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सोमवार, 30 सितंबर 2013

सुलगता पश्चिमी उ०प्र०

                                       प्रशासनिक कार्यों में अनावश्यक राजनैतिक घाल मेल किये जाने का कितना बुरा असर समाज पर पड़ सकता है आज इसका ज्वलंत उदाहरण पश्चिमी उ०प्र० में देखा जा सकता है जहाँ आज भी प्रशासनिक सख्ती दिखने के स्थान पर जिलों में तैनात वरिष्ठ अधिकारी भी फ़ोन पर कान लगाये हुए लखनऊ से आदेशों की प्रतीक्षा करते रहते हैं और विवादों को अनावश्यक रूप से आगे बढ़ाने का काम करते रहते हैं. आज यूपी में जो भी हालात उत्पन्न हुए हैं उनको देखते हुए जब तक प्रशासन पूरी तरह से निष्पक्ष होकर काम नहीं करेगा तब तक स्थिति में परिवर्तन आने की सम्भावना बिलकुल भी नहीं है क्योंकि जोड़ तोड़ या भाग्य के सहारे सत्ता तक पहुंचे नेताओं को इस तरह की परिस्थितियों में काम करने का बिलकुल भी अनुभव नहीं होता है जैसा आज कल यूपी में हुआ पडा है. प्रशासन को स्पष्ट निर्देशों के साथ हर तरह के राजनैतिक दखल को बंद करके ही इस अनिश्चितता का माहौल को ख़त्म कर कानून का राज स्थापित किया जा सकता है पर सपा सरकार ने जिस तरह से खुद ही भ्रम फ़ैलाने का काम शुरू कर रखा है उससे स्थितियां सुधरने के स्थान पर और भी बिगड़ ही रही हैं.
                                        इन जिलों में जिस तरह से महिलाओं ने आगे बढ़कर अब पंचायत करने का फरमान जारी कर दिया है उससे सरकार के लिए मुसीबतें कम होने के स्थान पर बढती हुई ही नज़र आती हैं क्योंकि वह चाहकर भी इन महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अनावश्यक बल प्रयोग नहीं कर सकती है और इस स्थिति में अब प्रशसनिक दूर दर्शिता के साथ काम करके विश्वास बहाली का काम करने की आवश्यकता है पर पहले से ही समाज में हुए गहरे विभाजन को रोकने के स्थान पर सरकार की कोशिशें पूरे मामले को बिगाड़ने वाली ही अधिक लग रही हैं. इन क्षेत्रों में पहले दो समुदायों के बीच ही अविश्वास था पर अब सरकार की गलत नीतियों के कारण तो लोगों का प्रशासन पर से भी विश्वास उठ सा गया है. यह सही है कि किसी को भी कानून तोड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती है पर जब पंचायतों और खापों के सहारे आगे चलने वाले समाज की बात हो तो सरकार को भी उनकी बात को धैर्य पूर्वक सुनने की कोशिश तो करनी ही चाहिए क्योंकि उसके बिना तो संघर्ष घटने के स्थान पर बढ़ने की तरफ ही स्वतः ही चला जायेगा ?
                                        यह सही है कि इस तरह का माहौल में किसी भी तरह की भीड़ को इकठ्ठा होने देने से प्रशासन को पूरी तरह रोक-थाम करनी चाहिए क्योंकि भीड़ में हर तरह के तत्व होते हैं जो पूरे माहौल को खराब करने कि हर संभव कोशिश करते हैं फिर भी यदि कोई ऐसा मसला है कि कोई खाप-पंचायत या कोई समूह किसी मुद्दे पर कुछ विरोध दिखाना ही चाहता है तो अधिकारियों को उन्हें अपने विवेक से सांकेतिक तौर पर ऐसा करने की अनुमति दे देनी चाहिए और सीधे जिला मुख्यालय पर ही सीमित संख्या में उनके प्रतिनिधियों को बुलाकर ज्ञापन आदि ले लेना चाहिए क्योंकि अविश्वास के ऐसे माहौल में अफवाहें बहुत समस्याएं खडी कर दिया करती हैं और उनसे निपटने के लिए हर संभव कोशिशों पर ध्यान दिया जाना बहुत आवश्यक होता है. अखिलेश सरकार को एक बात और भी स्पष्ट रूप से समझनी ही होगी कि अधिकारियों को ताश के पत्तों की तरह इस्तेमाल करने से जो कुछ भी होता है वह आज सबके सामने है क्योंकि इन क्षेत्रों में एक माह में ४ जिला स्तरीय अधिकारियों की तैनाती क्या यह प्रदर्शित नहीं करती है कि सरकार खुद ही कितने भ्रम में जी रही है ? अब समय आ गया है कि कर्मठ और बेहतर प्रशासनिक रिकॉर्ड वाले अधिकारियों को महत्वहीन पदों से हटाकर क्षेत्रों में तैनात किया जाये और उनको हर तरह के राजनैतिक दबाव से मुक्त कर विधि सम्मत काम करने की पूरी छूट भी दी जाये.            
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