जिन महिला सिपाहियों के दम पर राज्य सरकार ने पूरे माहौल को बदलने का सपना कभी देखा था आज उनकी दशा कैसी होती जा रही है शायद इस पर सरकार को विचार करने का समय ही नहीं है क्योंकि पहले प्रदेश में कई बार महिला सिपाहियों द्वारा दबी ज़बान में अपने वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा दुर्व्यवहार किये जाने की घटनाएँ सामने आई हैं फिर भी आरोपियों के ख़िलाफ़ कोई ठोस कार्यवाही न किये जाने से आज उनके हौसले बुलंद हैं. ताज़ा मामले में अखिलेश सरकार की नाक के नीचे लखनऊ के सबसे सम्भ्रांत इलाक़े ट्रांस गोमती नगर के एक थाने में एसओ ने अपनी मातहत महिला सिपाही के हाथ पर जिस तरह से दिल बनाया और फिर आई लव यू लिखा उससे ड्यूटी पर रहने वाली महिला सिपाहियों की स्थितियों के बारे में सोचा जा सकता है. क्या सिपाही होने के बाद भी और थाने के अन्दर भी हमारी महिला सिपाही सुरक्षित हैं आज इस बात का जवाब शायद किसी के पास नहीं है और संभवतः अन्य कामों में उलझी हुई सरकार इस तरफ सोचना भी नहीं चाहती है और मामला हद से आगे बढ़ता जा रहा है ?
इस पूरे प्रकरण में जिस तरह से पीड़ित महिला सिपाही ने अपने सीओ से तुरंत ही शिकायत की और उन्होंने ने भी उसे बदनामी का डर दिखा कर चुप रहने को कहा और उसे जबरन एक हफ्ते की छुट्टी देकर घर भेज दिया जिससे उनका मनोबल तो टूटा पर उसने भी हार नहीं मानी और महिला शिकायत प्रकोष्ठ १०९० में फ़ोन से शिकायत की. सारे मामले में हद तो तब हो गयी जब महिला शिकायत प्रकोष्ठ ने भी विभाग से जुड़ा हुआ मामला होने के कारण उसका खुलासा नहीं किया और उसे भी दबाने की पूरी कोशिश की ? अब इस तरह से काम करने वाले माहौल में अधिकारियों की मिली भगत के बाद आख़िर हमारी महिला सिपाही कितनी सुरक्षित हैं अब यह सोचने का विषय है क्योंकि पुलिस की महिलाओं के प्रति बरती जाने वाली संवेदनहीनता अधिकांश बार चर्चा में रहा करती है जिसे महिला सिपाहियों के माध्यम से सही करने की एक कोशिश सरकार द्वारा की गयी थी पर पुरुष प्रधान मानसिकता से डूबे हुए कुछ लोगों को महिलाओं का इस तरह से सामने आकर काम करना संभवतः हज़म नहीं हो रहा है.
इस मामले के उछल जाने से जहाँ अब पुलिस के उच्चाधिकारियों को सामने आकर बयान देने पड़ रहे हैं वहीं उस महिला सिपाही की सुरक्षा के बारे में भी चिंता बढ़ रही है क्योंकि अब जिस तरह से आरोपित एसओ ने सिपाही पर यह उल्टा आरोप जड़ दिया है कि वह काम में शिथिलता बरतती थी और उसे कक्ष में बुलाकर केवल ठीक ढंग से काम करने की नसीहत ही दी गयी थी तो उसने इस तरह के आरोप लगा दिए हैं जिससे मामला और भी पेचीदा हो गया है क्योंकि अब जब आरोप दोनों तरफ़ से ही लगाये जा रहे हैं तो उनकी तह तक जाना और भी मुश्किल हो सकता है. विभागीय मसला होने के कारण अब पुलिस का रुख निष्पक्ष होगा या वह भी पुरुष मानसिकता को ही अपने पर हावी होने देगी यह तो समय ही बताएगा पर एक महिला सीओ को जांच अधिकारी बनाकर इस मसले को देखने का आदेश सरकार द्वारा दे दिया गया है. यहाँ पर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आख़िर किस तरह से सरकार पूरे प्रदेश में महिलाओं के ख़िलाफ़ इस तरह से होने वाले अनाचार को रोके क्योंकि यह आरोप महिला सिपाही द्वारा कम और एक महिला द्वारा लगाये गए अधिक लगते हैं जिससे पूरे माहौल को सुधारने की हर क़वायद को एक बार फिर से दुरुस्त किये जाने की आवश्यकता महसूस होती है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस पूरे प्रकरण में जिस तरह से पीड़ित महिला सिपाही ने अपने सीओ से तुरंत ही शिकायत की और उन्होंने ने भी उसे बदनामी का डर दिखा कर चुप रहने को कहा और उसे जबरन एक हफ्ते की छुट्टी देकर घर भेज दिया जिससे उनका मनोबल तो टूटा पर उसने भी हार नहीं मानी और महिला शिकायत प्रकोष्ठ १०९० में फ़ोन से शिकायत की. सारे मामले में हद तो तब हो गयी जब महिला शिकायत प्रकोष्ठ ने भी विभाग से जुड़ा हुआ मामला होने के कारण उसका खुलासा नहीं किया और उसे भी दबाने की पूरी कोशिश की ? अब इस तरह से काम करने वाले माहौल में अधिकारियों की मिली भगत के बाद आख़िर हमारी महिला सिपाही कितनी सुरक्षित हैं अब यह सोचने का विषय है क्योंकि पुलिस की महिलाओं के प्रति बरती जाने वाली संवेदनहीनता अधिकांश बार चर्चा में रहा करती है जिसे महिला सिपाहियों के माध्यम से सही करने की एक कोशिश सरकार द्वारा की गयी थी पर पुरुष प्रधान मानसिकता से डूबे हुए कुछ लोगों को महिलाओं का इस तरह से सामने आकर काम करना संभवतः हज़म नहीं हो रहा है.
इस मामले के उछल जाने से जहाँ अब पुलिस के उच्चाधिकारियों को सामने आकर बयान देने पड़ रहे हैं वहीं उस महिला सिपाही की सुरक्षा के बारे में भी चिंता बढ़ रही है क्योंकि अब जिस तरह से आरोपित एसओ ने सिपाही पर यह उल्टा आरोप जड़ दिया है कि वह काम में शिथिलता बरतती थी और उसे कक्ष में बुलाकर केवल ठीक ढंग से काम करने की नसीहत ही दी गयी थी तो उसने इस तरह के आरोप लगा दिए हैं जिससे मामला और भी पेचीदा हो गया है क्योंकि अब जब आरोप दोनों तरफ़ से ही लगाये जा रहे हैं तो उनकी तह तक जाना और भी मुश्किल हो सकता है. विभागीय मसला होने के कारण अब पुलिस का रुख निष्पक्ष होगा या वह भी पुरुष मानसिकता को ही अपने पर हावी होने देगी यह तो समय ही बताएगा पर एक महिला सीओ को जांच अधिकारी बनाकर इस मसले को देखने का आदेश सरकार द्वारा दे दिया गया है. यहाँ पर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आख़िर किस तरह से सरकार पूरे प्रदेश में महिलाओं के ख़िलाफ़ इस तरह से होने वाले अनाचार को रोके क्योंकि यह आरोप महिला सिपाही द्वारा कम और एक महिला द्वारा लगाये गए अधिक लगते हैं जिससे पूरे माहौल को सुधारने की हर क़वायद को एक बार फिर से दुरुस्त किये जाने की आवश्यकता महसूस होती है.
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