एक बार फिर से आधार संख्या/कार्ड के
माध्यम से नागरिकों की पहचान सुनिश्चित करने और उसे देश में चलने वाली
विभिन्न सरकारी योजनाओं से जोड़ने की केंद्र सरकार की मंशा पर पानी फिरता सा
नज़र आ रहा है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर केंद्र सरकार के आधार
संख्या/कार्ड को खारिज कर दिया है कि उसके न होने से किसी भी नागरिक को
किसी भी सरकारी योजना से वंचित नहीं किया जा सकता है ? यह एक बहुत ही
महत्वपूर्ण निर्णय है क्योंकि अभी तक इस तरह के कार्यक्रम में राज्यों
द्वारा जिस स्तर तक ढिलाई बरती जा रही है उसी का यह परिणाम है कि आज भी देश
में अधिकांश लोगों के पास यह आधार संख्या/कार्ड नहीं है जिससे उनको मिलने
वाले किसी भी सरकारी लाभ से उन्हें इस दम पर वंचित किया जा सकता था जिसे
देखते हुए ही कोर्ट को एक प्रभावशाली और महत्वपूर्ण परियोजना के बारे में
इतनी सख्त टिप्पणी करनी पड़ी और इसकी वैधानिकता पर ही प्रश्न चिन्ह लग गया.
यहाँ पर सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि आखिर वे कौन से कारण रहे हैं जिनके कारण राज्यों ने इस तरह की किसी भी व्यवस्था को अपनाने में उतनी रूचि नहीं दिखाई जितनी दिखानी चाहिए थी क्योंकि यह देश में पहली बार नागरिकों के लिए एक वास्तविक पहचान का काम करने वाला कार्ड या संख्या होने वाली थी जिसके माध्यम से किसी भी नागरिक की वैधानिक पहचान को स्पष्ट रूप से जाना जा सकता था. कहीं न कहीं इसमें भी देश में चलने वाली घटिया राजनीति आगे आ गयी है क्योंकि राज्यों को मिलने वाली केन्द्रीय सहायता के बारे में आम तौर पर नागरिकों को कुछ भी पता नहीं होता है जबकि बहुत सारे मुद्दों पर केंद्र सरकार के प्रयासों से ही बहुत बड़ी परियोजनाएं या कल्याणकारी योजनायें लागू करने के लिए धन उपलब्ध कराया जाता है. देश के नागरिक केंद्र और राज्य सरकार को विभिन्न तरह के करों का भुगतान करते हैं जिनका विभिन्न तरह कि योजनाओं के माध्यम से फिर से जनहित में उपयोग किया जाता है.
अब जब कोर्ट से इस आधार को कोई समर्थन नहीं मिल सका है तो केन्द्रीय मत्रिमंडल ने इस कानूनी रूप देने के लिए एक विधेयक बनाने का फैसला कर लिया है जिससे अभी तक मात्र एक सरकारी आदेश के तहत चलने वाले इस कार्यक्रम को कानूनी रूप में पूरी वैधानिकता के साथ संचालित किया जा सकेगा जिससे इनके साथ की जाने वाली किसी भी तरह की राजनीति से भी इसे बचाया जा सकेगा. यदि धरातल पर देखा जाये तो इस आधार से देश में पहचान सम्बन्धी बहुत सारी समस्यायों से एक साथ ही छुटकारा पाया जा सकता है और किसी भी नागरिक को पूरे देश में कहीं भी उसकी वास्तविक जानकारी के साथ प्रस्तुत भी किया जा सकता है. कल्याणकारी योजनाओं के अलावा देश के नागरिकों के बीच घुलमिल कर रहने वाले उन अपराधियों को भी पहचाना जा सकेगा जिनके बारे में सही सूचना उपलब्ध न होने के कारण कई बार निर्दोषों को भी जेल की सलाखों के पीछे काफी समय काटना पड़ जाता है अब देश में कहीं से भी केवल उँगलियों और पुतलियों के निशान से व्यक्ति की वास्तविक पहचान को सामने लाया जा सकेगा. राजनीति के चलते देश में अच्छी स्वीकार करने योग्य योजनाओं का किस तरह से मजाक बनाया जाता है आधार संभवतः उसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यहाँ पर सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि आखिर वे कौन से कारण रहे हैं जिनके कारण राज्यों ने इस तरह की किसी भी व्यवस्था को अपनाने में उतनी रूचि नहीं दिखाई जितनी दिखानी चाहिए थी क्योंकि यह देश में पहली बार नागरिकों के लिए एक वास्तविक पहचान का काम करने वाला कार्ड या संख्या होने वाली थी जिसके माध्यम से किसी भी नागरिक की वैधानिक पहचान को स्पष्ट रूप से जाना जा सकता था. कहीं न कहीं इसमें भी देश में चलने वाली घटिया राजनीति आगे आ गयी है क्योंकि राज्यों को मिलने वाली केन्द्रीय सहायता के बारे में आम तौर पर नागरिकों को कुछ भी पता नहीं होता है जबकि बहुत सारे मुद्दों पर केंद्र सरकार के प्रयासों से ही बहुत बड़ी परियोजनाएं या कल्याणकारी योजनायें लागू करने के लिए धन उपलब्ध कराया जाता है. देश के नागरिक केंद्र और राज्य सरकार को विभिन्न तरह के करों का भुगतान करते हैं जिनका विभिन्न तरह कि योजनाओं के माध्यम से फिर से जनहित में उपयोग किया जाता है.
अब जब कोर्ट से इस आधार को कोई समर्थन नहीं मिल सका है तो केन्द्रीय मत्रिमंडल ने इस कानूनी रूप देने के लिए एक विधेयक बनाने का फैसला कर लिया है जिससे अभी तक मात्र एक सरकारी आदेश के तहत चलने वाले इस कार्यक्रम को कानूनी रूप में पूरी वैधानिकता के साथ संचालित किया जा सकेगा जिससे इनके साथ की जाने वाली किसी भी तरह की राजनीति से भी इसे बचाया जा सकेगा. यदि धरातल पर देखा जाये तो इस आधार से देश में पहचान सम्बन्धी बहुत सारी समस्यायों से एक साथ ही छुटकारा पाया जा सकता है और किसी भी नागरिक को पूरे देश में कहीं भी उसकी वास्तविक जानकारी के साथ प्रस्तुत भी किया जा सकता है. कल्याणकारी योजनाओं के अलावा देश के नागरिकों के बीच घुलमिल कर रहने वाले उन अपराधियों को भी पहचाना जा सकेगा जिनके बारे में सही सूचना उपलब्ध न होने के कारण कई बार निर्दोषों को भी जेल की सलाखों के पीछे काफी समय काटना पड़ जाता है अब देश में कहीं से भी केवल उँगलियों और पुतलियों के निशान से व्यक्ति की वास्तविक पहचान को सामने लाया जा सकेगा. राजनीति के चलते देश में अच्छी स्वीकार करने योग्य योजनाओं का किस तरह से मजाक बनाया जाता है आधार संभवतः उसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है.
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