मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

भारत-रूस सम्बन्ध

                                             भारत की आज़ादी के बाद से ही तत्कालीन सोवियत संघ और अब रूस के साथ भारत के सम्बन्ध पूरी दुनिया से छिपे हुए नहीं है और दोनों देशों के बीच आज भी जितने बड़े स्तर पर रक्षा और सामरिक महत्व के विषयों के साथ परमाणु ऊर्जा पर भी सम्बन्ध आगे बढ़ने में लगे हुए हैं उससे यही लगता है कि अब संबंधों को और भी ठोस धरातल पर उतारने का समय आ गया है. आज पूरी दुनिया में जिन परिस्थितियों में रक्षा और अन्य समझौते हो रहे हैं उससे भारत और रूस भी बचे नहीं रह सकते हैं क्योंकि इन दोनों देशों की भी ज़रूरतें आज के समय के अनुसार ही आगे बढती ही जा रही हैं. मनमोहन सिंह की रूस यात्रा में जिस तरह से दोनों देशों ने वैश्विक आतंकवाद पर खुलकर चर्चा की और उसके बाद क्रेमलिन से संयुक्त बयान भी जारी हुआ उससे यही स्पष्ट होता है कि बदलते हुए परिदृश्य में आज भी भारत का महत्व रूस अच्छे से समझता है और अब हमारी सरकार की तरफ से अन्य देशों की तरफ ताकने के स्थान पर रूस के साथ अन्य महत्वपूर्ण समझौतों पर चर्चाएँ आगे बढ़ानी ही चाहिए.
                             कुडनकुलम में लगे परमाणु ऊर्जा संयंत्र को रूस के सहयोग से ही बनाया गया है और अब आने वाले समय में इसके द्वितीय चरण को जल्दी ही शुरू करने की संभावनाएं बलवती हो गयी हैं क्योंकि इस सम्बन्ध में भी सरकार ने आगे बढ़ने का सोच लिया है और आने वाले समय में इसके तीसरे और चौथे चरण के लिए नए परमाणु प्रतिबद्धता कानून के तहत आने वाली अडचनों को भी दूर करने की तरफ प्रयास शुरू कर दिए गए हैं. भारत के रूस के साथ रक्षा, मिसाइल, परमाणु, नौसेना प्रौद्योगिकी के साथ कई अन्य क्षेत्रों में लम्बे समय से अच्छे सम्बन्ध चले आ रहे हैं और संभवतः विश्व में रूस ही एकमात्र ऐसा देश हैं जिसने आज तक भारत के साथ विभिन्न कठिनाइयों के बाद अपने संबंधों को उसी स्तर पर बनाये रहा है जिसके लिए भारतीय उसकी सराहना करते हैं. सोवियत संघ के विघटन के समय भी भारत ने अपने इन देशों में सबसे महत्वपूर्ण देश रूस के साथ सभी संबंधों को पूरी जीवन्तता के साथ चलने की कोशिश की आज रूस का भारत पर भरोसा इसीलिए भी बना हुआ है क्योंकि तब देश में रूस के साथ संबंधों की समीक्षा की बातें करने वाले भी बहुत हुआ करते थे.
                               इतने बड़े देश में एक क्रांति होने के बाद जिस तरह से नए देशों का राष्ट्रकुल बना उसके बाद भी भारत ने पूरी तन्मयता के साथ उस सभी देशों को सम्मान और महत्व देते हुए अपने संबंधों को उसी स्तर पर बनाये रखा वह भी आज के समय में लाभकारी साबित हो रहा है क्योंकि वैश्विक परिदृश्य में किसी भी क्षेत्रीय गुट के साथ खड़े होकर भारत ने कभी भी अपनी सैन्य क्षमता का दुरूपयोग नहीं किया यही कारण है कि आज भी भारत की पूरी दुनिया में इसके लिए अपनी ही साख है. अब समय आ गया है कि पुराने संबंधों को मज़बूत करते हुए नए क्षेत्रों में तेज़ी से कदम बढ़ाये जाएँ जिससे भारत और रूस के लोगों कि उसके त्वरित परिणाम भी मिल सकें. आज भी रूस के पास दुनिया के बेहतर ससाधन उपलब्ध हैं और जब तक वैज्ञानिक सोच के साथ आधुनिक तकनीक का बेहतर उपयोग नहीं किया जायेगा तब तक देश को आगे बढ़ने में मुश्किलों का सामना करना ही पड़ेगा. अब जब रूस पूरे मनोयोग से हमारे साथ काम करने का इच्छुक है तो हमें भी संबंधों को आगे बढ़ाने के नए अवसरों की खोज कर उन पर चलने का प्रयास करना ही चाहिए.      
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