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गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

एयर इंडिया और राजनीति

                                  नागरिक उड्डयन मंत्री अजित सिंह की तरफ से आये एक सुझाव ने देश में एक बार फिर से सार्वजनिक क्षेत्रों में बढ़ते हुए कुप्रबंधन की तरफ सभी का ध्यान खींचा है क्योंकि एक समय देश में हवाई यात्रा का एक मात्र विकल्प होने के कारण ठीक ठाक तरीके से उड़ रहे महाराजा के लिए आज समस्याएं दिन पर बढती ही नज़र आ रही हैं. ऐसा नहीं है कि एयर इंडिया के पास विमान, स्टाफ और अनुभव की कमी है पर जिस तरह से विभिन्न राजनैतिक और प्रशासनिक कारणों से इसके परिचालन में समस्याएं आती रहती हैं यदि आज केवल उनको ही दूर करने के लिए कारगर नीतियां बनाने की तरफ ध्यान दिया जाये तो आने वाले समय में यह के बार फिर से बिना किसी सरकारी सहायता के अपनी पूरी क्षमता को प्रदर्शित कर देश के लिए के और गौरव प्रदान करने वाला उपक्रम बन सकता है सरकार और एयर इंडिया प्रबंधन को अब इस तरफ ध्यान देना ही होगा क्योंकि केवल सरकारी सहायता के भरोसे अब इसे अधिक दिनों तक चलाया नहीं जा सकता है.
                                 देश में विभिन्न तरीके के सार्वजनिक उपक्रम बहुत अच्छी तरह से भी काम कर रहे हैं तो आखिर क्या कारण है कि एयर इंडिया को अपने सामान्य परिचालन के लिए भी सरकारी सहायता पर निर्भर होना पड़ रहा है जबकि ऐसी स्थिति में कहीं से भी किसी भी तरह से सरकार को राजस्व से मिले धन का उपयोग जन हित में करना चाहिए तो वह आखिर कब तक लगातार कुप्रबन्धन के कारण घाटे में चल रहे इस उपक्रम को कब तक जिंदा रखने की कोशिशें करती रह सकती है ? ऐसे में २०२० तक जो भी सरकारी सहायता देने की बात है उसके साथ यह शर्त भी अनिवार्य रूप से लगायी जानी चाहिए कि यदि इतनी बड़ी वित्तीय सहायता के बाद भी उपक्रम में कुछ सुधार नहीं हुआ या फिर उसने अपने खर्चों को चलाने की क्षमता विकसित नहीं की तो इसका निजीकरण करने की दिशा में सरकार द्वारा प्रयास शुरू कर दिया जायेगा जिससे कर्मचारियों पर भी इस बात कि कुछ ज़िम्मेदारी तो बने कि उन्हें भी इसे चलाते रहने के लिए अपनी पूरी क्षमता का प्रदर्शन करना आवश्यक है.
                               सबसे पहले तो इसे अपने किरायों में निजी कम्पनियों की तरह प्रयास करने चाहिए क्योंकि जिस तरह से आज भी विभिन्न मार्गों पर इसके किराये निजी कम्पनियों से बहुत अधिक होते हैं तो उस कारण से भी लोग इसको अपनी पहली पसंद नहीं बनाते हैं जबकि आज भी पूरे देश में हर कोने तक पहुँच के मामले में यह अव्वल ही है पर जिन व्यस्त मार्गों पर अब यात्रियों की संख्या बढ़ रही है यदि वहां पर भी नए सिरे से रणनीति में बदलाव कर उसके असर को देखने का प्रयास किया जाये तो कोई कारण नहीं है कि इसका परिचालन वित्तीय रूप से और भी अधिक क्रियाशील हो सकता है. आज जिस तरह से देश के छोटे शहरों से भी लोगों ने विमान सेवा का प्रयोग करना शुरू किया है तो उस स्थिति में एयर इंडिया को अपने बड़े बड़े का उपयोग करते हुए कम से कम उन शहरों से महानगरों तक कनेक्टिंग विकल्प ही उपलब्ध कर देने चाहिए जिससे बड़े हवाई अड्डों तक पहुँचने के बाद यात्रियों के पार एयर इंडिया भी एक विकल्प के रूप में आगे आये और साथ ही इकॉनोमी श्रेणी में यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या को देखते हुए उस श्रेणी में सीटों की उपलब्धता भी बढ़ाये जाने पर प्रयास किये जाने चाहिए.     
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