कारगिल युद्ध के इतने वर्ष बीत जाने के बाद जिस तरह से एक पाक सैनिक ने इस बात को स्वीकार किया है कि कैप्टन सौरभ कालिया और उनके साथियों की निर्ममता पूर्वक हत्या करने में उसका ही हाथ था उससे यही लगता है कि पाक में कभी भी मानवीयता का कोई पक्ष उजागर नहीं होने वाला है. अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत युद्ध बंदियों से जिस तरह से व्यवहार किया जाना चाहिए पाक ने उसका खुले तौर पर हमेशा ही उल्लंघन किया है क्योंकि हर स्तर पर पाक ने हमेशा ही जिस तरह से झूठ का ही सहारा लिया है और बाद में उसके बड़बोले नेताओं, सैन्य अधिकारियों और सैनिकों से यह बात हज़म ही नहीं हो पाती है कि वे इन बातों को अपने तक ही सीमित रख सकें तो उसका असली चेहरा सामने आता ही रहता है. कारगिल युद्ध को पहले पाक एक विद्रोह कहता रहा पर अब जब मुशर्रफ के पास कुछ नहीं बचा तो उन्होंने अपने लोगों से यह कहलवाने में कोई चूक नहीं की कि यह एक पूरा पूर्व नियोजित युद्ध ही था जिससे यह साबित होता है कि पाक जो कुछ भी कहता है उससे उलटी बात ही करता रहता है ?
कारगिल युद्ध में जिस तरह से कैप्टन सौरभ कालिया के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया था और पाक के इस निर्मम व्यवहार के विरुद्ध अभी तक जिस तरह से उनके पिता सरकार से गुहार लगाते रहे हैं और पूरे मसले को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले जाना चाहते हैं उसके बाद यही लगता है कि पाक सैनिक के इस बयान को अदालत में एक सबूत के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है. किसी भी युद्ध क्षेत्र में बंदी बनाये गए सैनिकों के साथ किये जाने वाले व्यवहार के बारे में एक अंतर्राष्ट्रीय कानून अस्तित्व में है और उसके अनुपालन की सभी देशों से आशा भी की जाती है पर अभी तक पाक ने जिस तरह से हर कानून को हवा में उड़ाने का प्रयास किया है और अपने पर दबाव बनने की स्थिति में उसे उन्हीं कानूनों का सहारा लेने में ज़रा भी हिचक नहीं होती है उससे उसकी बीमार मानसिकता का ही पता चलता है क्योंकि आज तक उसने कभी भी मानवीयता को प्राथमिकता नहीं दी है और इस्लाम के नाम पर अविभाजित देश से लाखों भारतीय मुसलमान जिस तरह से विस्थापित होकर वहां चले गए थे आज उनके लिए भी वहां जीने में मुश्किलें सामने आ रही हैं.
अब समय आ गया है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पाक की इस तरह की हरक़तों पर ध्यान देना ही चाहिए क्योंकि पाक इस तरह से हमेशा ही करता रहता है और मानवाधिकार के कथित पैरोकार अमेरिका और यूरोपीय संघ भी उसकी अनदेखी करते ही रहते हैं. अंतर्राष्ट्रीय कानून की जिस तरह से स्वयं अमेरिका द्वारा ही सदैव धज्जियाँ उड़ाई जाती रहती हैं उस स्थिति में उसके पिछलग्गू देशों से सही काम करने की आशा कैसे की जा सकती है ? इस मसले में अब जब एक पाक सैनिक खुद ही इस तरह के बयान के साथ पाक के सरकारी टीवी पर अपनी बात को स्पष्ट कर रहा है तो क्या इससे बाद कोई और भी सबूत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और अदालत को चाहिए ? पश्चिमी देशों के साथ यही समस्या है कि वे समय आने पर अपने हितों के अनुसार कानून का अनुपालन और उसकी अनदेखी करते रहते हैं जिस कारण से पाक और खाड़ी देशों में वे सदैव ही संदेह की दृष्टि से देखे जाते हैं. अब भी समय है कि इन देशों को पाक के साथ अपने संबंधों का उपयोग कर उसे कानून के अनुपालन पर ध्यान दें को कहना चाहिए वरना कभी किसी भारतीय नेतृत्व ने यदि इन हरकतों से ऊबकर कोई कड़ा निर्णय ले लिया तो पाक समेत इन सभी देशों के लिए बहुत बड़ी समस्या हो सकती है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कारगिल युद्ध में जिस तरह से कैप्टन सौरभ कालिया के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया था और पाक के इस निर्मम व्यवहार के विरुद्ध अभी तक जिस तरह से उनके पिता सरकार से गुहार लगाते रहे हैं और पूरे मसले को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले जाना चाहते हैं उसके बाद यही लगता है कि पाक सैनिक के इस बयान को अदालत में एक सबूत के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है. किसी भी युद्ध क्षेत्र में बंदी बनाये गए सैनिकों के साथ किये जाने वाले व्यवहार के बारे में एक अंतर्राष्ट्रीय कानून अस्तित्व में है और उसके अनुपालन की सभी देशों से आशा भी की जाती है पर अभी तक पाक ने जिस तरह से हर कानून को हवा में उड़ाने का प्रयास किया है और अपने पर दबाव बनने की स्थिति में उसे उन्हीं कानूनों का सहारा लेने में ज़रा भी हिचक नहीं होती है उससे उसकी बीमार मानसिकता का ही पता चलता है क्योंकि आज तक उसने कभी भी मानवीयता को प्राथमिकता नहीं दी है और इस्लाम के नाम पर अविभाजित देश से लाखों भारतीय मुसलमान जिस तरह से विस्थापित होकर वहां चले गए थे आज उनके लिए भी वहां जीने में मुश्किलें सामने आ रही हैं.
अब समय आ गया है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पाक की इस तरह की हरक़तों पर ध्यान देना ही चाहिए क्योंकि पाक इस तरह से हमेशा ही करता रहता है और मानवाधिकार के कथित पैरोकार अमेरिका और यूरोपीय संघ भी उसकी अनदेखी करते ही रहते हैं. अंतर्राष्ट्रीय कानून की जिस तरह से स्वयं अमेरिका द्वारा ही सदैव धज्जियाँ उड़ाई जाती रहती हैं उस स्थिति में उसके पिछलग्गू देशों से सही काम करने की आशा कैसे की जा सकती है ? इस मसले में अब जब एक पाक सैनिक खुद ही इस तरह के बयान के साथ पाक के सरकारी टीवी पर अपनी बात को स्पष्ट कर रहा है तो क्या इससे बाद कोई और भी सबूत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और अदालत को चाहिए ? पश्चिमी देशों के साथ यही समस्या है कि वे समय आने पर अपने हितों के अनुसार कानून का अनुपालन और उसकी अनदेखी करते रहते हैं जिस कारण से पाक और खाड़ी देशों में वे सदैव ही संदेह की दृष्टि से देखे जाते हैं. अब भी समय है कि इन देशों को पाक के साथ अपने संबंधों का उपयोग कर उसे कानून के अनुपालन पर ध्यान दें को कहना चाहिए वरना कभी किसी भारतीय नेतृत्व ने यदि इन हरकतों से ऊबकर कोई कड़ा निर्णय ले लिया तो पाक समेत इन सभी देशों के लिए बहुत बड़ी समस्या हो सकती है.
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