देश विनाशकारी तूफ़ान पायलिन के प्रभाव से कीमती जानें बचाने में तो जहाँ कामयाब हो गया है वहीं दूसरी तरफ राज्य और केंद्र सरकार के सामने अब उन स्थानों पर तेज़ी से राहत और बचाव कार्य शुरू करने के साथ लोगों के पुनर्वास की ज़िम्मेदारी भी आ गयी है. देश के नागरिक अब अपने वैज्ञानिकों के सटीक पूर्वानुमान पर खुशियाँ तो मना सकते हैं पर अब भी इस दिशा में बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि समुद्र के तटीय क्षेत्रों में इस तरह के तूफ़ान आना यदि बहुत असामान्य नहीं हैं और आज हमारे वैज्ञानिकों ने बेहतर उपकरणों के माध्यम से जिस तेज़ी से सही जानकारी उपलब्ध करायी उसके बाद अब आपदा राहत पर और भी ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है. देश के नेता आम तौर पर इस तरह की उपलब्धियों का श्रेय लेने से कभी भी नहीं चूकते हैं पर जिस तरह से इस पूरे मसले में तेलंगाना के कारण आन्दोलन रत आन्ध्र प्रदेश के लोगों और ओडिशा ने एक जुटता दिखाई वह किसी भी नेता के किसी भी मंसूबे को ध्वस्त करने की क्षमता से परिपूर्ण है.
केंद्र सरकार और मौसम वैज्ञानिकों से मिली जानकारी के बाद ओडिशा सरकार ने जितनी तेज़ी से लोगों को बचाने के प्रयास किये आज उसी का नतीजा है कि जन हानि को तूफ़ान की तीव्रता के मुकाबले बहुत कम करने में सफलता हाथ आई है. आम तौर पर अपनी उपलब्धियों का बखान करने के स्थान पर ठोस काम करके और अनावश्यक रूप से हर मुद्दे पर राजनीति करने के भारतीय नेताओं के गुणों से दूर ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक ने जिस तरह से अपनी नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया वह ऐसे समय में हर नेता से अपेक्षित है पर नवीन जैसे सौम्य और केवल जनहित में लगे हुए सीएम आज देश में कम ही हैं जो अपनी उपलब्धियों का डंका अनावश्यक रूप से पीटने में विश्वास करते हों ? इस पूरी कवायद की सफलता का श्रेय पूरी तरह से जहाँ वैज्ञानिकों के साथ राष्टीय आपदा प्रबंधन केंद्र को जाता है तो उसका धरातल पर क्रियान्वयन करने में नवीन सरकार की भूमिका कहीं से भी कम नहीं हो जाती है क्योंकि योजना के अनुरूप काम करने की ज़िम्मेदारी तो ओडिशा सरकार पर ही थी.
इस विषम परिस्थिति में अब जब जनहानि को रोकने में सफलता मिल चुकी है तो तूफ़ान प्रभावित क्षेत्रों में मूलभूत आवश्यकताओं खाना-पानी, बिजली सड़क के साथ ही उन मछुवारों के पुनर्वास पर अधिक ध्यान देने की ज़रुरत है जिनका इस तूफ़ान में लगभग सब कुछ ही बह गया है क्योंकि उनकी रोज़ी रोटी पूरी तरह से नावों पर ही निर्भर करती है और जब तक उनके लिए नावों का प्रबंध नहीं किया जा सकेगा तो सरकार आख़िर कब तक उनको इस तरह से अपने दम पर भोजन आदि उपलब्ध करा पायेगी ? इसलिए सबसे पहला काम तो इन नाविकों के लिए तुरन्त ही नाव उपलब्ध कराना होना चाहिए क्योंकि शहरी क्षेत्रों में जिस तरह से लोग आजीविका के अन्य साधनों से भी काम चला सकते हैं वैसा मछुवारों के साथ संभव नहीं है इनको कुछ प्रभावी योजना के माध्यम से जल्दी ही नयी नावें उपलब्ध करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है क्योंकि इन नावों के माध्यम से ये एक बार फिर से अपनी पुरानी जिंदगी की तरफ लौट सकेंगें और सरकार पर सहायता के लिए निर्भर रहने के स्थान पर अपने काम को शुरू करने की तरफ भी बढ़ सकेंगें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
केंद्र सरकार और मौसम वैज्ञानिकों से मिली जानकारी के बाद ओडिशा सरकार ने जितनी तेज़ी से लोगों को बचाने के प्रयास किये आज उसी का नतीजा है कि जन हानि को तूफ़ान की तीव्रता के मुकाबले बहुत कम करने में सफलता हाथ आई है. आम तौर पर अपनी उपलब्धियों का बखान करने के स्थान पर ठोस काम करके और अनावश्यक रूप से हर मुद्दे पर राजनीति करने के भारतीय नेताओं के गुणों से दूर ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक ने जिस तरह से अपनी नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया वह ऐसे समय में हर नेता से अपेक्षित है पर नवीन जैसे सौम्य और केवल जनहित में लगे हुए सीएम आज देश में कम ही हैं जो अपनी उपलब्धियों का डंका अनावश्यक रूप से पीटने में विश्वास करते हों ? इस पूरी कवायद की सफलता का श्रेय पूरी तरह से जहाँ वैज्ञानिकों के साथ राष्टीय आपदा प्रबंधन केंद्र को जाता है तो उसका धरातल पर क्रियान्वयन करने में नवीन सरकार की भूमिका कहीं से भी कम नहीं हो जाती है क्योंकि योजना के अनुरूप काम करने की ज़िम्मेदारी तो ओडिशा सरकार पर ही थी.
इस विषम परिस्थिति में अब जब जनहानि को रोकने में सफलता मिल चुकी है तो तूफ़ान प्रभावित क्षेत्रों में मूलभूत आवश्यकताओं खाना-पानी, बिजली सड़क के साथ ही उन मछुवारों के पुनर्वास पर अधिक ध्यान देने की ज़रुरत है जिनका इस तूफ़ान में लगभग सब कुछ ही बह गया है क्योंकि उनकी रोज़ी रोटी पूरी तरह से नावों पर ही निर्भर करती है और जब तक उनके लिए नावों का प्रबंध नहीं किया जा सकेगा तो सरकार आख़िर कब तक उनको इस तरह से अपने दम पर भोजन आदि उपलब्ध करा पायेगी ? इसलिए सबसे पहला काम तो इन नाविकों के लिए तुरन्त ही नाव उपलब्ध कराना होना चाहिए क्योंकि शहरी क्षेत्रों में जिस तरह से लोग आजीविका के अन्य साधनों से भी काम चला सकते हैं वैसा मछुवारों के साथ संभव नहीं है इनको कुछ प्रभावी योजना के माध्यम से जल्दी ही नयी नावें उपलब्ध करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है क्योंकि इन नावों के माध्यम से ये एक बार फिर से अपनी पुरानी जिंदगी की तरफ लौट सकेंगें और सरकार पर सहायता के लिए निर्भर रहने के स्थान पर अपने काम को शुरू करने की तरफ भी बढ़ सकेंगें.
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