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शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

राष्ट्रपति और राजनीति

                                    पिछले एक पखवाड़े में दो ऐसी घटनाएँ हुई हैं जिनके माध्यम से देश के राष्ट्रपति को देश की सक्रिय राजनीति में शामिल लोगों द्वारा अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करने की कोशिशें की गयीं पर लम्बे समय तक राजनैतिक पारी खेल चुके राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने अनुभव का लाभ उठाते हुए दोनों ही बार खुद को भी इस तरह की राजनीति से एक झटके में ही दूर कर लिया. पहली घटना दागी नेताओं को संरंक्षण देने वाले अध्यादेश से जुडी है जिसमें राष्ट्रपति ने भाजपा के प्रतिनिधिमंडल से मिलने के तुरन्त बाद ही जिस तरह से सरकार के तीन वरिष्ठ मत्रियों को बुलाकर बात की थी और उसके बाद राहुल द्वारा उस अध्यादेश को बकवास बताकर उसे वापस लेने तक बात पहुँच गयी और भले ही किसी भी तरह से सही पर एक गलत अध्यादेश आने से रह गया. बिहार में नितीश और भाजपा में जिस तरह की अनबन नरेन्द्र मोदी के नाम पर हुई उसके बाद से दोनों ही दल हर मसले पर के दूसरे को नीचा दिखाने से नहीं चूक रहे हैं. इसी क्रम में मोदी की रैली वाले दिन ही राष्टपति की पटना यात्रा ने भाजपा को एक और मुद्दा नितीश के खिलाफ दे दिया था.
                                     राष्ट्रपति भवन के सूत्रों के अनुसार राष्ट्रपति ने पहले ही अपने बिहार दौरे को दो दिन से घटाकर एक दिन के लिए सीमित कर दिया था जिससे उनके पद और गरिमा को किसी भी तरह की राजनीति में न घसीटा जा सके और उसकी औपचारिक घोषणा भी राष्टपति भवन से कर दी गयी है जिसमें अब वे केवल एक दिन के लिए ही पटना में रहेंगें और आरा का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया है. यह एक ऐसा राजनैतिक मामला था कि यदि दौरा दो दिनों का ही रहता तो भाजपा को राष्ट्रपति को भी निशाने पर लेने में देर नहीं लगती और संभवतः कुछ लोग पद और प्रणब की गरिमा का भी ध्यान नहीं रखते क्योंकि आज के समय में नरेन्द्र मोदी के अंध भक्तों के पास मोदी के खिलाफ कुछ भी करने वालों के लिए कुछ भी कह देने की होड़ सी लगी हुई है और नैतिकता की दुहाई देने वाली भाजपा अपने इन कार्यकर्ताओं को किसी भी स्तर पर रोक पाने में सफल नहीं हो पा रही है ? संभवतः प्रणब भाजपा की इस मंशा और मानसिकता को उसके जन्म के समय से ही जानते हैं और उन्होंने अपने को किसी भी राजनीति से दूर ही रखने की कोशिश ही की है.
                                    यहाँ पर सवाल इस बात का नहीं है कि किसका दौरा कब और कैसे हो पर उससे बड़ा सवाल यह भी है कि जब किसी के भी प्रयास या कुप्रयास से मोदी की रैली के दिन ही राष्ट्रपति का दौर लग गया था तो भाजपा भी अपने स्तर पर सरकार से मिली उन सारी अनुमतियों को एक दिन आगे कर देने की शर्त के साथ मोदी की रैली को कर सकती थी पर उसने भी जिस तरह से नितीश की राजनैतिक पहल पर अपने तेवर दिखाए तो राष्ट्रपति के पास अपने विवेक को इस्तेमाल करने के अलावा और कोई रास्ता ही शेष नहीं रह गया था क्योंकि भाजपा और मोदी देश, पदों, संविधान और नैतिकता की चाहे जितनी भी दुहाई दे दें पर समय आने पर अपने तर्कों के माध्यम से हर व्यक्ति को गलत साबित करने की हर संभव कोशिश करते हुए देखे जा सकते हैं. ऐसी स्थिति यदि राष्ट्रपति बिहार सरकार की मंशा के अनुरूप ही यात्रा करते तो उन पर अवश्य ही आरोप लगाये जाते और यह भी कहा जाता की नितीश के साथ मिलकर कांग्रेस ने मोदी की रैली को रोकने की कोशिश की ? एक राजनैतिक सूझ बूझ से भरे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने जिस शालीनता से अपने पद की गरिमा की रक्षा की है वह निसंदेह ही प्रशंसनीय है.       
             
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