस क़दर हावी होता है तो हम सभी को विचार करने की आवश्यकता महसूस होती है.
केवल राजनैतिक कारणों से ही सीबीआई को नियंत्रण मुक्त किए जाने की किसी भी आवश्यकता पर विचार किए जाने के स्थान पर इसके हर समय राजनैतिक दुरूपयोग का रोना रोने की स्थिति भी आज बदलने की आवश्यकता है क्योंकि किसी भी दल या गठबंधन की केंद्र सरकार से असहमत या अन्य दलों की सरकारें जिस तरह से हर समय इसके दुरूपयोग का रोना रोती हैं पर उनको किसी स्पष्ट जांच की आवश्यकता होने पर वे केंद्र सरकार से खुद ही सीबीआई जांच का अनुरोध करती हैं क्योंकि उन्हें भी यह पता है कि केवल राजनैतिक कारणों को छोड़कर आज भी इस जांच एजेंसी के पास काम करने की जितनी दक्षता है उसका देश में कोई मुकाबला नहीं है. इसे पूरी तरह से नियंत्रण मुक्त किए जाने के स्थान पर इस पर नियंत्रण रखने के लिए एक समिति होनी चाहिए जिसमें केवल सरकारी लोगों के स्थान पर कुछ सामाजिक लोगों का भी दखल होना चाहिए ? देश भी समाज के मूर्धन्य लोगों के अनुभवों का लाभ ले सकता है पर उसके लिए केवल विरोध की राजनीति एजेंसी के मनोबल पर बुरा असर डालती है इसलिए अब समय है कि नेता लोग ही अपनी हितों को साधने के लिए इसका इस्तेमाल बंद करें और इसे निष्पक्ष रूप से काम करने का अवसर दें क्योंकि देश की अदालतें कम के बोझ से पहले ही दबी हुई हैं और अब उनका पास जांचों की निगरानी का काम भी आ रहा है ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
तोता अगर ज्यादा दिन तक पिंजड़े मे रह जाए तो फिर एक दिन खुला छोड़ देने पर भी उसके पंख नहीं फड़फड़ाते और उड़ाने मे असमर्थ होजाते है
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