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मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

एकतरफा न्याय ?

                                      यूपी में अखिलेश सरकार की कार्यशैली दिन पर दिन विवादित ही होती चली जा रही है जिस कारण से भी रोज़ ही नए विवाद सामने आ रहे हैं. ताज़ा घटनाक्रम में जिस तरह से मुज़फ्फरनगर के जानसठ के एक मदरसा संचालक मौलाना नजीर को विशेष विमान से लखनऊ बुलाया गया और उन्होंने मुलायम अखिलेश के साथ भेंट भी की उससे राजनैतिक तौर पर मामला और भी गर्माने ही वाला है क्योंकि आज पहले जैसा माहौल नहीं रहा है जब सरकारें अपनी मर्ज़ी के अनुसार सब कुछ किया करती थीं और आम लोगों को कुछ भी पता ही नहीं चल पाता था ? मौलाना नजीर पर ठीक उसी तरह के आरोप पुलिस ने लगाये हुए हैं जैसे कि भाजपा विधायक संगीत सोम और सुरेश राणा पर भी लगे हुए हैं पर एक तरफ जहाँ राज्य सरकार ने उन दोनों को जेल भेजकर उन पर रासुका भी लगा दी है वहीं मौलाना नजीर को सरकारी स्तर पर लखनऊ बुलाने और उनसे मिलने के मामले में राजनीति का खुलासा होने पर भाजपा के हाथों एक और मुद्दा भी लग गया है और इस मसले पर अखिलेश सरकार की और किरिकिरी होना स्वाभाविक ही है.
                                     यह सही है कि यदि अशांत क्षेत्रों में शांति लाने के लिए सरकार किसी भी स्तर पर सक्रिय सामजिक लोगों और धार्मिक गुरुओं को भी साथ ले सके तो उसमें किसी को भी कोई आपत्ति नहीं होने वाली है पर जिस तरह से सरकार ने सामान धाराओं में नामित भाजपा के नेताओं को तो जेल भेज दिया है और सपा नेता रशीद सिद्दीकी की सुरक्षा बढ़ा दी है उससे आम जन मानस में सरकार के लिए क्या संदेश जाता है ? वैसे भी भाजपा खुले तौर पर सपा और अखिलेश सरकार पर दोहरी नीतियों को अपनाने के आरोप रोज़ ही लगा रही है तो उस स्थिति में जब इतने स्पष्ट रूप से लोगों को यह दिखाई भी दे रहा है कि सरकार वही सब करने में लगी हुई है तो सरकार के पास अपने को सही साबित करने के लिए क्या अवसर बचते हैं ? दंगा भड़काने के दोषियों और वांक्षित लोगों के साथ सूबे की सरकार के मुखिया का इस तरह से मिलना उनके लिए कानूनी और सामाजिक समस्याएं बढ़ाने वाला ही साबित होने वाला है क्योंकि आज आम लोग हर बात से अनभिज्ञ नहीं रहा करते हैं और यह जानकारी हर स्तर पर भाजपा के लिए लाभकारी ही साबित होने वाली है तो कुछ लोगों को बसपा और कांग्रेस के आरोपों में दम लगने लगता है कि यह सब सपा और भाजपा मिलकर ही करवाने में लगे हुए हैं ?
                                           यदि सरकार ने सपा नेता रशीद सिद्दीकी और मौलाना नजीर को इसी तरह से संरक्षण जारी रखा तो यह भी संभव है कि भाजपा या कोई अन्य इस मसले पर सरकार को घेरने के लिए कोर्ट का रास्ता भी पकड़ ले और उस समय सरकार के पास अपने इस तरह के एक तरफ़ा किये गए निर्णयों के बचाव में कहने के लिए बहुत कुछ नहीं होगा ? वह एक ऐसी स्थिति होगी जिसमें जाटों के क्षत्र में सपा और मुलायम की पकड़ और भी कमज़ोर ही होगी और आने वाले समय में भाजपा की तरफ जाटों का झुकव भी बढेगा जिससे अशांत जिलों में शांति लाने में और भी कठिनाई ही होने वाली है क्योंकि सरकार के इस तरह के क़दमों से जहाँ जिलों में तैनात अधिकारियों के लिए काम करना और भी मुश्किल हो जायेगा वहीं सामजिक समरसता बढ़ाने के उसके दावे केवल खोखले ही नज़र आयेंगें ? आज यदि एक महीने बाद भी उन जिलों में शांति नहीं आ पा रही है तो उसका मुख्य कारण सपा सरकार की कार्यशैली ही हैं क्योंकि आज भी वह दोषियों में केवल वर्ग विशेष पर ही जिस तरह से कार्यवाही कर रही है उससे पूरे माहौल के और भी बिगड़ने का खतरा बढ़ता ही जा रहा है पर सरकार केवल अपने राजनैतिक जोड़ तोड़ में लगी रहकर सामजिक सह अस्तित्व को पूरी तरह से तार तार करने में लगी हुई है.  एकतरफा न्याय ?
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