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सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

भीड़ और आपदा प्रबंधन

                                                                   कल का दिन देश में दो तरह की ख़बरें लेकर आया सबसे बड़ी और सांत्वना देने वाली खबर यह थी कि बंगाल की खाड़ी से उठे तूफ़ान ने सरकारी प्रयासों और जन जागरूकता के कारण जन हानि को लगभग न के बराबर करने में सफलता पायी और दूसरी बुरी खबर यह कि हमेशा की तरह ही हमारी भीड़ वाली मानसिकता से म० प्र० के दतिया जिले में नवमी के दिन देवी मंदिर में आये श्रद्धालुओं में भगदड़ मचने से सौ से अधिक लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए हैं. देखने में तो इन दोनों ख़बरों का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है फिर भी दोनों ही दूसरे से बहुत अच्छी तरह से जुडी हुई हैं क्योंकि दोनों ही स्थानों पर लोगों की जान की परवाह करनी थी तो जहाँ तूफ़ान की आशंका के चलते लोगों और प्रशासन ने एक दूसरे का भरपूर सहयोग किया जिससे पूरे प्राकृतिक रूप से आसानी से निपटा जा सका पर माता के मंदिर में पुण्य लाभ करने वाले श्रद्धालुओं और प्रशासन ने एक दूसरे कि पूरी अनदेखी की जिससे यह दुखद घटना हुई.
                   अब इन दोनों मुद्दों को एक साथ देखने पर यही लगता है कि यदि हम प्रयास करें तो किसी भी परिस्थिति से आसानी से निपट सकते हैं क्योंकि इतने भीषण तूफ़ान जिसकी तुलना अमेरिका के कटरीना से की जा रही है उससे आसानी से उबरने में हमें मेहनत तो बहुत करनी पड़ी पर उसके लाभ आज स्पष्ट रूप से हम सबके सामने हैं और यह सिद्ध हो गया है कि यदि हम पूरे मनोयोग से किसी भी काम में लग जाएँ तो किसी भी बड़ी से बड़ी चुनौती का आसानी से सामना करने की क्षमता रखते है और यदि लापरवाही करते रहें तो छोटे से समारोह में भी होने वाले कार्यक्रमों को मानवीय आपदा में बदल कर अपने लिए समस्याएं पैदा कर सकते हैं. देश में आम तौर पर इस तरह के बड़े धार्मिक पर्वों पर विभिन्न स्थानों पर बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु इकट्ठे होते रहते हैं और उन पर प्रभावी नियंत्रण करने के अधिकांश काम हमेशा ही लापरवाही से भरे होते हैं यह तो हर बार कोई समस्या नहीं होती है वरना त्योहारों के इस देश में रोज़ ही इस तरह की दुखद घटनाएँ सामने आती रहें.
                               हमने भले ही कितनी तरक्की पर ली हो और चाहे हम अपने को कितना भी सही प्रदर्शित करने में नहीं चूकते हों पर जहाँ भी पुलिस या प्रशासन दबाव नहीं होता है हम आज भी नियमों की अवहेलना करने से नहीं चूकते हैं और आम भारतीय की यह मानसिकता ही हमारे बड़े आयोजनों में समास्याएं पैदा करने का काम किया करती हैं. दतिया में भी जिस तरह से प्रतिबंधित क्षेत्र में लोगों ने पुलिस को पैसे देकर वाहन ले जाने के प्रयास किये उसी कारण से उस पुल पर यातायात का दबाव बहुत बढ़ गया और इस तरह की दुखद घटना हो गयी. अब इस पूरे घटनाक्रम के लिए आम श्रद्धालुओं प्रशासन या पुलिस किसे भी ज़िम्मेदार ठहराया जाये पर जी लोगों की इस घटना में मृत्यु हुई है उसे बड़ी लापरवाही का नतीजा ही कहा जा सकता है ? आज जब देश में हम चक्रवाती तूफान से अपनी इच्छा शक्ति के दम पर लड़ने में सक्षम हो चुके हैं तो उसी समय इस तरह की लापरवाहियां हमारे देश के उस साहसी प्रयास पर पानी फेरती नज़र आती हैं जिसको पाने में बड़े बड़े देशों को अभी भी सफलता नहीं मिल पायी है. फिलहाल अब आपदा प्रबंधन में धार्मिक स्थानों की भीड़ को नियंत्रित करने का पाठ हमें एक बार फिर से सीखने की आवश्यकता है.        भीड़ और आपदा प्रबंधन
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