पुणे स्थिति रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान की हाई एनर्जी मटिरिअल रिसर्च लेबोरेटरी द्वारा विकसित पूर्णतः स्वदेशी विस्फोटक जांच किट की विश्वसनीयता पर अमेरिका ने भी पूरा भरोसा किया है और अब इसके व्यावसायिक उत्पादन के लिए उसने भारत के इस संगठन से एक समझैता भी किया है जिसके तहत आने वाले समय में अब वह इस किट का निर्माण और विपणन भी करेगा. पूरी दुनिया में ऐसा किट पहली बार बनाया गया है जिसके माध्यम से किसी भी तरह के रासायनिक विस्फोटक पदार्थों के मिश्रण में केवल दो तीन मिनट में ही यह पता लगाया जा सकता है कि उसमें कौन कौन से रासायनिक विस्फोटकों को मिलाया गया है जिससे सुरक्षा बलों के लिए उनसे निपटने के तरीक़े पर तेज़ी से काम कर लोगों की जाने और संपत्ति को बचाया जा सकेगा. इस किट की एक और महतवपूर्ण बात यह भी है कि इसे विस्फोट से पहले और बाद दोनों परिस्थितियों में पूरी दक्षता के साथ इस्तेमाल में लाया जा सकता है क्योंकि कई बार विस्फोटकों के बारे में सही पता न चल पाने से भी संभावित नुकसान को रोका नहीं जा सकता है.
यह सही है कि भारतीय मेधा में बहुत शक्ति है और आज पूरी दुनिया में जिस तरह से हमारे देश के वैज्ञानिक और अन्य क्षेत्रों की प्रतिभा पूरे विश्व में अपना लोहा मनवा रही है उसके बाद हमें स्वयं ही इस बारे में विचार करना चाहिए कि आख़िर वे कौन से कारण हैं जिनके कारण हमारे देश में उच्च श्रेणी के रक्षा उत्पादों को बनाए जाने की कोई पहल होती नहीं दिखाई देती है जबकि मिसाइल के क्षेत्र में आज बहरत रूस सहयोग से निर्मित ब्रह्मोस की तुलना में हर परिस्थिति में काम करने वाली कोई मिसाइल पूरी दुनिया में उपलब्ध ही नहीं है तो भी हम रक्षा अनुसंधान में इतने पिछड़े हुए क्यों हैं ? आज देश के सामने जिस तरह की पड़ोसी देशों के साथ आतंकियों की चुनौतियाँ बढ़ती ही जा रही हैं उस परिस्थिति में अब देश को रक्षा उत्पादन के मामले में आत्म निर्भरता की तरफ क़दम उठाना ही होगा क्योंकि इतनी विशाल आबादी के साथ भी यदि हम हर तरह के उत्पादों के निर्माण में आगे निकल सकते हैं तो उसका उपयोग रक्षा क्षेत्र में क्यों नहीं किया जा सकता है ?
यह सही है कि भारत अपनी तरफ़ से कभी भी किसी युद्ध को शुरू करने का दोषी प्राचीन काल से आज तक नहीं पाया गया है तो अब उस सिद्धांत पर चलते हुए अपनी रक्षा आवश्यकताओं और प्रतिरोधक क्षमता को उच्च स्तर तक ले जाने वाले सभी प्रयासों पर गंभीरता से विचार किया जाना भी बहुत आवश्यक है क्योंकि जब तक हम अपनी आवश्यकताओं के लिए दूसरे देशों पर पूरी तरह से निर्भर रहेंगें तब तक वे हमें अपनी दूसरे दर्ज़े की प्रौद्योगिकी ही बेचते रहेगें ? अब देश में सही समय है कि रक्षा विश्व-विद्यालयों की स्थापना करने कि तरफ़ सोचा जाए और माध्यमिक स्तर की शिक्षा से ही उन विषयों को लागू कर दिया जाए जिनमें रक्षा अनुसंधान की प्रचुर संभावनाएं हैं जिससे हमारी मेधा का सही दिशा में उपयोग किया जा सके और आने वाले कुछ दशकों में दुनिया के बेतरीन रक्षा अनुसंधान देश से ही निकल कर सामने आने लगें. हमारे रक्षा उपकरणों की खरीद के कुल बजट के कुछ प्रतिशत के बराबर धन अब आने वाले समय में रक्षा अनुसंधान के लिए अलग से आवंटित किया जाना चाहिए और इसका उपयोग पहले संरचनात्मक ढांचा बनाने में किया जाना चाहिए फिर आने वाले समय में निजी क्षेत्र का इसमें सहयोग लेकर देश की ज़रूरतों के अनुसार उत्पादन करके आत्मनिर्भरता की तरफ़ बढ़ा जा सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यह सही है कि भारतीय मेधा में बहुत शक्ति है और आज पूरी दुनिया में जिस तरह से हमारे देश के वैज्ञानिक और अन्य क्षेत्रों की प्रतिभा पूरे विश्व में अपना लोहा मनवा रही है उसके बाद हमें स्वयं ही इस बारे में विचार करना चाहिए कि आख़िर वे कौन से कारण हैं जिनके कारण हमारे देश में उच्च श्रेणी के रक्षा उत्पादों को बनाए जाने की कोई पहल होती नहीं दिखाई देती है जबकि मिसाइल के क्षेत्र में आज बहरत रूस सहयोग से निर्मित ब्रह्मोस की तुलना में हर परिस्थिति में काम करने वाली कोई मिसाइल पूरी दुनिया में उपलब्ध ही नहीं है तो भी हम रक्षा अनुसंधान में इतने पिछड़े हुए क्यों हैं ? आज देश के सामने जिस तरह की पड़ोसी देशों के साथ आतंकियों की चुनौतियाँ बढ़ती ही जा रही हैं उस परिस्थिति में अब देश को रक्षा उत्पादन के मामले में आत्म निर्भरता की तरफ क़दम उठाना ही होगा क्योंकि इतनी विशाल आबादी के साथ भी यदि हम हर तरह के उत्पादों के निर्माण में आगे निकल सकते हैं तो उसका उपयोग रक्षा क्षेत्र में क्यों नहीं किया जा सकता है ?
यह सही है कि भारत अपनी तरफ़ से कभी भी किसी युद्ध को शुरू करने का दोषी प्राचीन काल से आज तक नहीं पाया गया है तो अब उस सिद्धांत पर चलते हुए अपनी रक्षा आवश्यकताओं और प्रतिरोधक क्षमता को उच्च स्तर तक ले जाने वाले सभी प्रयासों पर गंभीरता से विचार किया जाना भी बहुत आवश्यक है क्योंकि जब तक हम अपनी आवश्यकताओं के लिए दूसरे देशों पर पूरी तरह से निर्भर रहेंगें तब तक वे हमें अपनी दूसरे दर्ज़े की प्रौद्योगिकी ही बेचते रहेगें ? अब देश में सही समय है कि रक्षा विश्व-विद्यालयों की स्थापना करने कि तरफ़ सोचा जाए और माध्यमिक स्तर की शिक्षा से ही उन विषयों को लागू कर दिया जाए जिनमें रक्षा अनुसंधान की प्रचुर संभावनाएं हैं जिससे हमारी मेधा का सही दिशा में उपयोग किया जा सके और आने वाले कुछ दशकों में दुनिया के बेतरीन रक्षा अनुसंधान देश से ही निकल कर सामने आने लगें. हमारे रक्षा उपकरणों की खरीद के कुल बजट के कुछ प्रतिशत के बराबर धन अब आने वाले समय में रक्षा अनुसंधान के लिए अलग से आवंटित किया जाना चाहिए और इसका उपयोग पहले संरचनात्मक ढांचा बनाने में किया जाना चाहिए फिर आने वाले समय में निजी क्षेत्र का इसमें सहयोग लेकर देश की ज़रूरतों के अनुसार उत्पादन करके आत्मनिर्भरता की तरफ़ बढ़ा जा सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें