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शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

पाक और शांति

                                पिछले कुछ वर्षों में आम तौर पर सीमा पर संघर्ष विराम उल्लंघन की छुटपुट घटनाओं के बाद इस वर्ष जनवरी से ही जिस तरह से पाक सेना ने आक्रामक रुख अपनाया हुआ है उसके बाद तो यही लगता है कि भले ही पाक का राजनैतिक तंत्र शांति की चाहे जितनी भी बातें करता रहे पर उसकी मंशा इन घटनाओं से स्पष्ट ही हो जाती है. अभी तक जिस तरह से केवल सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों पर ही पाक द्वारा हमले किये जाते थे तो वह बात कुछ हद तक सेना से जुडी हुई समझी जा सकती है क्योंकि पाक के सैनिकों को मौका मिलते ही इस तरह से गोलीबारी कर आतंकियों को सीमा पार कराने के काम भी लगातार अंजाम देना पड़ता है और अभी कुछ दिनों तक ही वह इस तरह से जम्मू कश्मीर में अपने भाड़े के आतंकियों को भेज सकता है क्योंकि बर्फ़बारी शुरू हो जाने के बाद इस क्षेत्रों में इतनी बर्फ हो जाती है कि किसी भी तरह का आवागमन संभव ही नहीं रह जाता है. अपने लिए कुछ आसान चौकियों पर भारतीय सेना का ध्यान बांटकर आतंकियों को अन्य जगहों से सीमा पार करना पाक की एक नीति ही है.
                                इस बार जिस तरह से खेतों में काम कर रहे किसानों, बच्चों और महिलाओं पर अकारण ही पाक द्वारा गोलियों और मोर्टार से हमला किया गया उससे उसकी नीच मानसिकता का ही पता चलता है क्योंकि ये आम किसान केवल अपने खेतों में मक्की की फसल काटने में लगे हुए थे पर शायद पाक के जनरल को यह सब अच्छा नहीं लगा होगा तभी उसने इस पर भी गोलियां चलाने का आदेश दे दिया होगा. इस तरह पूरे सेक्टर में पाक की कार्यवाही का भारतीय सैनिकों द्वारा कड़ा जवाब दिया गया जिसमें दो पाक रेंजरों के मारे जाने की भी सूचना मिली है. अब यहाँ पर यह विचार करने योग्य बात भी है कि सीमा के इस पार काम कर रहे लोगों पर आखिर किस खतरे के कारण पाक ने इतनी निर्ममता से गोलियां चलायीं ? एक तरफ पर दुनिया भर के मंचों पर केवल यही कहता रहता है कि उसे भारत समेत अपने सभी पड़ोसियों के साथ शांति से रहना अच्छा लगता है और वह इसके लिए प्रयासरत भी है पर उसके इस तरह के प्रयास आज पूर दुनिया के सामने उसकी मानसिकता को प्रदर्शित करते रहते हैं.
                               सैनिक महत्व के क्षेत्रों में तनाव वाले अधिकांश देशों में सदैव ही इस तरह कि अकारण गोलीबारी होती ही रहती है पर जिस तरह से पाक भारत को उकसाने की कोशिशों में लगा रहता है उससे यही लगता है कि उसकी सेना की मंशा पूरी दुनिया को यह दिखाने की है उसे पाक के राजनैतिक नेतृत्व की कोई परवाह नहीं है क्योंकि नवाज़ शरीफ तो शांति के तराने गाते घूम रहे हैं और पाक सेना इस तरह से सीमा पार अब नागरिक क्षेत्रों को भी अपने निशाना बनाने से नहीं चूक रही है. संभवतः नवाज़ शरीफ की तरफ से पाक सेना को पूरी छूट रहती है या फिर पाक सेना को किसी भी तरह से पाक का पीएम होना अच्छा नहीं लगता है क्योंकि उनके राज में पाक सेना अपना अलग ही राग गाती रहती है और चाह कर भी शरीफ उसे किसी भी तरह से काबू में नहीं कर पाते हैं ? परवेज़ मुशर्रफ ने जिस तरह से कमज़ोर पड़ चुके नवाज़ को सत्ता से दूर कर दिया था तो यह सम्भावना एक बार फिर से बनी दिखाई देने  लगी है कि कयानी के बाद निरंकुश पाक सेना को सँभालने वाला अधिकारी कहीं एक बार फिर से सत्ता पर कब्ज़ा कर ले ? पाक को अब अपनी सेना को काबू में रखना सीखना ही होगा वर्ना वह उसके साथ क्षेत्र की शांति के लिए बड़ा खतरा भी बन सकती है.   
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