मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 13 अक्तूबर 2013

समुद्री तूफ़ान और जनता

                                                      जिस तरह से ४ अक्टूबर के बाद से ही देश को इस बात का अंदाजा हो गया था कि बंगाल की खाड़ी से आने वाला पैलिन नामक तूफ़ान अपने आप में एक बहुत बड़ी समस्या लेकर ही आने वाला है और उसके अनुसार ही केंद्र सरकार से मौसम विभाग के नियमित बुलेटिनों और संभावित प्रभाव क्षेत्र में आने वाली राज्य सरकारों ने जिस तत्परता के साथ आगे बढ़कर कमान संभाली उससे परिस्थितियों को काफी हद तक संभाला जा सका है फिर भी जिस तरह से आम लोगों को इस बारे में जागरूक होना चाहिए वे आज भी ठीक उसी तरह से व्यवहार कर रहे हैं जैसे पहले सामान्य दिनों में किया करते हैं. यह सही है कि ओडिशा में इस समय दुर्गा पूजा के चलते बड़े पैमाने पर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों का आगमन होता है पर जिस तरह से आज इतने बड़े तूफ़ान की आशंका के चलते राज्य सरकार वहां से लोगों को बाहर निकालने का काम कर रही है वहीं अपने वाहनों और सार्वजनिक परिवहन से लोगों के पूरी जाने की सूचना भी मिल रही है. किसी भी धार्मिक स्थल इस तरह की प्राकृतिक आपदा आने के समय बड़ी भीड़ का जमावड़ा होने के बाद समस्याएं बढ़ जाया करती हैं.
                                                     इस परिस्थिति में जिस तरह से संभावित प्रभाव वाले क्षेत्रों की राज्य सरकारों और केन्द्रीय एजेंसियों के बीच समन्वय की आवश्यकता होती है वह कहीं से कुछ कम ही दिखाई दे रही है क्योंकि दो दिन पहले तक यात्रियों का ट्रेन और बस से पूरी पहुंचना जारी था वह वहां पर भीड़ बढ़ाने वाला ही साबित हो रहा है. रेलवे की एक मजबूरी हो सकती है कि यदि उसकी गाड़ियाँ पूरी तक न जाती तो वहां से यात्रियों को कैसे निकलने में मदद मिलती पर बेहतर सहयोग के माध्यम से कम से कम इन ट्रेनों से जाने वाले यात्रियों को तो वहां पहुँचने से पहले ही किसी सुरक्षित जगह रोका जा सकता था जिससे पूरी या भुवनेश्वर में अनावश्यक रूप से यात्रियों का दबाव भी न बनने पाता. आश्चर्य की बात तो यह है कि इतनी दूर की यात्रा करने के इच्छुक लोग भी किसी स्तर पर आगे बढ़कर अपने कार्यक्रम को निरस्त करने के स्थान पर उसी पर डटे रहते हैं जिससे सीमित संसाधनों में काम करने वाली किसी भी सरकार के लिए समस्याएं कई गुना बढ़ जाया करती हैं क्योंकि जब तक खतरा टल नहीं जाता है वहां पर यातायात सुचारू रूप से नहीं चल पायेगा.
                                                    इस तरह की किसी भी परिस्थिति में जब सरकार और आम जनता के बीच बेहतर तालमेल दिखाई देना चाहिए तो उसकी कमी से भी समस्या बढ़ती हुई ही दिखाई देती है क्योंकि जब जून में उत्तराखंड में छोटे स्तर पर ही जारी की गयी चेतावनी को अनदेखा किया गया था तो उसका परिणाम सभी ने देखा था पर आज जब केंद्र और ओडिशा सरकार बराबर इस समस्या से निपटने के प्रयासों से जूझ रही हैं तो भी कुछ लोग सुरक्षा को केवल सरकार का विषय मानकर ही अपने को सुरक्षित समझ रहे हैं. जब भी मौसम से जुडी इस तरह की कोई भी चेतावनी जारी होती है तो आम लोगों को उसे गंभीरता से लेने के बारे में सोचना ही होगा क्योंकि किसी एक व्यक्ति द्वारा इसकी अनदेखी तो अपने स्तर पर ही की जाती है पर बड़े पैमाने पर इस तरह का व्यवहार करने से पूरी सरकारी व्यवस्था चौपट भी हो सकती है. आम लोगों को इस तरह की किसी भी प्राकृतिक आपदा के समय अब सरकार के निर्देशों को पूरी तरह से मानने की तरफ सोचना शुरू करना ही होगा क्योंकि तभी जाकर वे स्वयं सुरक्षित रहकर सरकार के लिए समस्याएं कम करने में सहयोग दे सकते हैं.    
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