मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

करीम टुंडा, यासीन भटकल और असदुल्लाह हड्डी

                                                 पिछले एक पखवाड़े में जिस तरह से सुरक्षा एजेंसियों को देश में लम्बे समय से वांक्षित आतंकियों को पकड़ने में बड़ी सफलताएँ मिली हैं उसके बाद यह कहा जा सकता है कि देश में एक केन्द्रीय जांच और ख़ुफ़िया एजेंसी का होना बहुत आवश्यक था और इस दिशा में अभी और प्रयास किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि लबे समय से देश में आतंकी वारदात कर गायब हो रहे आतंकियों को पकड़ पाने में हमारा सुरक्षा और ख़ुफ़िया तंत्र अभी तक कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं कर पा रहा था. देश की सुरक्षा से सम्बंधित सभी मामलों में पूरे देश के सभी राज्यों की पुलिस, ख़ुफ़िया एजेंसियों और केन्द्रीय एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल से यदि सभी आतंकियों को पकड़ा नहीं जा सकता है तो कम से कम उन्हें खोजकर कानून की गिरफ़्त में लाने के काम से ही उन लोगों में भय व्याप्त हो जायेगा जो सदैव से ही गुपचुप तरीक़े से इन आतंकियों के हिमायती बने रहते हैं और समाज में अपने को दूसरे रूप में सभी दिखने की झूठी कोशिशें करते रहते हैं.
                                               इन आतंकियों की गिरफ़्तारी के बाद पहली बार ऐसा संदेश गया है कि भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसियां भी इस दिशा में अच्छे से काम कर सकती हैं क्योंकि अभी तक जिस तरह से विभिन्न आतंकी घटनाओं के बाद अलग अलग कई सुर सुनाई देते थे उनसे भी भारतीय एजेंसियों की कमज़ोरी ही साबित होती थी पर यदि आज की इस रफ़्तार को बनाये रखा जा सका तो आने वाले दिनों में आतंकियों के उन ख़ामोश समर्थकों पर भी नज़रें जा सकती हैं जो आज तक अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं. किसी भी बड़ी आतंकी घटना के तार जिस तरह से हर बार यूपी में आजमगढ़ से जुड़ते नज़र आते हैं इस बार भी कुछ वैसा ही है क्योंकि भटकल के साथ पकड़ा गया आतंकी असदुल्लाह उर्फ़ हड्डी भी वहीं का रहने वाला है और पूरे देश में हर बार किसी भी आतंकी घटना के बाद जिस तरह से उसमें कोई न कोई आजमगढ़ की तरफ जाने वाला संपर्क अवश्य होता है उससे यही पता चलता है कि वहां पर आतंकियों ने अपनी पैठ को मज़बूत कर रखा है और इससे वहां के संभ्रांत लोग भी नहीं बच पाए हैं ? आख़िर आजमगढ़ की युवा पीढ़ी क्यों इस तरह से आतंकियों के चंगुल में जा रही है इस पर न तो वहां के निवासी और न ही सरकार ध्यान देना चाहती है.
                                               सुरक्षा एजेंसियों को इस तरह की सफलता रातों रात नहीं मिल जाती है उसके लिए उन्हें काफी तैयारियां करनी पड़ती हैं क्योंकि देश में मानवाधिकार के नाम पर चिल्लाने वालों का एक ऐसा वर्ग भी मौजूद है जो हर मसले को राष्ट्रीय सुरक्षा से परे केवल मानवाधिकार के नाम पर ही अपना चश्मा लगाकर देखने का आदी हो चुका है ? आतंकियों से निपटने में बेशक सुरक्षा एजेंसियों से कई बार चूक भी हो जाया करती है और आम निर्दोष नगरिक भी हताहत होते हैं पर इससे क्या आतंकियों के ख़िलाफ़ चलाये जाने वाले अभियानों को रोक दिया जाये जिन आतंकियों के लिए निर्दोष नागरिकों की जान का कोई मतलब नहीं होता है उनके लिए मानवाधिकारों की पैरवी करने वाले आख़िर किस तरह के समाज को बनाना चाहते हैं ? दुनिया के किसी भी देश में राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर इस तरह का मज़ाक दिखाई नहीं देगा जैसा हमारे देश में होता है क्योंकि यहाँ पर कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें अपने नाम को आगे करने में ही अच्छा लगता है भले ही वे किसी गलत काम का समर्थन करके ही यह सब कर पाते हों ? अब समय है कि ऐसे मुद्दों पर किसी भी तरह की अनावश्यक बातों को सुनने और करने के स्थान पर केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखा जाये जिससे आतंकियों के मन में भय उत्पन्न हो सके और देश की सुरक्षा को मज़बूत किया जा सके.        
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

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