विधानसभा चुनावों की घोषणा होते ही जिस तरह से इन राज्यों में चुनाव आयोग की नज़रें सभी गतिविधियों पर टिकती ही जा रही हैं उनसे आने वाले समय में बहुत से लोगों को परेशानी ही होने वाली है क्योंकि अभी तक विभिन्न सामजिक आयोजनों के माध्यम से देश में जन जागरण करने और संप्रग सरकार को उखाड़ फेंकने की कोशिशों में लगे हुए योग गुरु रामदेव के लिए छत्तीसगढ़ के बाद दिल्ली से भी कोई अच्छी खबर नहीं आई है. यह सही है कि देश का संविधान हर व्यक्ति को अपनी बात कहने और जनता के सामने रखने के पूरे अवसर प्रदान करता है पर जब सामाजिक कार्यक्रमों के पीछे किसी दल विशेष को चुनावी लाभ पहुँचाने की सम्भावना हो तो चुनाव आयोग अपने स्तर से स्वतः संज्ञान लेकर ही मामले में दखल भी दे सकता है. पहले छत्तीसगढ़ में जिस तरह से योगगुरु के सभी कार्यक्रमों को भाजपा के चुनावी खर्चे में जोड़े जाने के आदेश राज्य के चुनाव आयोग द्वारा जारी किये गए उसके बाद भाजपा के लिए वहां अपने खर्चों को सीमित रखने में कुछ परेशानी अवश्य ही होने वाली है.
किसी भी राज्य में चुनाव घोषित हो जाने के बाद से जिस तरह से सभी तरह के कार्यक्रमों पर नज़र रखने का संवैधानिक दायित्व चुनाव आयोग पर ही होता है उस दृष्टिकोण से उसके इस फैसले को गलत नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यदि योगगुरु को भाजपा का समर्थन करना है तो उसके लिए वे स्वतंत्र हैं पर उसके साथ उन्हें खुले तौर पर उसके लिए भाजपा के मंचों का ही उपयोग करना चाहिए जिससे वे अनावश्यक रूप से चुनाव आयोग की नज़रों में आने से भी बचे रह सकें और अपने संप्रग विरोधी अभियान को पूरी तेज़ी से चला सकें. अभी तक योगगुरु द्वारा जिस तरह से भारत स्वाभिमान और पतंजलि ट्रस्ट के माध्यम से अपने कार्यक्रमों को आयोजित किया जा रहा था और जितने बड़े स्तर पर उनके कार्यक्रम कई दिनों के लिए होते हैं तो उसका खर्च भी बहुत बड़ा होता है जिससे निपटने के लिए आयोग ने अब उनको कुछ शर्तों के साथ दिल्ली में अपने कार्यक्रम को आयोजित करने की अनुमति दी है साथ ही अधिकारियों को भी निर्देश दिया गया है कि वे पूरे कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग भी कराएँ जिससे किसी भी तरह से आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन न होने पाए.
अब यहाँ पर यह सवाल महत्वपूर्ण है कि जिस तरह से हर मसले पर भारत स्वाभिमान के नाम पर कुछ भी बोल देने वाले योगगुरु क्या आयोग की इस मंशा को समझ सकेंगें या आने वाले दिनों में इस भी भाजपा के मंचों से चुनावी मुद्दा बनाने से नहीं चूकेंगें क्योंकि आम तौर पर इस तरह के प्रतिबंधों को लेकर वे सीधे सोनिया और राहुल पर ही निशाना साधते रहे हैं पर इस बार मामला राजनैतिक न होकर संवैधानिक संस्था से जुड़ा हुआ है और छत्तीसगढ़ में जहाँ पर रमन सरकार अच्छी स्थिति में दिखती है वहां पर भी उनके कार्यक्रमों को भाजपा के कार्यक्रम मान लिया गया है जिससे भी वे कुछ परेशान ही हैं क्योंकि उन्होंने अभी तक यह सोचा था कि योग शिविरों के माध्यम से वे अपना काम करने की अनुमति लेंगें और भाजपा के पक्ष में वोट मांगने का काम भी करते रहेंगें पर आयोग के एक आदेश ने उन्हें इस तरह के दोहरे लाभ उठाने से वंचित कर दिया है. हो सकता है कि वे और भाजपा इस बात पर एकमत हो जाएँ कि उनके शिविरों को भी यदि भाजपा की रैली मान लिया जाये तो वे वहां के मंचों से कुछ भी कह सकते हैं पर उस परिस्थिति में चुनाव आयोग किस तरह से फैसले लेता है यह अधिक महत्वपूर्ण होगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
किसी भी राज्य में चुनाव घोषित हो जाने के बाद से जिस तरह से सभी तरह के कार्यक्रमों पर नज़र रखने का संवैधानिक दायित्व चुनाव आयोग पर ही होता है उस दृष्टिकोण से उसके इस फैसले को गलत नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यदि योगगुरु को भाजपा का समर्थन करना है तो उसके लिए वे स्वतंत्र हैं पर उसके साथ उन्हें खुले तौर पर उसके लिए भाजपा के मंचों का ही उपयोग करना चाहिए जिससे वे अनावश्यक रूप से चुनाव आयोग की नज़रों में आने से भी बचे रह सकें और अपने संप्रग विरोधी अभियान को पूरी तेज़ी से चला सकें. अभी तक योगगुरु द्वारा जिस तरह से भारत स्वाभिमान और पतंजलि ट्रस्ट के माध्यम से अपने कार्यक्रमों को आयोजित किया जा रहा था और जितने बड़े स्तर पर उनके कार्यक्रम कई दिनों के लिए होते हैं तो उसका खर्च भी बहुत बड़ा होता है जिससे निपटने के लिए आयोग ने अब उनको कुछ शर्तों के साथ दिल्ली में अपने कार्यक्रम को आयोजित करने की अनुमति दी है साथ ही अधिकारियों को भी निर्देश दिया गया है कि वे पूरे कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग भी कराएँ जिससे किसी भी तरह से आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन न होने पाए.
अब यहाँ पर यह सवाल महत्वपूर्ण है कि जिस तरह से हर मसले पर भारत स्वाभिमान के नाम पर कुछ भी बोल देने वाले योगगुरु क्या आयोग की इस मंशा को समझ सकेंगें या आने वाले दिनों में इस भी भाजपा के मंचों से चुनावी मुद्दा बनाने से नहीं चूकेंगें क्योंकि आम तौर पर इस तरह के प्रतिबंधों को लेकर वे सीधे सोनिया और राहुल पर ही निशाना साधते रहे हैं पर इस बार मामला राजनैतिक न होकर संवैधानिक संस्था से जुड़ा हुआ है और छत्तीसगढ़ में जहाँ पर रमन सरकार अच्छी स्थिति में दिखती है वहां पर भी उनके कार्यक्रमों को भाजपा के कार्यक्रम मान लिया गया है जिससे भी वे कुछ परेशान ही हैं क्योंकि उन्होंने अभी तक यह सोचा था कि योग शिविरों के माध्यम से वे अपना काम करने की अनुमति लेंगें और भाजपा के पक्ष में वोट मांगने का काम भी करते रहेंगें पर आयोग के एक आदेश ने उन्हें इस तरह के दोहरे लाभ उठाने से वंचित कर दिया है. हो सकता है कि वे और भाजपा इस बात पर एकमत हो जाएँ कि उनके शिविरों को भी यदि भाजपा की रैली मान लिया जाये तो वे वहां के मंचों से कुछ भी कह सकते हैं पर उस परिस्थिति में चुनाव आयोग किस तरह से फैसले लेता है यह अधिक महत्वपूर्ण होगा.
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