दागी सांसदों पर संप्रग सरकार द्वारा लाये जा रहे अध्यादेश का विरोध शुरू होने के बाद जिस तरह से राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने स्तर पर संभावित परिस्थितियों से निपटने के लिए प्रयास शुरू किये और भाजपा के अनुरोध के बाद सरकार के तीन वरिष्ठ मंत्रियों को बुलाकर स्पष्टीकरण माँगा उसके बाद से एक बार फिर से यह बात महत्वपूर्ण हो गयी है कि राजनैतिक रूप से लम्बी विरासत संभाले हुए प्रणब दा ने अपने किरदार को राष्ट्रपति के रूप में बहुत अच्छे ढंग से निभाया है. इस विवादित विधेयक के बारे में उन्होंने जिस तरह से सभी तरह की राय भी ली और उससे मंत्रियों को अवगत कराया संभवतः उसके बाद ही कांग्रेस ने इस बात पर विचार करना शुरू कर दिया होगा कि अब इस समस्या से कैसे निपटा जाये. दिल्ली में रविवार को होने वाली मोदी की रैली में भी यह मुद्दा बड़े जोर शोर से उठ सकता था और उस स्थिति में कांग्रेस के पास कहने और करने के लिए कुछ भी नहीं बचता इसलिए उसने एक रणनीति के तहत ही राहुल को आगे कर इस अध्यादेश का विरोध करवा दिया जिससे उसने एक तीर से कई निशाने भी साध लिए क्योंकि अब विधेयक का बह्विश्य पूरी तरह से तय ही हो चुका है.
राष्ट्रपति को वैसे तो भारत में राष्ट्र प्रमुख का दर्ज़ा मिला हुआ है और उनके पास जो भी संवैधानिक अधिकार सुरक्षित और संरक्षित हैं उनसे आम तौर पर कोई भी राष्ट्रपति प्रयोग नहीं करना चाहता है और सामान्य परिस्थितियों में केवल वही करता रहता है जो सरकार उनका उपयोग कर करवाना चाहती है ? इस मसले पर जिस तेज़ी के साथ भाजपा ने पलटी मारी और एक समय केवल बीजू जनता दल ने ही इस तरह के किसी भी अध्यादेश का विरोध किया था पर अब सभी दलों के सामने इसका विरोध करना मजबूरी होने जा रहा था क्योंकि हर पार्टी जनता की नज़रों में अपने को नैतिकता की राजनीति का अगुवा साबित करने की कोशिशों में लग गयी थी. ऐसे में जहाँ कांग्रेस देश का मूड भांपने में पूरी तरह से असफल रही वहीं प्रणब मुखर्जी ने इस सूत्र को पकड़ा और यह समझ लिया कि यह मुद्दा आने वाले समय में देश के लिए बहुत बड़ा मुद्दा बन सकता है और कांग्रेसी पृष्ठभूमि के कारण उन पर भी इसके छींटें पड़ने अवश्यम्भावी हो जाते इसलिए ही उन्होंने अपनी राय से मंत्रियों को अवगत करा दिया गया.
राष्ट्रपति की तरफ से इस तरह के संकेत मिलने के बाद कांग्रेस में अवश्य ही कुछ मंथन शुरू हुआ होगा और पीएम की गैर मौजूदगी में आखिर किस तरह से इस समस्या से निपटा जाये क्योंकि यदि राष्ट्रपति इसे वापस कर देते तो सरकार के लिए वह बहुत ही शर्मनाक स्थिति होती और उससे निपटने के लिए कोई भी राह आसानी से नहीं ढूंढी जा सकती थी इसलिए राहुल को इस मामले में आगे कर दिया गया क्योंकि उनके सक्रिय होने की मांग पार्टी के साथ विपक्ष भी करता ही रहता है और इस मुद्दे पर उन्होंने जिस तरह से अपने रुख को प्रेस क्लब में रखा उससे कुछ समय के लिए तो भ्रम की स्थिति बनी पर अभी होने वाले तात्कालिक नुकसान से आने वाले समय के बहुत बड़े नुकसान को बचाने में कांग्रेस पूरी तरह से सफल हो गयी. मोदी के हाथों दिल्ली में आकर दागियों को बचाने का जो आरोप कांग्रेस पर लग सकता था उससे भी वह बच गयी. अब जब भाजपा पीएम पर इस्तीफे का दबाव बनाने में लगी हुई है तो शायद वह भूल रही है कि जिन मोदी को लेकर आज वह सपने देख रही है एक समय उन्होंने ने ही भाजपा के शीर्ष पुरुष अटल द्वारा दी गयी राजधर्म निभाने की सीख को पूरी तरह से अनसुना कर दिया था ? राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता है वरना एक समय पूरी निष्ठा के साथ बनाये गए संविधान में इतने संशोधन कभी भी नहीं करने पड़ते अब सरकार को इस गलती पर पलट कर सुधार कर आगे बढ़ने की ज़रुरत है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
राष्ट्रपति को वैसे तो भारत में राष्ट्र प्रमुख का दर्ज़ा मिला हुआ है और उनके पास जो भी संवैधानिक अधिकार सुरक्षित और संरक्षित हैं उनसे आम तौर पर कोई भी राष्ट्रपति प्रयोग नहीं करना चाहता है और सामान्य परिस्थितियों में केवल वही करता रहता है जो सरकार उनका उपयोग कर करवाना चाहती है ? इस मसले पर जिस तेज़ी के साथ भाजपा ने पलटी मारी और एक समय केवल बीजू जनता दल ने ही इस तरह के किसी भी अध्यादेश का विरोध किया था पर अब सभी दलों के सामने इसका विरोध करना मजबूरी होने जा रहा था क्योंकि हर पार्टी जनता की नज़रों में अपने को नैतिकता की राजनीति का अगुवा साबित करने की कोशिशों में लग गयी थी. ऐसे में जहाँ कांग्रेस देश का मूड भांपने में पूरी तरह से असफल रही वहीं प्रणब मुखर्जी ने इस सूत्र को पकड़ा और यह समझ लिया कि यह मुद्दा आने वाले समय में देश के लिए बहुत बड़ा मुद्दा बन सकता है और कांग्रेसी पृष्ठभूमि के कारण उन पर भी इसके छींटें पड़ने अवश्यम्भावी हो जाते इसलिए ही उन्होंने अपनी राय से मंत्रियों को अवगत करा दिया गया.
राष्ट्रपति की तरफ से इस तरह के संकेत मिलने के बाद कांग्रेस में अवश्य ही कुछ मंथन शुरू हुआ होगा और पीएम की गैर मौजूदगी में आखिर किस तरह से इस समस्या से निपटा जाये क्योंकि यदि राष्ट्रपति इसे वापस कर देते तो सरकार के लिए वह बहुत ही शर्मनाक स्थिति होती और उससे निपटने के लिए कोई भी राह आसानी से नहीं ढूंढी जा सकती थी इसलिए राहुल को इस मामले में आगे कर दिया गया क्योंकि उनके सक्रिय होने की मांग पार्टी के साथ विपक्ष भी करता ही रहता है और इस मुद्दे पर उन्होंने जिस तरह से अपने रुख को प्रेस क्लब में रखा उससे कुछ समय के लिए तो भ्रम की स्थिति बनी पर अभी होने वाले तात्कालिक नुकसान से आने वाले समय के बहुत बड़े नुकसान को बचाने में कांग्रेस पूरी तरह से सफल हो गयी. मोदी के हाथों दिल्ली में आकर दागियों को बचाने का जो आरोप कांग्रेस पर लग सकता था उससे भी वह बच गयी. अब जब भाजपा पीएम पर इस्तीफे का दबाव बनाने में लगी हुई है तो शायद वह भूल रही है कि जिन मोदी को लेकर आज वह सपने देख रही है एक समय उन्होंने ने ही भाजपा के शीर्ष पुरुष अटल द्वारा दी गयी राजधर्म निभाने की सीख को पूरी तरह से अनसुना कर दिया था ? राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता है वरना एक समय पूरी निष्ठा के साथ बनाये गए संविधान में इतने संशोधन कभी भी नहीं करने पड़ते अब सरकार को इस गलती पर पलट कर सुधार कर आगे बढ़ने की ज़रुरत है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें