मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

मानसून, कृषि और भण्डारण

                              एक लम्बे अन्तराल के बाद देश में मानसून की सक्रियता की अवधि लम्बी होने से जहाँ कृषि विशेषज्ञ अच्छी पैदावार की आशा लगा रहे हैं वहीं हमेशा की तरह बहुत अच्छी पैदावार होने पर किसानों को होने वाली समस्याओं पर विचार करने के लिए आज तक भी देश के पास मज़बूत भण्डारण की व्यवस्था नहीं हो पायी है जिससे असमय वर्षा के कारण पूरे देश से ही सरकार द्वारा खरीद कर रखे गए अनाज के भीगने की ख़बरें सुर्खियाँ बटोरती रहती हैं. भारत में आज भी कृषि के मुख्य रूप से मानसून पर आधारित होने से जहाँ सब कुछ नहीं तो बहुत सारी आर्थिक गतिविधियाँ भी उस पर निर्भर करती हैं उसके बाद भी किसानों को सही मूल्य मिलने के साथ अनाज के भण्डारण की समस्या सदैव ही सामने आती रहती है. इस बारे में सरकार को अब एक स्पष्ट नीति बनाकर उसके अनुसार ही अनाज को देश में रखना चाहिए और शेष अतिरिक्त अनाज को विदेशों में निर्यात करने की छूट भी समय रहते देनी चाहिए जिससे कृषि उत्पादक किसानों को भी उसका सही मूल्य मिल सके.
                                ऐसा नहीं है कि देश में सरकारों द्वारा अभी तक इस दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं कए गए हैं पर उन प्रयासों को जितने निचले स्तर तक पहुंचना चाहिए अभी वहां तक वे नहीं पहुँच पाए हैं क्योंकि अभी भी देश के अधिकांश जिलों में कृषि विभाग के दफ्तरों में क्या कार्य होता है यह आम किसान को ही नहीं पता होता है तो इस स्थिति के लिए किसे ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है ? आज भी देश में भण्डारण के लिए केवल जिला स्तरीय व्यवस्था होने के कारण जहाँ सरकार को उनके रख रखाव में अनावाश्यक रूप से बहुत धन खर्च करना पड़ता है वहीं उसकी समय से उपलब्धता भी सुनिश्चित करवा पाने में कई बार बहुत समस्या होती है. दूरस्थ स्थानों के अनाज क्रय केन्द्रों से खरीदे गए अनाज को पहले जिला स्तरीय गोदामों में पहुँचाने में समय और श्रम शक्ति के साथ धन की बर्बादी होती है और फिर उसे वहां से निकाल कर वापस राशन की दुकानों तक पहुँचाने के लिए भी फिर से इसी प्रक्रिया को उलटी तरफ घुमाना पड़ता है जिससे एक अनाज पर सरकार को दो बार म्हणत और धन बर्बाद करना पड़ता है जिसका कोई औचित्य नहीं है.
                                किसी समय में जब आर्थिक रूप से देश की यह हालत नहीं थी कि तहसील मुख्यालयों पर अन्न भण्डारण किया जा सके तो अब इसे करने में क्या समस्या आ रही है ? आज यदि इस भण्डारण की व्यवस्था की फिर से समीक्षा की जाये और सुरक्षित स्थानों पर तहसील और ब्लॉक मुख्यालयों पर ही क्षेत्रीय आवश्यकता के अनुसार भण्डारण की नीति बनायीं जाये तो कुछ वर्षों में ही इस पर खर्च होने वाले धन को बचाया जा सकेगा क्योंकि प्रति वर्ष अन्न को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने ले जाने में लगने वाले धन को भी बचाने में सहायता भी मिल सकती है. तहसील मुख्यालयों में पूर्ति और कृषि विभाग को और सक्रिय करने के साथ ही यदि उनके काम को ब्लॉक तक पहुँचाया जा सके तो उससे भी आम लोगों को बहुत आसानी हो सकती है. आज जो भी भण्डारण नीति चल रही है वह देश की आज की आवश्यकताओं के अनुरूप कहीं से भी नहीं लगती है इसलिए इस पर अविलम्ब ध्यान देकर कुछ जिलों में नयी नीति को बनाकर प्रायोगिक तौर पर लागू करने का प्रयास किया जाना चाहिए जिससे उससे होने वाले लाभ और आने वाली समस्यायों पर भी ध्यान देकर उन्हें सुलझाने की दिशा में कदम उठाया जा सके.   
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