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शनिवार, 3 अगस्त 2013

सपा की फिरकापरस्त सियासत

                                   प्रदेश में सांप्रदायिक सद्भाव बनाये रखने के नाम पर गौतम बुद्ध नगर की अधिकारी दुर्गा को निलंबित करने वाली अखिलेश सरकार किस तरह से खुद ही प्रदेश में विभाजन की राजनीति करने पर आमादा है इसका सबसे ताज़ा उदाहरण उसकी नाक के नीचे पुराने लखनऊ में उसी रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ ही होने वाले उपद्रव हैं जिनमें शिया सुन्नी विवाद को हवा देने में सरकार एक पक्षीय कार्यवाही करने के मूड में दिखाई देती हैं जिससे काफ़ी अरसे बाद इस वर्ष फिर से पुराने लखनऊ में तनाव बढ़ता ही जा रहा है. जिस सरकार को एक मस्जिद की अवैध ढंग से बनाई गई दीवार के गिराए जाने से प्रदेश में धार्मिक तनाव बढ़ने का खतरा लगता है जबकि आज भी वहां पर कोई तनाव नहीं है पर उसी सरकार को लखनऊ में सैकड़ों सालों से चले आ रहे उस विवाद के लिए पर्याप्त सुरक्षा बल उपलब्ध कराने में भी समय लग रहा है जो कभी भी विस्फोटक रूप ले सकता है. अपने एक नेता नरेन्द्र भाटी के कहने पर ४१ मिनट में अधिकारी को सस्पेंड करने वाली सरकार को पिछले कई दिनों से चलने वाले छुट पुट उपद्रव कुछ ख़ास नहीं लगते हैं ?
                                   लखनऊ में शियाओं की अच्छी ख़ासी आबादी होने के कारण वहां पर शिया सुन्नी विवाद लम्बे समय से होते रहे हैं और कई बार ये इतने हिंसक भी हो चुके हैं कि काफी लोगों की जानें भी उसमें जाती रही हैं पर अखिलेश सरकार की प्रशासनिक दक्षता का आलम यह है कि उसे यह कुछ ख़ास नहीं लगता है जबकि इधर कई दिनों से वहां पर विद्वेष की आहट लगातार ही सुनाई दे रही है. अलविदा के जुलूस पर जिस तरह से नियोजित तरीके से पथराव किया गया उसे क्या प्रशासनिक विफलता नहीं कहा जाएगा और नॉएडा मामले में जिस एलआईयू की रिपोर्ट देखे जाने की बात अखिलेश, शिवपाल और आज़म करते नहीं थकते हैं क्या लखनऊ में वह छुट्टी पर है या उसकी रिपोर्ट सपा के हितों के ख़िलाफ़ जा रही है ? हिन्दू मुसलमानों में विवाद होने पर मुसलमानों का पक्ष लेने और मुसलमानों में विवाद होने पर सुन्नियों का पक्ष लेती हुई अखिलेश सरकार पता नहीं क्यों निर्भीक प्रशासनिक अधिकारियों को ऐसे संवेदनशील स्थानों पर पोस्ट नहीं करती है ? संभवतः उससे उसके वोट कटते हैं और समाज में होने वाले विभाजन से उसकी राजनैतिक संभावनाओं पर भी असर पड़ता है.
                                  जब कोई भी सरकार इस तरह से एक पक्षीय दिखाई देने लगती है तो उसकी स्वीकार्यता समाज में घटती है पर इस समय जब मुलायम को आगे बढ़कर अखिलेश को सही सलाह देनी चाहिए या फिर उन्हें सार्वजनिक मंचों से ही इशारा करना चाहिए तो वे भी पूरे परिदृश्य से ओझल ही हैं ? अखिलेश में प्रशासनिक दक्षता का अभाव है यह अब स्पष्ट ही हो चुका है और लगता है कि वे महत्वपूर्ण मामलों में केवल अपने कुछ ख़ास अनुभवहीन सलाहकारों की राय मानने लगे हैं क्योंकि इन प्रकरणों को बिना किसी विवाद के आसानी से निपटा जा सकता था पर उसमें भी सरकार का अनुभवहीन कार्यशैली सामने आ रही है जिसका सपा को आने वाले चुनावों में भले ही कुछ लाभ मिल जाए पर समाज में बढ़ने वाली खाई को रोकने में कुछ मदद नहीं मिल पाएगी. कई वर्षों की मशक्कत के बाद जिस तरह से लखनऊ में शिया सुन्नी विवाद में एक बीच का रास्ता निकल गया था तो क्या कारण है कि इस बार फिर से उपद्रवी तत्व फिरके के नाम पर अपना सर उठा रहे हैं  ? कहीं ऐसा तो नहीं है कि सरकार में बैठा कोई व्यक्ति ही इन उपद्रवियों को शरण दे रहा है नॉएडा और लखनऊ के दोनों मामलों में प्रदेश सरकार की कार्यशैली वास्तव में दिखाती है कि विरासत में मिली राजनीति का समाज पर क्या असर पड़ सकता है और नेता कैसे काम किया करते हैं..  
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