मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

दहेज़ उत्पीड़न और कानून

                           देश में दहेज़ उत्पीड़न कानून के बढ़ते दुरूपयोग की घटनाओं में वृद्दि के बीच सुप्रीम कोर्ट का एक ऐसा निर्णय आया है जो किसी भी परिस्थति में निर्दोषों को इस कानून का तहत फंसाने के किसी भी प्रयास में काफी हद तक कारगर हो सकता है क्योंकि अभी तक दहेज़ के लिए प्रताड़ित करने से रोकने के लिए बनाये गए इस कानून का जितने बड़े पैमाने पर दुरूपयोग शुरू हो गया है उसके बाद बहुत सारे मामलों में निर्दोषों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट लिखवाकर उन्हें भी जेल भेज दिया जाता है. कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इस तरह के मामले में किसी भी परिस्थिति में पूरे कुनबे को आरोपी बनाया जाना पूरी तरह से गैर कानूनी और अमानवीय है. पंकज कौशिक मामले में कोर्ट ने स्पष्ट रूप से अपना यह निर्णय देते हुए अन्य लोगों की गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी है जिसके बाद से इस कानून के दुरूपयोग पर बहस होने कि सम्भावना एक बार फिर से बढ़ गयी है जिसकी आज बहुत आवश्यकता महसूस की जा रही थी पर कड़े कानून के चलते कोई भी इस मसले पर बोलने से बच ही रहा था.
                           यह सही है कि इस कानून को केवल इसलिए ही इतना कड़ा बनाना पड़ा क्योंकि देश में दहेज़ उत्पीड़न के मामले बहुत तेज़ी से बढ़ते ही जा रहे थे और बहुत सारे मामलों में विवाहितों को जलाकर मार डालने की घटनाएँ भी सामने आयीं पर केवल कडा कानून किस तरह से दोधारी तलवार हो सकता है यह अब सामने आ रहा है क्योंकि बहुत सारे मामलों में यह भी दिखाई देता है कि कहीं किसी ने केवल इसलिए ही पूरे परिवार का नाम दोषी बताते हुए लिखवा दिया क्योंकि उनको अब उस परिवार से कुछ भी लेना देना नहीं रहा गया था ? क्या किसी भी परिस्थिति में कोई भी इस तरह के कानून को पूरी तरह से निरापद बना सकता है क्योंकि यदि इसमें वास्तव में कोई बड़ी ढील दी जाती हैं तो दहेज़ लोभियों के छूट जाने के अवसर फिर से बढ़ जायेंगें और वास्तव में पीड़ित पक्ष की बात कोई नहीं सुन पायेगा जबकि वास्तविक दोषियों को हर हाल में उनके किये की सजा मिलनी ही चाहिए और इससे कोई भी बच नहीं पाए तभी न्याय हो पायेगा.
                             आज के समय में जिस तरह से पूरी न्याय व्यवस्था ही केवल पुलिस क्षेत्राधिकारी की प्रारंभिक जांच पर टिक जाती उससे भी कई बार पूरे मामले बिगड़ जाया करते हैं क्योंकि पुलिस पर हमेशा से ही इस तरह के बहुत सारे आरोप लगा ही करते हैं कि उसने समय रहते सही कार्यवाही नहीं की जबकि पुलिस द्वारा सामाजिक रसूख वाले आरोपियों को बचाए जाने के भी कई मामले सामने आये और इस कानून के दुरूपयोग से बचाने के नाम पर पुलिस द्वारा कथित धन उगाही आज भी चर्चा में रहा करती है. ऐसे में किसी भी दहेज़ उत्पीड़न या हत्या से जुड़े मामले में नैसर्गिक न्याय को ध्यान में रखते हुए पुलिस जांच के साथ एक सामाजिक जांच भी होनी चाहिए जिसमें स्थानीय प्रतिष्ठित लोगों के साथ महिला वकीलों को भी शामिल किया जाना चाहिए जिससे कम समय में सारे सबूत इकट्ठे किये जा सकें और पुलिस अपनी मनमानी भी न कर सके. विशेषज्ञों द्वारा जांच करने से पूरे मामले को सही ढंग से जांचे जाने से जहाँ मामले को सुलझाने में मदद मिल जाएगी वहीं दूसरी तरफ़ किसी भी परिस्थिति में एक पक्षीय कार्यवाही से भी आम लोगों और निर्दोषों की सुरक्षा की जा सकेगी.     
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें