देश में रूपये की घटती कीमत से जिस तरह की सनसनी फैलाई जा रही है संभवतः उसकी कोई विशेष आवश्यकता नहीं है पर यह देश के औद्योगिक प्रतिष्ठानों के साथ सरकार के लिए अवश्य ही चिंता का विषय है क्योंकि जिस तरह से अमेरिका में सुधरती हुई अर्थ व्यवस्था और बदलती नीतियों के बाद से ही भारतीय बाज़ार और रूपये पर दबाव निरंतर बढ़ता ही जा रहा है उस स्थिति में आर्थिक विश्लेषकों के अनुसार सरकार के पास सीमित विकल्प ही बचे हुए हैं. वर्तमान परिस्थिति में जिस तरह से अभी तक सरकार इस मामले में कोई क़दम नहीं उठा रही है तो उसका मतलब यही माना जाना चाहिए कि या तो उसके पास विकल्प सीमित हो चुके हैं या फिर वह एक बार वैश्विक अर्थ व्यवस्था के संकेतों और बाज़ार की चाल को भांपने के बाद की किसी क़दम को उठाना चाहती है जिससे आने वाले समय में इस तरह के संकट को कम किया जा सके ? पर सरकार की मंशा क्या है अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है जिससे भी अनावश्यक रूप से आर्थिक संकट और गहराने की बातें करने वालों को हवा मिल रही है ?
भारतीय अर्थ व्यवस्था के संकट में इस तरह से जाने के साथ ही पूरे विश्व में इसका असर पड़ना निश्चित है क्योंकि वर्तमान में भारतीय बाज़ार ने चीन समेत पूरे विश्व की आर्थिक गतिविधियों को बड़ा संबल दे रखा है पर जिस तरह से आज हमारी अर्थव्यवस्था में लडखडाहट दिखाई दे रही है उससे आने वाले समय में पूरे विश्व पर इसका दुष्प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी है. भारतीय उपभोक्ता बाज़ार ने अभी तक पूरी दुनिया में सबसे तेज़ी से विकास करने की अपनी गति बनाये रखी है और जब आज भारतीय अर्थ व्यवस्था पर संकट दिखाई दे रहा है तो वह भले ही केवल भारत का संकट लगता हो पर शीघ्र ही पूरी दुनिया के विकसित देश भी इसकी चपेट में आये बिना नहीं बच सकेंगें. एक समय था जब भारत के पास इतनी ऊर्जा थी कि उसने और चीन ने मिलकर अमेरिका को भी मंदी के दौर में सहारा दे दिया था पर आज जब भारत को इस तरह के सहारे की आवश्यकता है तो पूरी दुनिया केवल लाभ कमाने में ही लगी हुई है जिसका दुष्प्रभाव उसे जल्दी ही भुगतना भी पड़ेगा. भारत की आर्थिक प्रगति और रफ़्तार आज पूरे विश्व के लिए बहुत आवश्यक है पर अभी अन्य देशों को यह बात समझ में नहीं आ रही है.
जो लोग मनमोहन सिंह की क्षमताओं पर प्रश्न चिन्ह लगाने का काम कर रहे हैं उन्हें यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि इनकी नीतियों के कारण ही देश को १९९१ में बेहद विपरीत आर्थिक परिस्थितियों से उबारने में मदद मिली थी तो आज क्या वे चुप होकर बैठे रहेंगें ? संभवतः वे वर्तमान परिस्थितियों को एक राजनेता के स्थान पर एक अर्थ शास्त्री के रूप में देखने का प्रयास कर रहे हैं और समय आने पर उचित क़दम उठाने के बारे में भी कोई कार्य योजना बना रहे हों. आज जब पूरे विश्व की अर्थ व्यवस्था ही एक दूसरे से जुड़ी हुई है तो किसी भी बदलते आर्थिक परिदृश्य का भारत पर भी प्रभाव पड़ेगा ही फिर भी सरकार को अब कुछ उन उपायों पर विचार कर कुछ आगे बढ़ना ही होगा जिससे केवल भय के कारण भारतीय मुद्रा के साथ जो कुछ भी हो रहा है उसे रोका जा सके और आर्थिक परिदृश्य में बनावटी संकेतों से बचा भी जा सके. आर्थिक संक्रमण के इस दौर में अब भारतीय सरकार, उद्योग जगत और आम जनता के पास क्या विकल्प बचे हुए हैं इस पर भी गंभीरता से विचार किये जाने की आवश्यकता है जिससे संकट के इस दौर में मुनाफा काटने वालों पर रोक लगायी जा सके और रूपये और बाज़ार को संभाला भी जा सके.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
भारतीय अर्थ व्यवस्था के संकट में इस तरह से जाने के साथ ही पूरे विश्व में इसका असर पड़ना निश्चित है क्योंकि वर्तमान में भारतीय बाज़ार ने चीन समेत पूरे विश्व की आर्थिक गतिविधियों को बड़ा संबल दे रखा है पर जिस तरह से आज हमारी अर्थव्यवस्था में लडखडाहट दिखाई दे रही है उससे आने वाले समय में पूरे विश्व पर इसका दुष्प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी है. भारतीय उपभोक्ता बाज़ार ने अभी तक पूरी दुनिया में सबसे तेज़ी से विकास करने की अपनी गति बनाये रखी है और जब आज भारतीय अर्थ व्यवस्था पर संकट दिखाई दे रहा है तो वह भले ही केवल भारत का संकट लगता हो पर शीघ्र ही पूरी दुनिया के विकसित देश भी इसकी चपेट में आये बिना नहीं बच सकेंगें. एक समय था जब भारत के पास इतनी ऊर्जा थी कि उसने और चीन ने मिलकर अमेरिका को भी मंदी के दौर में सहारा दे दिया था पर आज जब भारत को इस तरह के सहारे की आवश्यकता है तो पूरी दुनिया केवल लाभ कमाने में ही लगी हुई है जिसका दुष्प्रभाव उसे जल्दी ही भुगतना भी पड़ेगा. भारत की आर्थिक प्रगति और रफ़्तार आज पूरे विश्व के लिए बहुत आवश्यक है पर अभी अन्य देशों को यह बात समझ में नहीं आ रही है.
जो लोग मनमोहन सिंह की क्षमताओं पर प्रश्न चिन्ह लगाने का काम कर रहे हैं उन्हें यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि इनकी नीतियों के कारण ही देश को १९९१ में बेहद विपरीत आर्थिक परिस्थितियों से उबारने में मदद मिली थी तो आज क्या वे चुप होकर बैठे रहेंगें ? संभवतः वे वर्तमान परिस्थितियों को एक राजनेता के स्थान पर एक अर्थ शास्त्री के रूप में देखने का प्रयास कर रहे हैं और समय आने पर उचित क़दम उठाने के बारे में भी कोई कार्य योजना बना रहे हों. आज जब पूरे विश्व की अर्थ व्यवस्था ही एक दूसरे से जुड़ी हुई है तो किसी भी बदलते आर्थिक परिदृश्य का भारत पर भी प्रभाव पड़ेगा ही फिर भी सरकार को अब कुछ उन उपायों पर विचार कर कुछ आगे बढ़ना ही होगा जिससे केवल भय के कारण भारतीय मुद्रा के साथ जो कुछ भी हो रहा है उसे रोका जा सके और आर्थिक परिदृश्य में बनावटी संकेतों से बचा भी जा सके. आर्थिक संक्रमण के इस दौर में अब भारतीय सरकार, उद्योग जगत और आम जनता के पास क्या विकल्प बचे हुए हैं इस पर भी गंभीरता से विचार किये जाने की आवश्यकता है जिससे संकट के इस दौर में मुनाफा काटने वालों पर रोक लगायी जा सके और रूपये और बाज़ार को संभाला भी जा सके.
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सही कह रहे हैं, क्या दिक्कत है डालर के मँहगा होने से. कोई नहीं. फिर तो पेट्रोल-डीजल क्यों मँहगा होता चला जा रहा है. एम पी सी सी की वाल पोस्ट पर चस्पा कर दीजिये इसे.
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